(भाग-3, सिया और साहिल की कमेस्ट्री।)
कुँए के मेंडक को क्या पता कि बाहर एक पूरा समन्दर भी होता है। लेकिन समन्दर का मेंडक भी कहाँ आसानी से समझ पाता है कि जिन्दगी तो कुएं के मेंडक की भी होती है। उसी कुँए में कुँए के मेंडक का एक पूरा संसार होता है।
उसी तरह साहिल और सिया के बीच के विज्ञान को समझ पाना किसी बाहरी समंदरी व्यक्ति के लिए आसान नहीं है। उनके बीच के भावानात्मक जुड़ाव और खतरनाक टकराव के कुछ किस्से जाने बगैर हम आगे नहीं बढ़ सकते है।
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सिया ने साहील के सर को कंघी किया। साहिल के बाल बढ़े हुए थे। पहले कटवाने का आलास था। फिर साहिल को अच्छे लगने लगे तो ये बाल बढ़ कर साहिल की आंखों से नीचे तक आने लगे।
साहिल का कमरा उसके एक्सरसाइज के औजारों, दो मेज, एक बेड, एक टीवी और समान रखने की अलमारी आदि से भरा हुआ था।
सामने की दिवार पर बड़ा ड्रेसिंग मिरर भी लगा हुआ था।
सिया ने साहिल के बाल बना कर कंघी को उस मिरर के आगे रखते दिया। साहिल व्हीलचेयर को लेकर मिरर के सामने खुद को देखने के लिए गया। अपने बालों की तरफ देखते हुए साहिल का मुंह खुला रह गया।
‘ये क्या, मुझे फिर से चंपू बना दिया।’ साहील ने नराजगी जाहिर करते हुए कहा। "मैंने तुमसे सौ बार कहा ऐसे बाल मत बनाया कर। ऐसे लग रहा है जैसे मैं अभी नर्सरी क्लास में दाखिला लेने वाला हूँ।"
साहिल के बोलों को दाईं तरफ दबा कर बनाया गया था। बाल लम्बे होने कारण कारण एक तरफ सफेद मांग दूर से ही देखी जा सकती थी। जैसे काली सडक के बीच डिवाइडर दिखाई देता हो।
सिया ने कमरे में कपड़ो को जगह-जगह से चुनते हुए बिना साहिल की तरफ देखे कहा, "सही तो है। तुम्हे ऐसे ही लग रहा है। थोड़ा नया स्टाइल है ना, और बाल भी बड़े है इसलिए।"
"क्या इसलिए। मैं बकरी जैसे लग रहा हूँ।" साहिल ने बिगड़ते हुए कहा।
‘हां तो सही है ना। जैसे हो वैसा ही लग रहे हो।’ सिया ने मजाक को सिरियस भाव से कहा।
साहिल ने व्हीलचेयर पर टिकाई गर्दन से सिया की तरफ करते हुए घूरा। सिया ने उसे बिना देखे ही हाथ में कपड़ो का ढेर लिए बाहर की तरफ निकल गई।
साहिल को उस पर इस तरफ के घमंड और हवा हवाई होने पर गुस्सा आ रहा था। लेकिन जिसने दिल पर चोट की वो अब जा चूका था। साहिल ने वापस सीसे में अपने मुंह को दोनों तरफ से झुमा कर देखा। फिर सर में बनी पगदंडी को निहारने लगा।
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सिया साहिल के सामने बेड पर बैठी गुजरे महीनों के खर्चो का हिसाब बना रही थी। साथ साहिल को भी सब बोल कर बता रही थी।
हिसाब की तरफ साहील का कोई खास ध्यान नहीं था। साहिल को पता था कि घंटे भर बाद होने वाला तो घाटा ही है। वह बस हूँ हां में बात टुरा रहा था। अपनी बहन के दुखड़े पर बस 'सही है सही' कहता सामने बैठा सब सुन रहा था।
सिया के पास ही बेड पर 50 हजार रुपए की गडी रखी हुई थी। साहिल बैठा गडी को देख कर सोच रहा था कि वह इससे क्या कर सकता है।
तभी सिया ने पेज पर कुछ जोड़ भाग गुणा कर उंगलियों के बीच फसाए हुए पेन को साहिल की ओर तान कर ऊपर देखा और उसने कहा,
"इन्हें मत घूर, इतने में कुछ नहीं कर पाएगा।"
सिया साहिल के चहरे को देख कर हंसने लगी। साहिल ने भी झट से खुद को सम्भाला।
‘नहीं… मैं तो बस देख रहा था।’ साहिल ने मुकरने वाली हंसी के साथ कहा।
"ये देख अब, कुल मिला कर हिसाब।" सिया ने बताने के लिए पेज पर लिखे एक आंकड़े पर पेन रखते हुए कहा।
"अब मुझे बताना क्या है। जो है वो ठीक है।" साहिल ने कहा। "अब तक तो तूने सब सेट कर दिया होगा।" साहिल ने सियो को छेड़ते हुए कहा।
सिया एक पल तो हैरान हो चुप थी और दुसरे ही पल भड़क गई,
"क्या मतलब मैंने सब सेट कर लिया? तभी… तभी तो मैं सब लिख कर रखती हूँ। अगर मुझे एसा वैसे कुछ करना होता तो मैं ऐसे सारा लिख कर नहीं रखती।
"लिखती भी तो तुम ही हो।" साहिल ने जले पर हल्दी की जगह नमक डाल दिया जिसने बारूद का काम किया। इतना बोल कर साहिल ने व्हीलचेयर घुमा कर कमरे में टहलने लगा।
अब सिया के गुस्से के साथ रोने की आवाज साहिल को बोनस में मिली।
पानी में डाले तेज स्पीकर की तरह सिया साहिल पर बरस पड़ी।
"तू मुझे कैसे ऐसा कह सकता है। हर साल जितने पैसे आते है उनमें से आधे तो तेरी दवाइयों में चले जाते है। उसके बाद घर में और उसके बाद तेरी अन्य जरूरते में। इन सबके बाद मेरी बारी आती है। मेरे बाकि खर्चे तो बाद की बात है मेरे कोलेज की फ़ीस भी कभी पूरी नहीं भरी जाती है। इन सब के बाद क्या बचता है बता ? मैं अपने दोस्तों से उधार ले ले कर थक गई हूँ। तुझे पता है मेरे पास दोपहर को कुछ खाने के भी पैसे नहीं होते है।"
साहिल को स्थिति के इतना बिगड़ने की उम्मीद नहीं थी और थी भी। वो अपनी भड़ास सिया पर निकाल रहा था तो सिया अपनी भड़ास उस पर। साहिल ने व्हीलचेयर को उसकी और घुमाया। उसने कहा,
"तो खा लिया कर।" साहिल ने इस बार आराम से कहा।
‘क्या खा लूँ। एक एक पैसे से महीने का सारा बजट बिगड़ जाता है।’ सिया ने कहा। सिया नोटबुक में पेन रखते कर खड़ी हो गई और अपने आंसुओ को पौंछा।
साहिल चुप चाप उसे देख रहा था। सिया मेज की दराज में नोटबुक रख रही थी। साहिल ने मौका देख कर कहा,
"मुझे एक जोड़ी हल्के जूते चाहिए।"
सिया मेज के पास अपने मुंह में हेयर बेंड पकड़े खड़ी थी। हाथो से अपने बाल बाँधते हुए बोली,
"किसी लिए चाहिए? पहन कर कहाँ जाएगा?"
साहिल सिया को निशब्द घूरता रहा। सिया ने अपने बाल बांधे और मेज पर से अंतिम हिसाब लिखा पेज उठाकर वहां से चली गई।
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साहिल अपने बैड पर लेटा हुआ था। दोनो आराम से बचपन की बातों में खोये हुए थे। साहिल उपर छत की तरफ देख रहा था। सिया पास ही कुर्सी पर चोकड़ी मारे बैठी थी।
साहिल ने ऊपर देखते हुए कहा, "कितने साल और?"
सिया के चहरे का एक दम से रंग उड़ गया। सिया ने एक टक छत की तरफ देख रहे साहिल की तरफ देखा। साहिल के खामोश चहरे को देख सिया के पैरों तले से जमीन खिसकने लगी। उसे ऐसे प्रश्नों से खुद द्वारा सामना करने की और पूछे जाने की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। सिया ऐसे सवाल-जवाब की आदि नहीं थी। ना ही उसे ऐसी स्थिति को संभालना आता था और ना ही खुद के आंसुओं की रोकना आता था।
"किस चीज के कितने साल?" सिया ने अजीब सी सिरहन के साथ साहिल से पूछा।
"ये छत कितने साल तक और टिके रहे गी।" साहिल ने छत की तरफ इधर उधर देखते हुए कहा।
सिया एक बार रुकी। फिर राहत की सांस ली।
"बहुत लम्बी।" सिया ने कहा। "तुम फ़िक्र मत करो। इसे तुम पर मैं कभी नहीं गिरने दूंगी।"
"तुम रोक नहीं पाओगी, अगर मैंने इसे गिराना चाहा तो," साहिल ने कहा।साहिल मुंह से हवा खींचते हुए जदुई शक्ति के तरीके से छत हिलाने का ढोंग करने लगा।
"मेरे बिना तुम इसे गिरा भी तो नहीं पाओगे।" सिया ने कहा।
साहिल के हवा खींचते मुंह से एक बड़ी हंसी छूट गई। वह रुक रुक कर बहुत देर तक हंसता रहा। सिया भी अपने फटाक जवाब पर हंसती रही थी।
एक हद के बाद साहिल की हंसी बंद हो गई। अब बस छत पर मुस्करा रहा था।
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सिया ने साहिल के सामने बेड पर अपने नए खरीदे हुए कपड़े और जूते बिखेर रखे थे।
सिया साहिल को अपनी हर ड्रेस के पीछे दूकान वाले के साथ हुई नोक-झोंक और अपने कपड़ो चुनाव में आई दुविधाओं के बारे में बता रही थी। साहिल भी उसकी बात में रूचि दिखा रहा था।
सिया के मजाकिया किस्सों सुनता साहिल बेड के सामने अपनी व्हीलचेयर पर बैठा हंस रहा था।
सिया ने कुछ देर बाद कहा। "तू भी चल ना। सब आये होंगे वहा। तुम भी मिल लेना सब से।"
सिया ने बेड पर बिखरे नए कपड़ो के पास बैठी साहिल को मनाने की कोशिश कर रही थी। हालांकि उसे पता था कि साहिल इस घर से बाहर कहीं नहीं जाएगा।
"मैं क्या करूगा वहां? उस भीड़ से अच्छा ये कमरा है। सब शांत सा।’ साहिल ने अपने डर को संतुलित करते हुए कहा।
"यहाँ तो हमेशा ही रहना है।’ सिया ने कहा। ‘वहां पर सब आये होंगे। कितना कुछ देखेगा तू। यहा तो तुझे हमेशा रहना ही है। चल कुछ दिन वहां।"
"नहीं। वहां का सिस्टम मेरे सेट नहीं बैठेगा।" साहिल ने अपने अंदर की घबराहट के कारण के बारे में थोड़ा सा बताया।
‘वहां पर होंगे ना सब। जगी, संजू, नमन। वो सब व्यवस्था कर देंगे। और उनके वहां तुझे कोई दिक्कत भी नहीं होंगी। वहां उनके मोर्डन तरीके के टॉयलेट बाथरूम की सब व्यवस्था भी है।’ सिया ने दोबारा से आग्रह किया।
साहिल कुछ नहीं बोला। निचे देखते हुए बस ना में दो बार सर झटक दिया। सिया मन मार कर खड़ी हो गई। वह साहिल की जिद को जानती थी। सिया अपने कपड़ो को वापस तह कर दिया और कपड़ो को थैलियों में डालते हुए कहा,
‘मैंने तुम्हारे लिए एक शर्ट देखी। अच्छी थी। एक बार तो मैं ले कर आ रही थी। लेकिन फिर मैं तेरे साइज़ को लेकर थोडा निश्चित नहीं थी।’ सिया ने थैलियो में कपड़े और दूसरा समान डाल कर अपने हाथों में उठा लिया।
‘कहाँ जाऊगा शर्ट पहन कर। घर पर ही तो रहना है।’ साहिल ने यह कहते हुए अपनी सब इच्छाओं को ही जड़ से मिटा दिया।
"घर पर भी तो चाहिए होता पहनने को। और कंही बाहर भी जाना पड़ जाए कभी तो ? पहनने को कुछ तो ढंग का होना चाहिए। मैं शादी से आ कर वो शर्ट जरूर ले कर आऊंगी।" सिया ने साहिल की तरफ मुस्कराते हुए कहा।
साहिल ने हाँ में थोड़ा सा सर हिलाया बस।
सिया को अपने मामा की लड़की मुस्कान की शादी में जाने की ख़ुशी भी थी और साहिल के न जा पाने का गम भी था।
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