बेटियां
कितने ज़ुल्म और दर्द सहती हैं, परियों के देश से ये बेटियाँ आती हैं
कोमल और निर्मल हृदय लिए, हमारे घर आँगन को महका जाती हैं
हमारे सारे दुःख दर्द तकलीफों को बलाओं में अपने संग ले जाती हैं
बाबुल के घर से विदा होकर, मायका बिल्कुल सूना कर जाती हैं
कितने ही ज़ुल्म और दर्द ससुराल में सहती हैं, जो सुने वो रोने लगता है
ज़ुल्म की दास्तां पुरानी होती जाती है और सहते सहते दर्द कम लगता है
ज़ुल्म-ओ-सितम की दास्तां ना पढ़ सकोगे ना कभी सहन कर सकोगे
जाने ये कड़ियाँ कहाँ जाकर रुक कर टूटेंगी या शायद कभी वो...
कोमल और निर्मल हृदय लिए, हमारे घर आँगन को महका जाती हैं
हमारे सारे दुःख दर्द तकलीफों को बलाओं में अपने संग ले जाती हैं
बाबुल के घर से विदा होकर, मायका बिल्कुल सूना कर जाती हैं
कितने ही ज़ुल्म और दर्द ससुराल में सहती हैं, जो सुने वो रोने लगता है
ज़ुल्म की दास्तां पुरानी होती जाती है और सहते सहते दर्द कम लगता है
ज़ुल्म-ओ-सितम की दास्तां ना पढ़ सकोगे ना कभी सहन कर सकोगे
जाने ये कड़ियाँ कहाँ जाकर रुक कर टूटेंगी या शायद कभी वो...