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वक़्त ही बलवान
साल के बारहों महीनें सेठ प्रसादी लाल की हवेली पर बड़े बड़े धनासेठों और नेताओं की आवाजाही लगी रहती थी। सेठ प्रसादी लाल को लोग किस्मत का सबसे ज्यादा धनी मानते व्यक्ति थे। मानते भी क्यों न किसी ज़माने में जिस परिवार के घर खाने के दाने भी न थे वो रातों ही रात में शहर का सबसे अमीर परिवार बन गया था। जो लोग कभी टूटे फूटे मकान में रह कर गुज़ारा कर रहे थे। आज वो शहर के बीचों बीच करोड़ो रुपयों की हवेली के मालिक थे। नौकर चाकर, गाड़ियाँ, कारोबार, बड़े बड़े नेता अधिकारियों के साथ उठना बैठना अब सेठ प्रसादी लाल के लिए बहुत आम बात हो गई थी। सेठ प्रसादी लाल के घर में उनके दो बेटें, बड़े बेटे की पत्नी और एक पोता था। पर अपनी कोई बेटी नहीं थी लेकिन बड़े बेटे की शादी के बाद उनके परिवार में ये कमी भी पूरी हो गई थी। सेठ प्रसादी लाल की पत्नी का स्वर्गवास सालों पहले हो गया था। सेठ के दोनों बेटे पूरी लगन और मेहनत से कारोबार को आगे बढ़ने में उनका साथ देते थे। इसका एक कारण शायद यह भी था कि प्रसादी लाल और उनके परिवार ने गरीबी और दुःखों से भरें ऐसे दिन देखें थे जिनकी कल्पना मात्र से ही कोई भी व्यक्ति काप उठे। जहाँ बड़े बेटे का ससुर शहर का बहुत बड़ा नेता था वही छोटे बेटे के लिये भी रोज़ किसी न किसी उच्चे घराने का रिश्ता आता रहता था।
जिस रफ्तार के साथ सेठ प्रसादी लाल का कारोबार और नाम बढ़ रहा था उसी तेज रफ़्तार से वक़्त भी बढ़ रहा था। एक दिन किसी समारोह से घर वापिस आते हुए रास्तें में जिस गाड़ी में उनके दोनों बेटों और बहू थे दुर्घटनाग्रस्त हो गई और मौके पर ही तीनों की मृत्यु हो गई थी। घर पर अपनें पोते के साथ अपनें बच्चों का इंतज़ार कर रहें सेठ जी को इस बात का ज़रा भी अंदाज़ नहीं था कि जिस किस्मत ने उन्हें फर्श से अर्श तक पहुँचाया आज उसी किस्मत ने उनसे उनके बेटों और बहू को एक लम्हें में छीन लिया। सेठ प्रसादी लाल के कानों में जब ये खबर पड़ी तो उनकी आँखों के सामने जैसे घना अँधेरा सा छा गया था। जिस किस्मत ने उन्हें ऐशोआराम नाम शोहरत दी शहर का सबसे अमीर आदमी बनाया था आज उसी किस्मत ने उनके दोनों बेटों और बहू को उनसे छीनकर उन्हें पहले से भी ज़्यादा गरीब कर दिया था।


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