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तेरी-मेरी यारियाँ! ( भाग - 27 )
वही देवांश पार्थ से बोलता है,,,,पार्थ,,,,भाई चल अब, घर कब जाएगा,,,,,मुझे कुछ काम भी है

दूसरी ओर मानवी जमीन से खड़े होते हुए गीतिका से बोलती है।

मानवी :- गीतिका चल हमको भी अब घर चलना चाहिए काफी समय हो गया है माँ और चाची हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे।

गीतिका :- मुँह बनाते हुए,,,,मानवी दीदी थोड़ी देर और रुक जाओ ना अभी तो बहुत समय है।

मानवी को घर पहुँचने की चिंता से ज्यादा इस बात का डर था की कही घर वाले हम दोनों को लड़को के साथ बैठा हुआ ना देख ले।

इसलिए मानवी गीतिका का हाथ पकड़कर उसको जमीन से उठाकर वापस घर ले जाने लगती है।

लेकिन गीतिका मानवी के हाथों से अपना हाथ छुड़ा कर वापस से जमीन पर बैठ जाती है वही मानवी जैसे ही गीतिका को दुबारा जमीन से उठाने लगती है। गीतिका चिढ़चिढ़ाते हुए मानवी से बोलती है।

गीतिका :- चिढ़चिढ़ाते हुए,,,,मानवी दीदी,,, मुझे नही जाना घर मुझे यही रहना है।

मानवी :- गीतिका को...