हा तब इंसान जगेगा
लिखुगा जब मैं एक कोने में पड़ी खाट को
उस पड़े बीमार निसहाय बाप को
उसके अंतर्मन में उमड़ी व्यथा को
एक 70 साल की बूढ़ी माई को
उसकी करुण चीत्कार को
उस ममतामई मां के रूदन को
हजारों बेटो का चेहरा शर्म से झुकेगा
हा तब इंसान जगेगा
लिखुगा मैं जब एक बेटी के मन को
उसकी ओर लार टपकाती निगाहों को
अपने अपनो में भी उसमे पनपपते हुए डर को
मोमिता जैसी खबर...
उस पड़े बीमार निसहाय बाप को
उसके अंतर्मन में उमड़ी व्यथा को
एक 70 साल की बूढ़ी माई को
उसकी करुण चीत्कार को
उस ममतामई मां के रूदन को
हजारों बेटो का चेहरा शर्म से झुकेगा
हा तब इंसान जगेगा
लिखुगा मैं जब एक बेटी के मन को
उसकी ओर लार टपकाती निगाहों को
अपने अपनो में भी उसमे पनपपते हुए डर को
मोमिता जैसी खबर...