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ठंडा साया
रात के पौने तीन बजे थे। बाहर सन्नाटा था, सिर्फ हल्की-हल्की हवा की सरसराहट सुनाई दे रही थी। कमरे में घुप अंधेरा था, पर अचानक व्योम की आँख खुल गई। उसे महसूस हुआ कि उसका गला सूख रहा है, जैसे तपते रेगिस्तान में सांस ले रहा हो। प्यास इतनी तेज़ थी कि अब वो और इंतज़ार नहीं कर सकता था।

थके कदमों से वह बिस्तर से उठकर किचन की ओर बढ़ा। किचन का ठंडा फर्श उसके नंगे पांवों को छू रहा था, पर वह इस ठंड को नजरअंदाज करते हुए फ्रिज के पास पहुंचा। उसने मन ही मन बड़बड़ाया, "ये रात के पौने तीन बजे ही प्यास लगने का क्या तुक है यार! और ठंडा पानी ही चाहिए इस...