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एक थी गीता
गीता को इंटर पास करते-करते यह लगने लगा था कि उसमें मॉडलिंग से लेकर कंप्यूटर साइंस तक में शिखर पर पहुंचने की काफी संभावनाएं हैं और ढेर सारे अवसर उसकी प्रतीक्षा में हैं।
वह फैशन परेड की टॉप मॉडलो, फिल्मी नायिकाओं और सेलिब्रिटीज का बहुत ही बारीकी से अध्ययन करती और उनकी विशेषताओं को अपने बोलचाल व रहन-सहन में उतारती। यहां तक कि वह उन्हीं की तरह सोचने की भी कोशिश करती।
वह अपनी छरहरी व सुन्दर काया तथा अपने 'एटिकेट' से इस बात पर आश्वस्त हो चुकी थी कि उसे इन क्षेत्रों में मात्र उतरने भर की देर है, सफलता तो उसके कदम चूमेगी । उसके लिए संसार संभावनाओं का क्षेत्र था। उसकी समस्या केवल संभावनाओं के चयन करने की है।

पिता भले ही छोटे से कर्मचारी थे लेकिन वह तमाम 'ऐसे आदर्शो को जानती थी जिन्होंने छोटे परिवारों' में जन्म लेकर बहुत तरक्की की थी और बहुत नाम कमाया था।

लेकिन जैसा कि अक्सर होता है संभावनाओं की तलाश में संभावनाएं खत्म होती जाती हैं। वैसा ही गीता के भी साथ हुआ। तमाम अवसर जो उसका इंतजार कर रहे थे ना जाने कहां गुम हो गए। साल दर साल गुजरते गए लेकिन कहीं कुछ होता दिखाई ना दिया।

सब कुछ देखते देखते बीतता गया। वे सपने जिन्हें बड़े ही जतन से गढ़ा गया था, साकार हो नहीं हो पाए।
लेकिन, फिर भी गीता को लगता कि एकाएक कोई चमत्कार होगा और वह बुलंदियों को छू जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा था और ना ही ऐसा होने की कोई संभावना दिख रही थी।

अंततः वही हुआ जो नहीं होना चाहिए था। या यूं कहें वही हुआ जो अक्सर होता रहा है। बाइस तक आते आते उसकी 'महत्वाकांक्षाओं की बरसी' कर दी गई अर्थात उसकी शादी हो गई।
अब वह कुमारी गीता से श्रीमती गीता हो गई। श्रीमती गीता पत्नी राजेश कुमार। राजेश पिता की पेंशन पर पलने वाला पिता का आज्ञाकारी पुत्र। चार छः प्रतियोगी परीक्षाओं का फार्म भरने के बाद उसने स्वयं अपने...