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रंगमंच
बुंदाबांदी होकर अभी-अभी थमी है । वातावरण शीतल,सुखद,सुकुन से सराबोर है।

सब कुछ साफ़ साफ़ प्रतीत रहा है मानों वर्षा के जल से सब धुल सा गया हो । वृक्ष और भी हरे भरे हो गये है मानों अभी नहाकर आये है।
वर्षा ऋतु ने वसुंधरा के रंगमंच पर अचानक एक अलग ही दृश्य उपस्थित कर दिया है।

पर यह क्या ? अगले ही कुछ क्षणों में देखते ही देखते भास्कर जी जिनको मेघों ने आच्छादित कर रखा था , मेघों के झरोखे से झांक उठते हैं और एक जादुई असर की तरह रंगमंच का दृश्य पुनः बदल जाता है।

" अजी सुनते हो ! यह खिड़की पर खड़े होकर शून्य में क्या तकते रहते हो" श्रीमती जी का स्वर सुनाई देता है।

और रंगमंच का दृश्य पुनः बदल जाता है ....

- ओम‌ 'साईं' १८.११.२०२१
© aum 'sai'