अंधविश्वास
मैं किसी और देश की बात नहीं करूंगा क्युंकि मुझे जितना फर्क अपने देश से पड़ता है उतना किसी और से नहीं. मैंने जहाँ तक पढ़ाई की है उसमें भारत में अंधविश्वास ज़्यादा रहा है. कभी पर्दा प्रथा, कभी सती प्रथा, लड़का और लड़की में भेदभाव इत्यादि. पर मै आज इन बुराईयों पे तो काबू पर लिए हैं लेकिन अशिक्षा, जागरूकता, आपसी एकता और मै से हम और हमारा, ये सोच नहीं ला पाए हैं. मै आज तक पढ़ता आया हूँ की भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है पर फिर भी अभी भी आपस में मज़हब के लिए दंगे होते हैं. ये कहना ग़लत नहीं होगा की अब जब देश कोरोना महामारी से जूझ रही है फिर भी राजनैतिक दलों को कुर्सी का लोभ है. और जनता ही किस स्वप्नलोक में जी रही है ये कितने शर्मनाक बात है की लोग अब जब वैक्सीन मौजूद है और बहुत लोग लगवाना ही नहीं चाहते हैं. इसको भी मैं अंधविश्वास में ही गिनता हूँ.
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