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भानगढ़ किला
आप सबने जीवन में कभी ना कभी दादी -नानी से दंतकथाएं सुनी होंगी और अगर नहीं तो कम से कम टीवी पर रामायण, महाभारत, हनुमान, शिव, गंगा या शनि से प्रेरित कोई धारावाहिक। उन सबमें एक बात कॉमन होती थी अभिशाप व वरदान। बचपन में कितनी बार मैंने भी भैया से पिट कर घरवालों से महज़ डांट सुनवा कर मामला खत्म करने की बजाय शाप देकर उन्हें "जा दुष्ट, मैं तुझे श्राप (बचपन में मैं श्राप ही देती थी) देती हूं..... .... मज़ा चखाने की कोशिश की थी मगर कभी कामयाब नहीं हुई। ऋषियों की तरह अपने शापों को कामयाब ना होता देख कर बहुत बार नानी से सवाल करती थी (बिना अपनी हरकतें बताये) "नानी, अब लोगों के शाप कामयाब क्यों नहीं होते? इस पर नानी का भोला सा ज़वाब होता था कि पहले के लोग जप -तप करते थे तो उनकी वाणी में सरस्वती का वास होता था और उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास भी होता था। हम लोग तो बिना किसी काबिलियत के अपने निजी हित के लिए लोगों को दुआ - बद्दुआ देते रहते हैं तो कहां से फलेगी? लोग अपनी सुविधाओं का गलत फ़ायदा ना उठायें इसीलिए ईश्वर ने हमसे ये शक्ति छीन ली। हालांकि अहल्या को शिला बनने का शाप, भानुप्रताप को अनजाने में हुई भूल के लिए रावण बनने का शाप, नारद द्वारा क्षणिक क्रोध में राम को सीता के लिए वन -वन भटकने वाले शाप इत्यादि भी कुछ कम नाजायज नहीं थे लेकिन ये बहस फ़िर कभी।

आज बात करेंगे भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती और एक पागल तांत्रिक द्वारा दिये शाप की। अलवर तथा सरिस्का अभयारण्य के नज़दीक इस किले को 1573 में राजा भगवंत दास (मान सिंह के समकालीन) ने बनवाया था। अपने शुरुआती वर्षों में भानगढ़ बहुत सुन्दर किला हुआ करता था। ये कस्बा बिलकुल बाकि ज़िंदा कस्बों की तरह सांस लेता था। ढेर सारे त्यौहार और मेले, बाज़ार यहां की खासियत हुआ करते थे और भानगढ़ की इन सोने जैसी खूबियों में सुहागा थीं यहां कि राजकुमारी रत्नावती। रत्नावती इतनी रूपवती थीं कि उन्हें देखने वाले उन पर मुग्ध हो जाते थे। राजकुमारी शस्त्र तथा शास्त्र विद्या में भी कुशल थी ऐसे में राजकुमारी के व्यक्तित्व की तरफ़ सहज आकर्षण संभव ही था। राजकुमारी के इस अलौकिक व्यक्तित्व पर मुग्ध आम -ख़ास सभी उनसे विवाह करने का स्वप्न देखते थे। इन्हीं स्वप्न दृष्टाओं में से एक था "सिन्हेया" सिन्हेया कोई साधारण व्यक्ति नहीं था बल्कि जादू, टोने, और तंत्र मंत्र में निपुण एक तांत्रिक था। एक असाधारण राजकुमारी किसी दरबारी तांत्रिक से विवाह नहीं करेगी इस तथ्य से वाकिफ सिन्हेया ने काले जादू के प्रयोग से एक इत्र बनाया ताकि जब राजकुमारी इस इत्र को लगाएं तब उसकी ओर आकर्षित हो जायें। सिन्हेया ने इस इत्र को किसी तरह उस दुकान में छुपा दिया जहां से राजकुमारी की दासियां उनके लिए खरीददारी करने जाती थी और जैसे तैसे रानी की दासियों को काले जादू वाला इत्र खरीदने के लिए मना लिया। इत्र की जादुई सच्चाई से अंजान जब उनकी दासियों ने उन्हें तांत्रिक द्वारा इस इत्र की अत्यधिक प्रशंसा कर इस इत्र को खरीदवाने के विषय में बताया तब चतुर राजकुमारी को समझते देर नहीं लगी कि दाल में कुछ काला है। उन्होंने इत्र की शीशी उठाई और अपनी खिड़की से नीचे फेंक दी जो एक चट्टान से टकराकर टूट गई। अब क्योंकि इत्र का असर राजकुमारी की जगह चट्टान पर हुआ अत: लुढ़कती हुई चट्टान उधर से राजकुमारी के महल के पास ही छुपे सिन्हेया पर जा गिरी जिससे उसकी मौत हो गई। मरने से पहले तांत्रिक सिन्हेया ने पूरे भानगढ़ को शाप दिया कि वो मरा है तो उसके बाद अब वहां कोई जीवित नहीं रहेगा। कहते हैं कि इस घटना के एक साल के भीतर भानगढ़ पर ढ़ेरों हमले हुए और भानगढ़ लाशों में तब्दील हो गया। वहां कोई नहीं बचा था। आज भानगढ़ ASI = archaeological survey of India द्वारा संरक्षित भारत की सबसे भूतिया जगहों में से एक है। यहां देश - विदेश से लोग आते हैं भूतिया अनुभव पाने के लिए। वैसे तो ASI सूरज ढलने के बाद यहां रुकने के लिए सख्त मना करती है लेकिन एडवेंचर पसंद करने वाले चोरी -छुपे चले जाते हैं। कुछ लोगों को यहां भूत दिखे, कुछ को नहीं लेकिन नेगेटिव एनर्जी सबने महसूस की जो शायद भवन के स्ट्रक्चर के कारण हो। कुछ का कहना है कि यहां कोई खजाना है जिसकी सुरक्षा के लिए ASI ने ऐसी अफवाह फैला रखी है तो कुछ को हर archaeological site पर मौजूद ASI का ऑफिस इस साइट पर ना होना खटकता है। ख़ैर बात जो भी हो लेकिन मौका मिलने पर आप लोग ज़रूर घूम कर आएं भानगढ़ फोर्ट, तब तक इंटरनेट पर मिली अफ़वाहों से रोमांच महसूस करें।

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आप लोगों में से जो लोग यहां गये हैं अपना अनुभव ज़रूर बताइए, और जो नहीं गए हैं वो इन कहानियों के पीछे अपने विचार व्यक्त करें।
#historyteller

© Neha Mishra "प्रियम"
26/05/2022