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भाषा!
मनुष्यों को अपने भाव व्यक्त करने का एक माध्यम ही तो है भाषा । फिर जाने कैसे एक भाषा दूसरी से इतनी अच्छी हो गई , मुझे कभी समझ नहीं आया।
जब मैं गांव में रहती थी तो मेरे गांव की कुछ लड़कियां जो अपने माता पिता के साथ दिल्ली आ गईं।
जब वापस गांव गईं तो जो गांव में बोली जाने वाली भाषा थी वो भूल चुकी थी लगभग एक साल में ही।
वो हिंदी बोलने लगीं थी इंग्लिश मिला कर वाली।
उन्हे लगता रहा की वो गांव में रह गई तमाम लड़कियों से बेहतर हो गई हैं।
और मुझे उन पर तरस आता था, बेचारी का दिमाग कितना कमजोर है जो 15–16 साल बोला उसे भूल गईं वो भी इतनी जल्दी, ऐसे कैसे?
मैं लगभग छठी सातवीं कक्षा में थी उस वक्त। उनके इस व्यवहार की वजह से गांव की अधिकतर लड़कियों में हीन भाव आने लगे ।
फिर मैं 2009 में दिल्ली आई, अपनी बहन के पास और एक अजीब चीज देखी।
दिल्ली में बिहारी एक राज्य से होना नही होता था एक गाली होती थी।
और अपने उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग इससे बचने के लिए अपनी भाषा में बात करने से कतराते थे।
अगर फोन पर भी बात कर रहें हैं और बाहर हैं तो हिंदी में बात करते थे या आसपास कोई ऐसी जगह ढूंढ लेते थे जिससे की बचा जाए जिल्लत भरी नजरों से क्यों की आप भोजपुरी बोल रहे हैं।
मैने सारे शहर में एक चीज देखा की बाकी सारे राज्य के लोग बड़े गर्व के साथ अपनी मातृ भाषा का प्रयोग करते थे बस ये ऊ पी बिहार वालों को छोड़ कर।
एक बात जो नहीं समझ पाए ये लोग की इनके प्रति लोगों की जो धारणा है वो इनकी भाषा की वजह से नहीं है बल्कि इनके कारनामों की वजह से है। इनकी सोच की वजह से है।
पर अपने यहां एक बात आम है चाहे आपका लीवर खराब हो या किडनी दवाई अपने मन मर्जी होगी।
तो इन्होंने यहां भी यही किया।भाषा ही नहीं बोलेंगे जिससे पता चले की हम कहां से हैं।
इन घटनाओं का असर ये हुआ की मैं और मेरी बहनें कहीं भी होते घर वालों से बात करते तो भोजपुरी में बात करते।
गांव जाते तो गांव के लोगों से भोजपुरी में बात करते हैं आज भी।
मेरे लिए सारी भाषा एक बराबर हैं और चुकी भोजपुरी पहली वो भाषा है जिसे बोलना सीखा था तो उसे बोलना भूलना तो मुमकिन नहीं मेरे लिए।
और दिल्ली वालों के लिए उत्तर प्रदेश जैसा कुछ नहीं था।भूगोल काफी कमजोर था उनका।
उनको बनारस बिहार में है ऐसा मालूम था।
अब बात करते हैं गाली की तो जिन लोगों को अपने देश का भूगोल नहीं पता वो बताएंगे की भाषा कौन सी अच्छी या बुरी है?
और ये सिर्फ दिल्ली वालों का हाल नहीं है ज्यादा तर मेट्रो सिटी वालों का यही हाल है।
मुंबई वाले तो अलग ही अकड़न में होते हैं।
उनके सामने भोजपुरी छोड़ो हिंदी भी बोल दो तो ऐसे देखते हैं जैसे इनकी सारी जायदात हड़प लिया हो।
हां! तो बात दिल्ली मुंबई वालों की नहीं हो रही यहां,
यहां बात भाषा की हो रही है तो जनाब भाषा मौन भी होती है।
तो भाषा को अभिव्यक्ति का जरिया मानों बस ,जिस भाषा में बात करना है करो बात समझ आए बस सुनने वाले को।

खुश रहिए मस्त रहिए सबको समझते रहिए और भाषा को क्लास मत बनाइए।



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