कोमल नारी
मैं पुरुष हूँ स्त्री को समझना नहीं चाहता हूँ
ब्रह्मा जी नहीं समझे स्त्री को,...बस यह कहकर पल्ला झाड़ देना चाहता हूँ
स्त्री सरल हैं कोमल हैं कमजोर है प्राकृतिक रूप से बच्चे पैदा करने का दर्द भी स्त्री के हिस्से आया..
सोचती हूँ कभी की अगर यह दर्द पुरुषों के हिस्से आया होता तो क्या वो सृष्टी के निर्माण को गति प्रदान करते
क्यूँ स्त्रियां बार बार मृत्यु के दरवाजे पर जाकर आती है
एक बच्चे की खातिर अपना रूप यौवना सब गँवा देती है
परिवार की खातिर मर मिट जाती है
इस पर पुरुष पलट कर नहीं देखता उस स्त्री को जो उसके बच्चे की मां...
ब्रह्मा जी नहीं समझे स्त्री को,...बस यह कहकर पल्ला झाड़ देना चाहता हूँ
स्त्री सरल हैं कोमल हैं कमजोर है प्राकृतिक रूप से बच्चे पैदा करने का दर्द भी स्त्री के हिस्से आया..
सोचती हूँ कभी की अगर यह दर्द पुरुषों के हिस्से आया होता तो क्या वो सृष्टी के निर्माण को गति प्रदान करते
क्यूँ स्त्रियां बार बार मृत्यु के दरवाजे पर जाकर आती है
एक बच्चे की खातिर अपना रूप यौवना सब गँवा देती है
परिवार की खातिर मर मिट जाती है
इस पर पुरुष पलट कर नहीं देखता उस स्त्री को जो उसके बच्चे की मां...