...

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हिरण की अंतरात्मा की आवाज।
हिरण - छोड़ो, छोड़ो मुझे, कहां ले कर जा रहे हो। मुझे अपने परिवार के साथ रहना है। मुझे कहीं नहीं जाना।

जंगल का अधिकारी -
तुम्हें जाना ही होगा । ऊपर से हुक्म आया है की अच्छे मोटे ताजे हिरनों को पकड़ कर लाओ। सुबह से शाम हो गई और अब जाकर तुम पकड़ में आए हो। कितनी मेहनत करनी पड़ी है तुम्हें पकड़ने के लिए। क्या तुम्हें पता है?

हिरण-
पर पकड़ना ही क्यों है? क्या चाहिए तुम्हे मुझ जैसे बेजुबान और मौसूम प्राणी से?

अधिकारी -
तुम्हें किसी का भोजन बनना है आज रात।

हिरण -
भोजन, कैसा भोजन, किसका भोजन। अरे भाई, कौन हो तुम और मुझे ही क्यों किसी का भोजन बनना है?

अधिकारी -
चीतों का जिन्हे नामीबिया से हिंदुस्तान खास तौर पर लाया गया है । आठ आठ चीते आए हैं , खुंकार और खतरनाक। और अब उन सब चीतों को हम रोज बढ़िया बढ़िया और ताजा मांस खिलाते है ताकि उनको अपने घर और देश की कमी न महसूस हो।

हिरण-
वाह रे अधिकारी । कितने अच्छे विचार है तुम्हारे।
काश ये विचार सिर्फ बाहरी चीतों के लिए ना होकर पूरे देश में रहने वाले प्राणियों के लिए होते तो कितना अच्छा होता। क्या हमें जीने का कोई अधिकार नहीं? क्या तुम्हारे अधिकारियों का हम पर कोई हक बनता है जो वो ऐसा कर सकते हैं?
बिलकुल नहीं बनता। भगवान ने जिस प्रकार तुम्हें बनाया हैं उसी प्रकार हमें भी बनाया है। कृपया करके चले जाओ यहां से और बोल दो अपने आला अधिकारियों से जिन्होंने मुझे पकड़ने का फरमान जारी किया है कि उनका मुझ पर कोई हक नहीं है। जाओ मेरी मां आती ही होगी और अगर उसने तुम्हे ऐसी गन्दी हरकत करते देख दिया तो वो तुम्हे मार डालेगी। जाओ , चले जाओ यहां से जल्दी।

अधिकारी-
हा हा हा हा हा। अरे मूर्ख हिरण, कौन से युग में जी रहा है पता भी है? यह कलयुग है कलयुग और तू सतयुग की बात करता है। यहां रहने वाले मनुष्य दूसरे मनुष्यों को कच्चा खा जाते हैं तो तुम क्या चीज हो। तुम्हारी क्या औकात?

हिरण-
सही कहा तुमने भाई। मैं ही बेवकूफ था जिसने सोचा की अब हमारे देश का प्रधान सैनिक एक अच्छा इंसान है जो सबका साथ सबका विकास चाहता है पर मुझे नहीं मालूम था की सब में हम कहीं नहीं हैं। मैं ईश्वर से दुआ करूंगा की तुम्हे मेरी हत्या का पाप न लगे और तुम्हारे प्रधान सैनिक को सद्बुद्धि दे।

अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद।
कृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे।
आपका दिन शुभ हो।



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