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"घनिष्ठ आशिकी"
ये सूरज हर रोज शाम को पश्चिम दिशा में लगे इस पेड़ पर बैठकर इस खिड़की से अंदर बैठी अपनी प्रेमिका को एकटक निहारता रहता है। प्रेमिका को एकटक निहारते हुए इसकी आंखें इतनी थक जातीं कि संध्या ढलते ही यह इसी पेड़ पर बैठे हुए धीरे-धीरे नींद के आगोश में चला जाता है। फ़िर पता नहीं कौन इसे हर रोज पूर्व दिशा की पहाड़ी पर ले जाकर लिटा देता है जहां ये अपनी आंखें खोलता है। वहां अपनी प्रेमिका को ना पाकर वह फिर से अपनी प्रेमिका की याद में दिन भर कठोर परिश्रम करके इसी पेड़ पर पहुंच जाता है। फिरसे.................। आशिकी हो तो इसके जैसी हो अन्यथा ना हो।😍😍😍🌹🌹🌹।

निधि वर्मा