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भानगढ़ किला
आप सबने जीवन में कभी ना कभी दादी -नानी से दंतकथाएं सुनी होंगी और अगर नहीं तो कम से कम टीवी पर रामायण, महाभारत, हनुमान, शिव, गंगा या शनि से प्रेरित कोई धारावाहिक। उन सबमें एक बात कॉमन होती थी अभिशाप व वरदान। बचपन में कितनी बार मैंने भी भैया से पिट कर घरवालों से महज़ डांट सुनवा कर मामला खत्म करने की बजाय शाप देकर उन्हें "जा दुष्ट, मैं तुझे श्राप (बचपन में मैं श्राप ही देती थी) देती हूं..... .... मज़ा चखाने की कोशिश की थी मगर कभी कामयाब नहीं हुई। ऋषियों की तरह अपने शापों को कामयाब ना होता देख कर बहुत बार नानी से सवाल करती थी (बिना अपनी हरकतें बताये) "नानी, अब लोगों के शाप कामयाब क्यों नहीं होते? इस पर नानी का भोला सा ज़वाब होता था कि पहले के लोग जप -तप करते थे तो उनकी वाणी में सरस्वती का वास होता था और उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास भी होता था। हम लोग तो बिना किसी काबिलियत के अपने निजी हित के लिए लोगों को दुआ - बद्दुआ देते रहते हैं तो कहां से फलेगी? लोग अपनी सुविधाओं का गलत फ़ायदा ना उठायें इसीलिए ईश्वर ने हमसे ये शक्ति छीन ली। हालांकि अहल्या को शिला बनने का शाप,...