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ज़ख्म भरने के बाद....
इंसान का जीवन सपाट रास्ते सा तो कभी हुआ ही नहीं। सभी के जीवन में कुछ न कुछ ऐसा ज़रूर घटित होता है जो हमने कभी चाहा नहीं होता । उसमे भी अब अलग - अलग इंसान अलग तरह से पेश आते हैं। कुछ हिम्मत हारकर ज़िंदगी का साथ बेवक्त छोड़ देते हैं, कुछ बेशकीमती सांसों को बेकार में ज़ाया करते हैं. इन दोनों हालात में दुनिया बड़ा तरस खाती है। बेचारा फलाना इसके साथ ऐसा हो गया , बेचारा वो उसने ऐसा कर लिया .... और भी पता नहीं क्या-क्या ...।
इनसे परे एक और तरह के इंसान भी होते हैं। जो बहुत साहस के साथ , हिम्मत कर , कभी दिल को मज़बूत कर, कभी आँसुओं में सराबोर हो , कभी दिमाग के घोड़े चलाकर कोई न कोई हल निकाल लाते हैं ... और जैसे तैसे जिंदगी की मायूसियों, परेशानियों और उलझनों से उबर जाते हैं.... उबर चुके हैं .... संभल चुके हैं... अतीत को भुलाकर नई ज़िंदगी जी रहे हैं....। ऐसा दुनिया कहती है। अगर वास्तव में ऐसा है.... तो शायद ज़िंदगी के सबसे कठिन लम्हों को इन्हीं लोगों ने जीया है या शायद अभी भी जी रहे होंगे... क्योंकि जब भी ज़िंदगी कुछ छीन लेती है ...या कुछ ज़बरदस्ती दे देती है.... उसका प्रभाव ताउम्र रहता ही है... चाहे कितना भी आगे बढ़ लें ज़िंदगी में .... ज़िंदगी के उस दौर की कड़वाहट, उन ज़ख्मों के निशान और जद्दोजहद के हर एक लम्हें की याद गाहे - बगाहे उनको परेशान ज़रूर करती है.....
आपके आसपास भी ऐसा कोई इंसान हो... तो इंसानियत का परिचय देते हुए जानबूझकर कोई ऐसी बात न करें जो उनकी मुस्कुराहटों को फीका कर दे....

© संवेदना