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दोहरी मानसिकता
सुबह सुबह दरवाजे की घंटी बजी बाहर कल्लू खड़ा था डरा सहमा और सामने वाली पड़ोसन उसे बूरी तरह डाट रही थीं कि ये कौन सा वक्त है कूड़ा ले जाने का सुबह के आठ बज रहे हैं कल से सुबह छह बजे कूड़ा ले जाया कर वर्ना मत आया करो.... बेचारा कल्लू चुपचाप कूड़ा ले कर चला गया। कुछ दिन बाद जब अपने पैसे लेने आया तो हिदायत दी गई कि इतवार को आया कर आज साहब घर पर नहीं है और मेरे पास अभी पैसे नहीं है तुम्हें देने के लिए बाद में आना। चुपचाप कल्लू जाने लगा तभी खाने का आर्डर आया और 1400 का बिल दे कर पड़ोसन ने खाना ले लिया और कल्लू कुछ सोचते सोचते चला गया। आज इतवार था सुबह सुबह किसी के चिल्लाने की आवाज आई बाहर जा कर देखा तो सामने कल्लू खड़ा था सर झुकाये आंखों में आंसू लिए जैसे कोई गुनहगार खड़ा हो कुछ समझ पाते इस से पहले पड़ोसन चिल्लाई ये वक्त है आने का आज इतवार है और साहब के पास आज का ही दिन होता है आराम करने का और तुम ने सिर्फ 100 रुपये के लिए सुबह 9 बजे ही उठा दिया हद हैं बदतमीजी की, कल से मत आना। बेचारा कल्लू हिम्मत कर के बोला ठीक है मेडम पर मेरा दो महीने का पैसा, पैसा किस बात का इतना तो बनता भी नहीं जितना तुम ने हमें परेशान किया है और दरवाजा बंद कर दिया। बेचारा कल्लू समझ ही नहीं पाया कि आखिर उस का गुनाह क्या था। कितनी बार आसपास ऐसा माहौल देख कर मन विचलित हो जाता है कि कैसे कभी हम दिखावे के लिए हजारों खर्च कर देते हैं और कभी किसी मेहनत करने वाले के हक के सौ रुपये भी नहीं होते हमारे पास.......
Manju Bishnoi