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मैं, टीपूँ और परी (नसीब) …. भाग - ३
तो देखा!
पापा जी दुकान बंद कर घर की तरफ़ आ रहे थे। मेरे मन में ख़ुशी दौड़ पड़ी क्योंकि मुझे उस मोटी आँखों वाली परी 🧚‍♀️ को देखना था। मैं और पापा जी घर को आ रहे थे और गाड़ी से निकलकर एक आदमी मेरे पापा की तरफ़ आया और मैंने देखा कि वो हँस कर बातें कर रहा थे और गले मिल रहे थे। क्योंकि मैं थोड़ा सा आगे निकल चुका था मैं थोड़ा उनके क़रीब आया तो पापा जी बोले आप घर जाओ और अपनी मम्मी को बोलो आज खाने के लिए कुछ मेहमान आएंगे मैंने पापा की बात सुनी और घर की तरफ़ दौड गया।

मम्मी को बोला की मैं और पापा जी घर ही आ रहे थे कि रास्ते में कोई जान पहचान वाला पापा को मिल गया और उन्होंने बोला है कि आज अपने घर कुछ मेहमान खाने के लिए आएंगे तो आप खाना बनाकर रखना । और मैंने मम्मी को बोला कि पापा को थोड़ी देर में आयेंगे और मैं बाहर आ गया।

मैं उनकी गाड़ी की तरफ़ गया और परी को हैलो बोला और हाथ आगे बढ़ाया तो उसमें भी मुझे हेलो बोला और अपने हाथ की टोकरी को मेरे को पकड़ा दिया। मैंने बोला कि मेरा नाम “रिक्की” है और उसने भी अपना नाम “नसीब” बताया। मैंने उससे पूछा के नसीब इस टोकरी में क्या है। उसने हँस कर मुझे बोला के तुम ख़ुद ही देख लो। और जब मैंने उसे खोलकर देखा तो मेरी आँखों की ख़ुशी देखने लायक होगी क्योंकि वो एक टीपू के जैसा छोटा सा प्यारा सा पप्पी (कुत्ता) था। मैं इतना ख़ुश था कि के ज़ोर ज़ोर से उछलने लगा।

यह देखकर मेरे पापा जी मेरी तरफ़ आए और पूछा बेटा रिक्की क्या हुआ ? तुम क्यों इतना उछल रहे हो, तो मैंने बोला पापा जी ये देखो छोटा सा पप्पी कितना प्यारा है। बिलकुल मेरे प्यारे टीपू की तरह है। पापा हैरान होकर बोले तुम्हारा टीपू कौन ?कैसा टीपू, पापा जी मुझे वहाँ से मेरी बाँह पकड़कर घर को ले आए और…..

आगे और भी है……


#जलते_अक्षर
© ਜਲਦੇ_ਅੱਖਰ✍🏻