...

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कैफियत
शादी करोगे मुझसे?
ये उस लड़की का
मासूमियत से भरा प्रश्न था
उस लड़के के लिए
जो उस लड़की के लिए
जरा सी बात पर जान लड़ा देता था

मगर लड़के ने जवाब दिया
लगभग चीखते हुए
तुम पागल हो क्या?
कुछ भी बकती रहती हो
दो चार दिन साथ मे घूम लिए
बतिया लिए, इसका मतलब
ये नही कि बियाह भी तुमसे ही कर बैठेंगे
दोस्त हो दोस्त की तरह रहो

लड़की चुप
अब उसे कुछ सूझ नही रहा था
गुस्से से वो लाल हो गयी थी
उसने बहुत सारे अरमानों के साथ
ये बात पूछी थी और उसे भरोसा था
किसी और जवाब का
मगर इस जवाब की उम्मीद नही थी

उसकी सारी मोहब्बत
उसकी आंखों से बह रही थी
और वो लगातार थप्पड़ पर थप्पड़
लड़के को मारे जा रही थी
कुछ देर बाद जब वो शांत हुई
तो उसकी सारी मोहब्बत खत्म हो चुकी थी
और जाते-जाते वो कह गयी
तुम कभी मोहब्बत के लायक नही रहोगे
ये उसके दिल से निकली बद्दुआ थी
आह थी और टीस थी

लड़की वहां से जा चुकी थी
और लड़का अभी भी वहीं खड़ा था
उसके चेहरे पर कोई शिकन नही थी
और न ही कोई चिंता के भाव थे
एक सुकून भारी मुस्कान के साथ
वो जाते हुए उस लड़की को देख रहा था
गाल थप्पड़ों से लाल हो चुके थे
मगर दर्द का कोई भी आभास नही था

अब तक लड़की
उसकी आंखों से ओझल हो चुकी थी
वो कुछ देर खड़ा रहा
फिर जेब से एक सिगरेट निकालकर जलाई
और धुंए को हवा में छोड़ता हुआ
अपनी मग्न चाल में
अपने  गंतव्य की तरफ चला गया

वो हमेशा से ये जानता था
कि एक दिन आएगा
और उसे उस लड़की को
छोड़ कर जाना ही पड़ेगा
उस दिन जब वो उसे छोड़ कर जाने लगेगा
तो वो ये भी जानता था कि
वो ये सदमा बर्दाश्त भी नही कर पायेगी
इसलिए बहुत पहले ही उसने
उसे मना कर दिया और उससे दूर हो गया
किसी को किसी बात के लिए
मना करना कभी आसान नही होता
और ये मसला तो पूरी जिंदगी का था

शायद वो लड़की देख पाती उस दर्द को
जो थप्पड़ों की आड़ में
उसके आंख से बह रहा था
उस लड़के के आंसू का एक-एक कतरा
उस लड़की से हुई मोहब्बत को समर्पित था
वो उस लड़की को हारता देख सकता था
मगर टूटता नही देख सकता था
बस उसके इश्क की यही कैफियत थी
जिसमे उसने उस लड़की की मोहब्बत को
नफरत में बदल दिया



© शिवप्रसाद