...

2 views

सेठ रामदास गुड़वाले: 1857 के महान क्रांतिकारी और दानवीर
भूमिका

1857 का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, जिसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है, भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इस संग्राम में अनेक वीर योद्धाओं और स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी। सेठ रामदास जी गुड़वाले उन्हीं महान क्रांतिकारियों में से एक थे। वे एक दानवीर और देशभक्त थे, जिन्होंने अपने धन और जीवन को देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया।

प्रारंभिक जीवन

सेठ रामदास जी गुड़वाले का जन्म दिल्ली के एक अग्रवाल परिवार में हुआ था। वे दिल्ली के एक अमीर बैंकर और व्यापारी थे। उनके परिवार ने दिल्ली में पहली कपड़े की मिल की स्थापना की थी। उनकी अमीरी की कहावत थी, “रामदास जी गुड़वाले के पास इतना सोना चांदी जवाहरात है की उनकी दीवारो से वो गंगा जी का पानी भी रोक सकते हैं।”

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

जब 1857 में मेरठ से आरम्भ होकर क्रांति की चिंगारी दिल्ली पहुँची, तो दिल्ली से अंग्रेजों की हार के बाद अनेक रियासतों की भारतीय सेनाओं ने दिल्ली में डेरा डाल दिया। उनके भोजन और वेतन की समस्या उत्पन्न हो गई। रामदास जी गुड़वाले बादशाह के गहरे मित्र थे। जब बादशाह की यह अवस्था देखी नहीं गई, तो उन्होंने अपनी करोड़ों की सम्पत्ति बादशाह के हवाले कर दी और कहा, "मातृभूमि की रक्षा होगी तो धन फिर कमा लिया जायेगा।"

संगठन और खुफिया विभाग

रामदास जी ने न केवल धन ही दिया, बल्कि सैनिकों के लिए सत्तू, आटा, अनाज, बैलों, ऊँटों व घोड़ों के लिए चारे की भी व्यवस्था की। उन्होंने सेना और खुफिया विभाग के संगठन का कार्य भी प्रारंभ किया। उनकी संगठन शक्ति को देखकर अंग्रेज़ सेनापति भी हैरान हो गए। सारे उत्तर भारत में उन्होंने जासूसों का जाल बिछा दिया और अनेक सैनिक छावनियों से गुप्त संपर्क किया। उन्होंने भीतर ही भीतर एक शक्तिशाली सेना और गुप्तचर संगठन का निर्माण किया।

बलिदान

कुछ कारणों से दिल्ली पर अंग्रेजों का पुनः कब्जा होने लगा। रामदास जी की क्रांतिकारी गतिविधियों से परेशान होकर अंग्रेजों ने उन्हें धोखे से पकड़ लिया। उन्हें रस्सियों से खम्बे में बाँधा गया और उन पर शिकारी कुत्ते छोड़े गए। इसके बाद उन्हें अधमरी अवस्था में दिल्ली के चांदनी चौक की कोतवाली के सामने फांसी पर लटका दिया गया।

उपसंहार

सुप्रसिद्ध इतिहासकार ताराचंद ने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवमेंट' में लिखा है, "सेठ रामदास गुड़वाला उत्तर भारत के सबसे धनी सेठ थे। अंग्रेजों के विचार से उनके पास असंख्य मोती, हीरे व जवाहरात और अकूत संपत्ति थी।"

सेठ रामदास जी गुड़वाले जैसे अनेक क्रांतिकारी इतिहास के पन्नों से गुम हो गए। क्या हम सेठ रामदास जी जैसे क्रांतिकारियों के बलिदान का ऋण चुका पाएंगे? देश को आज़ादी यूं ही नहीं मिली है। हर कली इस बाग की कुछ खून पीकर ही खिली है। मिट गए वतन के वास्ते, दीवारों में जो गड़े हैं, महल अपनी आज़ादी के, शहीदों की छातियों पर ही खड़े हैं।
© Pradeep Parmar