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तेरी-मेरी यारियाँ! ( भाग - 27 )
वही देवांश पार्थ से बोलता है,,,,पार्थ,,,,भाई चल अब, घर कब जाएगा,,,,,मुझे कुछ काम भी है

दूसरी ओर मानवी जमीन से खड़े होते हुए गीतिका से बोलती है।

मानवी :- गीतिका चल हमको भी अब घर चलना चाहिए काफी समय हो गया है माँ और चाची हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे।

गीतिका :- मुँह बनाते हुए,,,,मानवी दीदी थोड़ी देर और रुक जाओ ना अभी तो बहुत समय है।

मानवी को घर पहुँचने की चिंता से ज्यादा इस बात का डर था की कही घर वाले हम दोनों को लड़को के साथ बैठा हुआ ना देख ले।

इसलिए मानवी गीतिका का हाथ पकड़कर उसको जमीन से उठाकर वापस घर ले जाने लगती है।

लेकिन गीतिका मानवी के हाथों से अपना हाथ छुड़ा कर वापस से जमीन पर बैठ जाती है वही मानवी जैसे ही गीतिका को दुबारा जमीन से उठाने लगती है। गीतिका चिढ़चिढ़ाते हुए मानवी से बोलती है।

गीतिका :- चिढ़चिढ़ाते हुए,,,,मानवी दीदी,,, मुझे नही जाना घर मुझे यही रहना है।

मानवी :- गीतिका को जबरदस्ती उठाते हुए,,,,,अच्छा,,,, मैं भी देखती हूँ,, कैसे नही जाएगी।

गीतिका :- मुँह फुलाकर,,,, हाँ देख लो नही जाऊंगी तो नही जाऊंगी।

वही मानवी और गीतिका को ऐसे चूहे बिल्ली की तरह लड़ता देख देवांश, पार्थ और निवान को बहुत बहुत मजा आ रहा था। वह तीनों ही अपनी हंसी छिपाते हुए बस मुस्कुराते रहते है।

लेकिन कुछ ही देर में उनकी यह मुस्कान हैरानी मे बदल जाती है जब मानवी के गाल पर एक जोरदार तमाचा पड़ता है मानवी जैसे ही पीछे मुड़कर देखती है। तो उसे वहां कुसुम,,,और  सावित्री,,,,जी खड़ी नज़र आती है।

जिनको देख कर गीतिका और मानवी डर जाती है और वह दोनों ही चुपचाप खड़ी हो जाती है और कुसुम गुस्से में मानवी से पूछती हैं।

कुसुम :- चिल्लाकर,,,,,क्यों री लड़की,,,,तू यहाँ क्या कर रही है और साथ में मेरी लड़की को भी यहाँ लड़को के साथ बिठा रखा है।

मानवी :- घबराते हुए,,,,,माँ,,चा,,,चाचा,,,च,,,,चाची,,,अ,,आ,
आप,,,आप यहाँ,,, ?

कुसुम :- गुस्से में,,,,ताली बजाते हुए,,,वहाँ क्या सवाल है,,हम यहाँ क्या कर रहे है,,, अरे तू बता ना तुम दोनों यहाँ क्या कर रही हो।

जहाँ एक ओर कुसुम बिना किसी रुकावट के मानवी को लगातार बस सुनाये जा रही थी तो वही दूसरी ओर सावित्री जी,, बिना कुछ बोले ही कुसुम की बातों को चुपचाप सुने जा रही थी।

कुसुम :- आगे बोलते हुए,,,,क्यों,,, क्या हुआ देना जवाब यहाँ क्या कर रही है सांप सूंघ गया अब तुझे या चोरी पकड़ी गयी तो तेरे मुँह से आवाज नही निकल रही।

मानवी को कुसुम से इस तरह डाँट खाता देख जहां गीतिका पार्थ और निवान को अच्छा नही लग रहा था वही उन तीनों के साथ कहीं न कहीं देवांश को भी यह सब अच्छा नही लग रहा था। लेकिन वह उनके बीच में कुछ बोलना नही चाहता था।

गीतिका :- डरते हुए,,,, माँ आप मानवी दीदी को डाँट क्यों रही  है ऐसा उन्होंने क्या कर दिया है।

जहां अब तक कुसुम बस मानवी की ही खरी खोटी सुना रही थी वही अब गीतिका के बोलते ही कुसुम को गुस्सा आ जाता है और वह मानवी को छोड़ गीतिका के चांटा मारते हुए बोलती है।

कुसुम :- गीतिका के गाल पर चांटा मारते हुए,,,,चुप एक और शब्द कहा तो,,,,,,

जो सावित्री जी,,,,, चुपचाप कुसुम की बाते सुने जा रही थी अब पानी उनके सिर से ऊपर जा चुका था जिसकी वजह से  वह चिल्लाते हुए कुसुम से बोलती है।

सावित्री जी :- गुस्से में,,,, कुसुम,,,, बस बहुत हुआ दुनिया के सामने अब और तमाशा करने की जरूरत नही है चलो घर चलकर बात करेंगे।

कुसुम :- ना,,, जीजी,,,, आप रहने दो, आज तो यही पूरे समाज के सामने ही बात होगी। इस लड़की की करतुते समाज को भी तो पता चले।

मानवी :- रोते हुए,,,, लेकिन चाची मैने ऐसा क्या किया है,, जो आप मुझे इतना सुना रही है।

कुसुम :- चिल्लाते हुए,,,,अच्छा,,,थोड़ी बहुत शर्म बची है या नही, यहाँ लड़को के साथ मैं बैठी हो और तेरे पीछे यह जो तीनों बेशर्म खड़े हुए है इन्हे मैने बुलाया है।

जो देवांश अब तक,,,,,,

© Himanshu Singh