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रसीले आम!🤣😁
😁😁😁😁😁😁😁😁😁
(बचपन में सुनी कहानियों रंग आधारित)

पंडित बद्री प्रसाद बड़े धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। पूजा-पाठ में कभी कोताही न बरतते थे। सप्ताह में कम से कम दो-तीन बार किसी न किसी साधु को वो अपने साथ ले आते और बड़ी आत्मीयता से जो भी घर में बना होता, उसे पहले खिलाते फिर ख़ुद खाते।

उनकी धर्मपत्नी सुलोचना उनका पूरा ध्यान रखती थी। हां, जीभ की चटोरी थी। मनपंसद खाने की चीज़ या स्वादिष्ट पकवान मिल जाए तो फ़िर स्वयं को रोक न पाती थी।

उस रोज़ पंडित बद्री प्रसाद जी ने बाज़ार से दो बड़े-बड़े रसीले आम खरीदे। इतने बड़े कि दो-तीन जन भरपेट खा लें। घर लौटने लगे तो एक साधु को भी साथ ले लिया।

साधु का ध्यान भी उन पके हुए रसीले आमों पर टिका हुआ था। आमों के रंग और स्वाद पर तो किसी की भी नीयत डोल सकती है! “काश! आज खाने को दोनों आम मिल जाएं तो तृप्ति हो जाए।”— साधु मन ही मन सोच रहा था।

घर पहुंचकर पंडित जी ने साधु को चौखट के पास बने खुले आंगन में खाट पर बैठा दिया और रसोई में जाकर पंडिताइन को दोनों रसीले आम देते हुए कहा,—“ भागवान, इन दोनों आमों को अच्छी तरह धोकर टुकड़ों में काट लो। साधु महाराज भी आएं हैं।बाहर बैठे हैं। उन्हें खिलाने के बाद मिलकर दोनों खाएंगे। बड़े ही खुशबूदार रसीले आम हैं।”
कहकर पंडित जी रसोई से बाहर आ गए और एक तरफ बने स्नानघर में हाथ मुंह धोने लगे। मन में उनके भी कहीं न कहीं रसीले आम छाए हुए थे।

खाट पर बैठे साधु यूं तो आंखें बंद किए साधना मुद्रा में थे किन्तु बीच- बीच में एक आंख खोल रसोई की तरफ़ देख लेते कि रसीले आम अब आए, अब आए! भूख और बढ़ गई थी।

उधर, रसोई में आम धोते-धोते पंडिताइन सुलोचना का मन रसीले खुश्बूदार आमों पर मोहित हो गया। नाम के अनुरूप उसकी बड़ी-बडी आंखें रसीले आम देख और ज़्यादा खुल गई। आखिर उसने चाकू से एक टुकड़ा काट कर खा लिया। 😜🤤

आम का दैवीय मीठा स्वाद उसे अन्य लोक में ले गया। अब तो पंडिताइन का जीह्वा लोभ जाग उठा। एक, दो, तीन, चार….और दोनों रसीले आमों के सारे टुकड़े उसने कुछ ही पलों में निपटा डाले।
🤓

“अरे, ये मैंने क्या कर डाला?! अब पंडित जी न छोड़ते मुझको। साधु और पंडित जी को जवाब दूंगी? अब तो कोई जुगत लगानी होगी।”— पंडिताइन सुलोचना ने मन में सोचा और एक योजना तैयार कर ली।
🤓🤓

जैसे ही पंडित जी हाथ मुंह धोकर रसोई की तरफ आने लगे तो पंडिताइन ने तुरंत एक पुराना लंबा चाकू पंडित बद्री प्रसाद जी को पकड़ाते हुए कहा—“ पंडित जी, आम नहीं काटे जा रहे।यह चाकू तो कुंद हो गया है, इसे ज़रा रेतीले पत्थर पर घिस दीजिए। तीखा हो जाएगा तो आसानी हो जायेगी।”
पंडित बद्री प्रसाद जी का तो यह पसंदीदा कार्य था।सो लगे वो एक किनारे जाकर पत्थर पर चाकू घिसने।
🔪🔪🔪

उधर पंडिताइन चुपके से साधु महाराज के पास पहुंची और धीमे से फुसफुसा कर कहा—“ ओ साधु महाराज, भाग लो यहां से फौरन। आजकल पंडित जी को अजब बीमारी हो गई है। जिस साधु को भी पंडित जी घर पर लिवा लाते हैं, उसके नाक या कान में से एक तो काट लेते हैं!”👃👂🙊🙉

साधु महाराज अड़ गए। समझ गए पंडिताइन रसीले आम नहीं खिलाना चाहती। पंडिताइन ने इशारे से साधु को चाकू तेज करते पंडित दिखा दिए। पंडित जी पूरी तल्लीनता से चाकू घिस-घिस कर तेज कर रहे थे।

साधू महाराज की सिटी-पिटी गुम हो गई। अपने नाक-कान पर हाथ रखकर सोचने लगे—“ हे भगवान, पंडित जी तो पगला गए हैं। ये तो मुझे शूर्पणखा बना कर छोड़ेंगे! अब तो भाग लेने में ही समझदारी है।” और साधु महाराज ने अपना झोला उठाया और सिर पर पांव रखकर दौड़ लिए।🙊🙉

पंडिताइन तुरंत पंडित बद्री प्रसाद जी के पास पहुंच गई और बनावटी घबराई आवाज़ में पंडित जी से बोली—“ पंडित जी, वो साधु महाराज तो चोर निकले। दोनों रसीले आम लेकर भाग गये! पकड़ो उसे।”

पंडित जी भी तैश में आ गए और साधु महाराज को पकड़ने के लिए उसके पीछे नंगे पैर दौड़ लिए। यहां तक की चाकू रखना भी भूल गए!🏃🏃

अब साधु आगे-आगे और चाकू लिए पंडित जी पीछे-पीछे।

“अरे, दोनों (रसीले आम) नहीं तो एक तो दे जा"—पंडित जी ने दौड़ते-दौड़ते साधु से मिन्नत की।🏃🏃

उधर साधु महाराज ने सोचा कि पगलाए पंडित जी उनके नाक और कान में से किसी एक को काट के देने की बात कर रहे हैं! सोचने मात्र से ही उनकी आत्मा कांप उठी।

साधु महाराज ने अपनी दौड़ने की गति यूं बढ़ा दी मानो चीते से जान बचाने के लिए हिरण कुलांचे भर रहा हो। थोड़ी देर में ही वो नज़रों से ओझल हो गए।

इस दरम्यान, पंडिताइन ने आम के छिलके और गुठलियां पास की क्यारी में ससम्मान दफ़ना दिए।
पंडित बद्री प्रसाद आखिर खाली हाथ वापिस लौट आए और पंडिताइन सुलोचना को ढांढस बंधाते हुए कहने लगे—" चिंता न कर भागवान। कल तुम्हारे लिए चार रसीले आम ला दूंगा।"
😁😜🤤🤓😁🤣😇🙊🙉😜🤓

—Vijay Kumar—
© Truly Chambyal