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कन्यादान (तृतीय भाग)
संडे के दिन रामलालजी अपने परिवार सहित विजय बाबु को लेकर मनीष बाबु के घर पहुँचे। मनीष बाबु ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया।

मनीष बाबु : धन्य भाग हमारे जो आप लोग पधारे.... आने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई न.....

विजय बाबु : नहीं कोई खास नहीं....
मनीष बाबु : आइए, अंदर चलें.....

विजय बाबु और रामलालजी को सोफे पर बिठाते हुए मोहिनी और प्राची को अपनी पत्नि शालिनी की तरफ इशारा किया। शालिनी ने उन्हें सोफे पर बिठाया।

शालिनी मेहमानों को चाय नाश्ता का इंतज़ाम करने के लिए अंत:खाने में चली गई। तब तक सतीष भी वहां आ गया। मनीष बाबु ने उसे पास में बिठाया और सबसे परिचय कराया। सतीष ने सभी को नमस्कार और अभिनंदन किया।

विजय बाबू : हमारी बिटिया के लिए शिक्षा सर्वोपरि है। स्कूल फाइनल में वह डिस्ट्रिक्ट टापर रही है और स्कालरशिप प्राप्त कर चुकी है। अभी आई. ए. एस. की तैयारी में तल्लीन है।

मनीष बाबू : यह तो बहुत अच्छी बात है। सतीष अभी सी.ए. कर रहा है। उसकी इच्छा सी. एस. ज्वाइन करने की हैं। अगले सेमेस्टर से ज्वाइन करेगा।

मोहिनी : प्राची अभी एंट्रेंस की तैयारी कर रही हैं। अभी वह अपना ध्यान भटकाना नहीं चाहती। पूरी मेहनत वहीं केंद्रित रखना चाहती हैं।

मनीष बाबू : विजय बाबू ने हमें सब बता दिया है। प्राची को यहाँ नए सिरे से शुरुवात करने की जरुरत नहीं पड़ेगी। वह अपनी तैयारी कंटीन्यू करे, यही हमारी भी इच्छा है। उसे किसी तरह की दिक्कत नहीं होगी। सतीष उसका पूरा ध्यान रखेगा।

रामलालजी : हमारी यही चिंता है। प्राची हमारी इकलौती संतान हैं। हमने उसकी सारी इच्छाएं पूरी की है। अब यह इच्छा भी पूरी हो जाए इसके लिए हम प्रयासरत हैं।

मनीष बाबू : प्राची की इच्छा अवश्य पूरी होगी, यह हमारा वादा है। आपलोग निश्चिंत होकर यह जिम्मेदारी हमें निभाने दीजिए। हम न सिर्फ प्राची के साथ हैं बल्कि उसका खर्च भी उठायेंगे। रामलालजी, हम सिर्फ प्राची को मांग रहे हैं। हमारे घर वह बहू नहीं बेटी बन कर आए। हमें भगवान ने सब कुछ दिया है। दान दहेज हमें नहीं चाहिए, बस साथ में प्रेमपूर्वक रहने वाला सदस्य चाहिए। उम्मीद करता हूँ आप लोगों को कोई तकलीफ नहीं होगी और प्राची भी सहर्ष स्वीकार करेगी।

शालीनी : लीजिये चाय आ गई। पहले चाय नाश्ता कर लें।

मनीष बाबू : हां भाई साहब, पहले चाय नाश्ता कर लें तो ठीक रहेगा।

(चाय नाश्ते के बाद)
मनीष बाबू : रामलालजी, आइये आपको अपना गार्डेन दिखाते हैं। तब तक बच्चे भी कुछ बातें कर लेंगे।

शालिनी : (मोहिनी से) आइए बहनजी आपको भी गार्डेन घूमाएं.... अच्छा लगेगा....

विजय बाबू : हां भाई, चलो मनीष बाबू का गार्डेन भी देख लें। इसी बहाने बच्चे भी एक दूसरे को समझ लें। क्यों रामलालजी....

रामलालजी : आप ठीक कहते हैं.... चलो चलते हैं....

मोहिनी : (प्राची से) बेटा तब तक तुम सतीष से बातें करो.... हमलोग अभी आए....

(गार्डेन में)
मनीष बाबू : यह देखिए रामलालजी चमेली का पौधा.... ये रहा गूलाब.... यह रहा मोगरा.... यह रहा अपराजिता.... यह हैं गूड़हल.... यहां तूलसी....

विजय बाबू : बागीचे में सारे फूल हों तो इकठ्ठे सभी फूलों का सुगंध मिलता हैं....

रामलालजी : हां, परिवार ऐसा ही हो तो खुशबू से सराबोर होता है.... ऐसे परिवार में उत्तम पराग के लिए तितलियों और भौरों का दल खुद ही चक्कर लगाते रहते हैं....

मनीष बाबू : बड़ी उत्तम बात कही भाईसाहब आपने.... मन खुश हो गया.... जब तक जीवन में मिठास न हो, जीवन बोझ बन जाता है.... जीवन में कोई आनंद नहीं होता....

रामलालजी : जीवन के मिठास में बच्चों का अहम योगदान होता है.... बिना उनके योगदान के चाहें जितना भी मिठास घोल लें, रंग फीका रह जाता है....

विजय बाबू : सच रामलालजी.... बच्चों के बिना हर रंग फीका होता है....

शालिनी : (अचानक आकर) क्या बात है भाई, जीवन के रंग में क्या हमलोगों का कोई योगदान नहीं....

मनीष बाबू : अरे भागवान, हम बच्चों की बातें कर रहे हैं....

शालिनी : मैं तो मोहिनी बहन के साथ चुटकी ले रही थी.... जानते हैं, प्रोफेसर होकर भी घर का पूरा ध्यान रखती हैं और प्राची इन्हीं की परछांई है....

रामलालजी : सच कहा आपने.... प्राची मोहिनी की परछांई है.... पढ़ाई से लेकर हर चीज का ध्यान रखती हैं....

शालिनी : हम दोनों बहनों की तरफ से तो रिश्ता पक्का.... क्यों मोहिनी बहन....

मोहिनी : हां.... हां.... बस बच्चे राजी तो....

शालिनी : आजकल के बच्चे बड़े समझदार हैं.... बस हमें राजी होना हैं....

सोफे पर बैठे प्राची और सतीष के बीच काफी वक्त तक चुप्पी छाई रही। आखिर में सतीष ने चुप्पी तोड़ी।

सतीष : बुरा न मानें तो अर्ज करुं.... आज के जमाने में नारी एक अद्भूत शक्ति के रुप में उभर रही हैं। परिवार एवं समाज के विकाश में उसका बहुत बड़ा योगदान हैं....

प्राची : परिवार के संचालन में पुरुष एवं नारी उभय का ही बराबर का योगदान होता है.... दोनों की अपनी सीमाएं है जो उन्हें बैलेंस करती है.... किसी के भी अत्यधिक दखल या लापरवाही से संतुलन बिगड़ जाता है, जिसका खामियाजा परिवार को सामुहिक रुप से उठाना पड़ता है.... संतुलन बना रहे तो कोई समस्या नहीं आ सकती....

सतीष : शिक्षा में गणित हमें सुखों को जोड़ना या दुखों को घटाना तो नहीं सिखाता पर यह सीख अवश्य देता हैं कि समस्या चाहें जितनी भी कठिन हो, हल अवश्य निकलता हैं बशर्ते हम उसे सही तरीके से सुलझाएं....

प्राची : ऐतिहासिक घटनाएं बताती है कि भविष्य के परिणाम में अतीत का योगदान होता है, इसलिए हर कदम सोंच समझकर रखना चाहिए....

सतीष : हम खुले विचारधारा की बातें तो करते हैं परंतु पारिवारिक जीवन में हमेशा कुछ न कुछ कन्फिडेंसिअल रखना चाहते हैं....

प्राची : ....और यही कन्फिडेंसिअल, शक को उत्पन्न करती हैं जो सारी विवादों की जड़ है.....

सतीष : मेरे समझ से हमें पारिवारिक जीवन विशेषकर पति पत्नि में सारी बातें ओपेन रखनी चाहिए ताकि कोई समस्या न आए और यदि कुछ कन्फिडेंसिअल छूट गई हो तो समय रहते संभाल लेना चाहिए ताकि बिगड़ने की नौबत न आए....

प्राची : तुम ठीक कहते हो पर प्रैक्टिकली लड़की को कन्यादान में प्राप्त दान की बस्तु समझा जाता हैं.... लोग मानते हैं कि उसे जैसे रखें वैसे रहना चाहिए....

सतीष : यह लोगों की गलत सोंच का परिणाम है। लोग दहेज में प्राप्त बस्तुओं का तो ठीक उपयोग करते हैं। मैने कभी किसी को कार में सोते हुए और बेड को ड्राइव करते हुए नहीं देखा। दहेज में मिली बस्तुओं को उतना ही संभालकर रखते हैं जितनी अपनी.... समस्या कन्यादान में नहीं बल्कि लोगों के सोंच में है। कन्यादान में कन्या का पिता कन्या का दान इस सोंच और उम्मीद के साथ करता है कि अब तक जिस तरह उसने कन्या के सम्मान व वजूद की रक्षा की है, आगे से उसका दामाद उसी तरह उसकी रक्षा करेगा.... हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कन्यादान में वर का हाथ नीचे होता है, जिसका मतलब कि वह जिम्मेदारी लेता है उसके भार उठाने एवं निर्वहन करने की, जिससे वह इंकार नहीं कर सकता.... कन्या जिम्मेदारी है न कि महज उपभोग की बस्तु....

प्राची : तुम ठीक कहते हो पर लोग तो प्रेम को अपना हक मानते हैं....

सतीष : लोग प्रेम का गलत मतलब निकाल लेते हैं। वे वासना को प्रेम का नाम दे देते हैं और उसे बेवज़ह बदनाम करते हैं। प्रेम कोई बस्तु नहीं जिसे लिया या दिया जा सके.... यह कोई कार्य नहीं जिसे किया जा सके.... प्रेम तो उपासना है, इबादत है, समर्पण है जहाँ एक दूजे के लिए त्याग की भावना होनी चाहिए, ना कि पाने की लालसा। प्रेम में शिकायत नहीं होती.... जब चाहत ही नहीं तो शिकायत की गूंजाइश कहां से....

प्राची : काश सभी लोग इस परिप्रेक्ष्य में सोंचते तो दूनिया में कितनी खुशहाली होती....

सतीष : तब तो परिवारों की सब झंझट समाप्त हो जाती.... पर इसका भजन करने से क्या फायदा.... इसे आत्मसात् करना पड़ता है तब जाकर जीवन में शांति और खुशहाली आती हैं....

गार्डेन में घूमते काफी वक्त हो चुका था....

रामलालजी : मनीष बाबू अब हमें चलना चाहिए.... बच्चे बैठे बोर हो रहे होंगे....

मनीष बाबू : हां चलिए भाई साहब....

सभी आकर सोफे पर बैठ गए....

मनीष बाबू : क्यों सतीष, क्या बात हुई....

सतीष : पापा, प्राची मेरी बेस्ट फ्रेंड हैं....

मोहिनी : प्राची तुम्हारी क्या राय हैं....
प्राची : सतीष मुझे मंजूर है....

शालिनी : मैं कहती थी न बच्चे राजी हो जाएंगे....

विजय बाबू : बधाई हो....

मनीष बाबू : अरे मूंह मीठा कराओ भाई....
शालिनी : मैं अभी ले आई....

मनीष बाबू : एक और चाय हो जाए....
शालिनी : बिलकुल, अभी किए दे रही हूं....

चाय जलपान के बाद रामलालजी विदाई की इजाजत मांगने लगे....

मनीष बाबू : शालिनी, बेटी का शगुन तो ले आओ....
शालिनी : जी अभी ले आई....

शगुन की रश्म के बाद

शालिनी : क्यों न प्राची का एक ज्वाइंट और एक फेमिली फोटो हो जाए....

मोहिनी : हां श्योर....
फोटोशूट कर दोनों फेमिली ने आपस में शेयर कर लिया।

मनीष बाबू : रामलालजी, मैं पंडितजी से दिखाकर आपको फोन करता हूँ....

रामलालजी : ठीक हैं, अब इजाजत दीजिए.... नमस्ते....

मनीष बाबू : जी नमस्ते....

मनीष बाबू से इजाजत लेकर रामलालजी ने अपने परिवार सहित प्रस्थान किया, साथ ही विजय बाबू भी निकल पड़े।

दूसरे दिन मनीष बाबू ने पंडितजी को बुलाकर शादी के लिए शुभ मुहूर्त निकलवा लिया। फिर रामलालजी को फोन कर सारी बातें बताई। रामलालजी ने अपनी सहमति जताई। फिर शादी की तैयारियां दोनों घरों में शुरु हो गई। सबसे पहले मैरेज हाल बुक किया गया। इसके बाद आमंत्रण के लिए कार्ड छपवाना जरूरी था सो कार्ड की रुपरेखा तैयार की गई और फिर छपवाने हेतु छापाखाने में भेंजा गया। मेहमानों की लिस्ट तैयार की गई। बैंड पार्टी की बुकिंग, कैटरर की बुकिंग सबमें विशेष ध्यान रखा गया ताकि शादी में किसी तरह की कमी न हो और कार्यक्रम को यादगार बनाया जा सके।

वैसे तो मनीष बाबू ने कोई दहेज नहीं मांगा था पर रामलालजी अपने से पीछे नहीं रहना चाहते थे। अपनी छमतानुसार हर सामग्री देने की तैयारी कर रहे थे। आखिर इकलौती बेटी की शादी थी। आभूषणों के आर्डर दिए गए। हर रश्म के लिए अलग अलग कपड़े। शादी के लिए विशेष लहंगा शूट, सब एकदम आधुनिक। मनीष बाबू के घर भी तैयारियां जोरों की थी।

© Mreetyunjay Tarakeshwar Dubey