...

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मुश्किल है मर्द का मर्द बने रहना…
टूटता है, बिखरता है
वो मर्द है

वो इसी तरह निखरता है…

आदमी को प्रस्तर से निर्मित प्रतिमा का प्रतिमान माना जाता रहा है…उसे संवेदनाओं से परे रहकर संघर्षशील दिखना ही होता है…समाज उसे इसी सशक्त स्वरूप में स्वीकार करता है…मर्द होना आसान है पर बने रहना मुश्किल…

सहज स्वरूप में कहा जाए तो मर्द को ना तो टूटने का अधिकार है ना ही बिखरने का ….उसे हर हाल में मज़बूत दिखना होता है चाहे फिर वो किसी भी परिस्थिति या परेशानी से गुजर रहा हो…

शायद यही कारण भी है कि महिलाओं की अपेक्षा पुरुष अधिक संख्या में आत्महत्या का प्रयास करते हैं….शायद कभी कभी उनके लिए उनकी पीड़ा और अवसाद का बोझ असहनीय हो जाता है और जीवन के बजाय मृत्यु सहज लगने लगती है ….

मर्द को मर्दानगी के छलावे से छला जाता रहा है, क़ुर्बान किया जाता रहा है….शायद यही पोरूष पुरुष को मारने का सबसे बेहतरीन हथियार भी रहा है कालांतर से…

सम्भवतया इसीलिए मुश्किल है मर्द का मर्द बने रहना…


© theglassmates_quote