...

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पहली मुलाकात
मामा की बारात मंदिर से निकल ही गई थी पर अभी तक मेघा तैयार नहीं हुई थी। मां के बुलाने पर बस इतना ही बोली तुम चलो मैं आई मां। अपने बालो और लहंगे को जैसे- तैसे संभालती मेघा बारात तक पहुंची।
वहां सब खुशी में नाच रहे थे।मेघा भी सबके साथ नाचने लगी। तभी पीछे से एक आवाज़ आई अरे कोई हमें भी नाचने की जगह दो । यह आवाज़ मामा के दूर के भाई हिमांशु की थी । मेघा ने पहली बार हिमांशु को तब देखा था जब वो छोटे बच्चे थे। मेघा ने ज्यादातर उसके बारे में उसकी बहन से सुना था। मेघा उसको देखकर कही खो सी गई थी कि अचानक आवाज़ आई हाय! मेघा। ये कोई ओर कि नहीं बल्कि की हिमांशु था ।
(हिमांशु) तुम कितनी बड़ी हो गई हो ।
(मेघा) हां तो क्या छोटी ही रहूंगी। मेघा ने इतरते हुए बोला और वहाँ से चली गई।

यह देख के हिमांशु जोर से हंसा और बोली ओह लगता हैं मैडम नाराज हो गई। ओर वो भी बरातियों के साथ अंदर चला गया। थोड़ी ही देर में रस्मे शुरू हो गई और सब बाराती खाना खाने लगे। खाने के टेबल पर हिमांशु ने मेघा को चिढ़ते हुए कहा - अकेले अकेले खाना शुरू कर दिया मुझसे पूछा भी नहीं। मेघा ने उसे मज़ाक में कह दिया छोटे बच्चे हो क्या जो मैं खिलाऊंगी
तभी खाओगे।

हिमांशु को मेघा से नोक-झोंक करने में मजा आता था और मेघा अपने हाज़िर जवाबो से उसको चुप करवा देती थी।
अब शादी पूरी हो चुकी थी। सब बाराती बस में बैठने लगे मेघा और हिमांशु साथ में बैठ गए।बारात अब घर की ओर बढ़ने लगी। रास्ते में मेघा सो गई ।हिमांशु की नज़र मेघा से हट नहीं रही थी।उसकी उड़ती हुई लट बार बार उसके चेहरे पर आ रही थी। हिमांशु ने बड़े प्यार से उसके बालो को जैसे ही पीछे किया (मेघा )घबरा के जाग गई।
(मेघा)- ये क्या कर रहे थे।
(हिमांशु) - अरे ये तुम्हारे बाल मुझे सोने नहीं दे रहें थे।
(मेघा) ने अपने बालो को संभाला और दोंनो सो गए।
बारात अगली सुबह घर आ गई। सभी रिश्तेदार अपने अपने घर जाने के लिए तैयार हो रहे थे। मेघा तैयार होकर नीचे आई। हिमांशु ने उसको देखकर कर हाय किया मेघा ने भी इशारे में हाथ हिला दिया।
सब नाश्ता कर रहें थे । हिमांशु ने मेघा को इशारे से बुलाया। मेघा उसके पास चली गई।
(हिमांशु )- आज जा रही हो घर वापिस ?
(मेघा) - हां पापा को जाना हैं कल कहीं तो जाना पड़ेगा घर।
(हिमांशु) - घर जाके मुझे याद करोगी?
(मेघा) - मैं ओर तुम्हें याद करूंगी पागल हो क्या ।मेघा ने हस्ते हुए कहा।
(हिमांशु) - मैं तो बहुत याद करूंगा तुम्हें ।
(मेघा ) क्यू कोई ओर नहीं मिलता लड़ने
के लिए जो मुझे याद करोगे।
(हिमांशु) - नहीं ! जो मज़ा तुमसे लड़ने में हैं वो किसी ओर के साथ कहां।
(मेघा) - अच्छा बेटा जी ! चलो मैं चलती हूं मां बूला रही हैं ।
अचानक से हिमांशु ने मेघा का हाथ पकड़ लिया ओर अपने करीब लाकर बोला।
(हिमांशु) - मेघा मैंने बहुत सी लड़कियों से हंसी-मजाक किया हैं पर जो एहसास मैंने तुम्हारे करीब रहकर महसूस किया हैं वो किसी के साथ नहीं किया।
इन दो दिन में कब तुम से लड़ाई झगड़ा करते- करते कब तुमसे प्यार हो गया पता ही नहीं चला । कब ये दिल तुम्हारा हो गया पता ही नहीं चला। I Love you megha.
(मेघा) चुपचाप सब सुन रहीं थी शर्म के मारे उसके मुंह से कुछ निकला ही नहीं।
वो बस हाथ छुड़ाकर वहां से चली गई।

थोड़ी ही देर में मेघा और उसका परिवार गाड़ी में बैठकर जाने के लिए तैयार हो गया।
छत पर खड़ा हिमांशु दुःखी मन से मेघा को देख रहा था। तभी हिमांशु की बहन का बेटा उसको के कागज़ पकड़ा कर गया।

जिसमें लिखा था "अपना ख़याल रखना घर जाकर तुम्हें फोन करूंगी"
( तुम्हारी मेघा)

हिमांशु ने बड़ी खुशी से नीचे देखा। मेघा ने प्यार से उसे हाथ हिला कर बाय की ओर वो चली गई।
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