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आज का सपना - 4
कल रात मेरे सपने में देश के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी देश के एकत्रीकरण के मसीहा सरदार वल्लभ भाई पटेल आये और पूछा,
भई, हमें क्या सिला दे रहे हो
आखिर क्या चाहते हो ?
हम कभी न थे अकेले ।
हम जहां खड़े हुए
वहीं लग जाया करते थे मेले ।।
आज हमें क्यूं तुमने अकेले ही कर दिया खड़ा।
इंसानों से कई गुना आकार दिया इतना बडा।।
हमने आज़ादी के लिये आन्दोलन किया खड़ा ।
अंग्रेजों को हमारा
देश छोड़कर भागना ही पड़ा ।।
करना ही था तो हमें
किसी प्रांगण में करते स्थापित ।
तुमने तो हमें जंगल में
खुले आसमां तले किया विस्थापित ।।
500+ रियासतों को हम ले आये साथ । शर्मनाक है हम अकेले खड़े कर दिये आज ।।
काश हम आज भी होते
आन्दोलन के साथियों के साथ ।
हम आज भी बदल देते
दिन दिन बद से बदतर होते ये हालात ।।
समानता कहीं देती नहीं दिखाई ।
दीन को दुर्लभ है इलाज और दवाई ।।
शिक्षा के नाम पर
‘बिन बीरबल की बादशाहत’ सा है आचरण ।
डिजिटल के ढोल बजाते पर
अंग्रेजी का छठी से होगा अनुसरण।।
क्यूं ब्रेक मारकर धक्का लगवाया जा रहा ।
क्यूं मुझे अकेले खड़ा कर सताया जा रहा ।।
करना ही था तो
आम लोगों की बस्ती में करते खड़ा ।
खास का आकर्षण तो
हमें जीवन में कभी न रहा ।।
ऊँचाई भी आदमकद हो तो ही शोभती है। विशालकायता तो दानवों की ही होती है।।
जन का खून चूस करते हो जमा जनकोष ।
हज़ारों करोड़ करने से पहले
तुमने खो ही दिया सारा होश ।।
स्वदेशी की पैरवी करने वाले
आन्दोलनकारी की मूर्ति परदेस से।
हम आत्मा तक आहत हो गये
स्वर्ग में पहुंचे इस संदेश से ।।
गरीबी मिटाने की नहीं
गरीबी छिपाने की कशिश में है सरकार ।
लालिया के स्वागत मार्ग पर
इसीलिये खड़ी कर दी थी दीवार ।।
कलम ने आका के नाम का
सरकलम कर नाम दिया लालिया ।
जब से चुनावों में हेराफेरी की
चर्चाओं ने वहां भी जनम लिया ।।
चुनावीं मशक्कत में मशीनों को
त्याग चुकी है दुनिया ।
बावजूद विरोध मेरे देश ने
क्यूं इसे सर माथे पे बिठा लिया ?
चोर की दाढ़ी में तिनके की
नहीं कर रहे हम बात ।
जन मन भावन ही बिछे
चुनावी चौपाल की बिसात ।।
अग्रजों को आगाह करने आया है
एकत्रीकरण का सरदार ।
जनतंत्र को आहत करने की
हर कोशिश का हो तिरस्कार ।।
पक्ष विपक्ष में उलझ कर
जनहित की मत जलाओं होली ।
प्यार और सद्भाव से
'जीओ और जीने दो' की बोलो बोली ।।
तभी स्वर्ग से सपने की
दूरी के सफर को मिलेगा इन्साफ ।
जिन्दाबाद था
जिन्दाबाद ही रहे कण कण में इन्कलाब ।। - अशोक जयनारायण मंगल