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जिंदगी बाकी है......
“अब इस उम्र में मां जी को कहां ऐसी  चटक भारी साड़ी पहनने का शौक है. आप तो कोई हल्की सिफॉन या कॉटन  की साड़ी दिखा दो भईया.” अपनी महंगी डिजाइनर साड़ी का बैग काउंटर पर एक तरफ रखते हुए स्वेता ने दुकान वाले से कहा.   मंजू जी ने बड़ी हसरत से छोटे बेटे की शादी में पहनने के लिए चंदेरी सिल्क की चटक मेंहदी कलर की साड़ी दुकान वाले से निकलवाई थी. सारी जिंदगी जरूरतों को पूरा करने में शौक पूरा करना तो रह ही गया था. पर अपने छोटे बेटे की शादी में उन्होंने अपने सारे अरमान पूरे करने की सोच रखी थी.  दुकान वाले ने  जैसे ही साड़ी समेट कर हटाना चाहा, मंजू जी ने उसे रोकते हुए कहा “ रुको बेटा तुम यही साड़ी पैक कर दो मुझे यही पसंद है.”  फिर मुस्कुराते हुए उन्होंने स्वेता से  कहा...."बहु चटक और भारी साड़ी का शौक तो मुझे भी है. बस जरूरतों को पूरा करने में भूल गई थी. पर अब तो मेरे दोनों बेटे अच्छा कमा लेते हैं तो अब तो  मेरे सारे अरमान पूरे करने के दिन है. तुम परेशान न हो मैं ये साड़ी बेझिझक पहन लूंगी.


             “ बेटा तू जल्दी से बिल क्लियर कर हमें और भी खरिददारी करनी है.”    अपनी साड़ी का बैग हाथों में ले दुकान से बाहर निकलते हुए मंजू जी ने शेखर की तरफ मुड़ कर कहा और  स्वेता को अवाक मुद्रा में छोड़ मुस्कुराती हुई बाहर निकल गई.

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हम अक्सर अपने घर के बड़ों के उम्र का हवाला देते हुए  उनके शौक और अरमानों को नजर अंदाज कर देते हैं. मगर एक बार रूक कर उनकी जगह खुद को रख कर देखे. उम्र के नाम पर उनके लिए ये सोचना कहां तक सही है. एक बार प्यार से पूछ कर या जिद कर के तो देखिए उनके अंदर भी अभी उनके शौक और अरमानों की जिंदगी बाकी है.
© Ranjana Shrivastava