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बेवफाई
#UnfoldCharacter
मीटिंग के बीच में ही स्नेहा की नजर अचानक निखिल के ऊपर पड़ी 1 मिनट को वह बोलते बोलते रुक गई आखिर आज समय ने बहुत कुछ करवट लेकर के बदल दिया था गुमसुम से घर में रहने वाली स्नेहा आज एक कंपनी की सीईओ थी और निखिल जो कभी उसका पति हुआ करता था आज उसके अंदर में काम कर रहा था स्नेहा को निखिल की हालत देखकर थोड़ा सा ताज्जुब भी हुआ क्योंकि निखिल बहुत ही होनहार इंसान था पर उसके अंदर कहीं ना कहीं उसके घमंड ने उसको अंदर से खोखला कर दिया था स्नेहा के आंखों के आगे बिताए हुए बहुत सारे पल एक कैमरे की रेल की तरह चलने लगे उसको सारी वह चीजें याद आने लगी वह सारी बातें कैसे निखिल ने उससे नफरत की कैसे उसको घर से बाहर बस इसलिए निकाल दिया क्योंकि वह सिर्फ कॉलेज पास थी और निखिल का कहना था कि सिर्फ ग्रेजुएशन पास लड़कियां स्मार्ट नहीं होती है और निखिल का घर छोड़ने के बाद कुछ दिन तो स्नेहा डिप्रेशन में चली गई थी उसके बाद उसने अपने आप को संभाला और धीरे-धीरे बाकी की पढ़ाई पूरी की और आज एक बहुत बड़ी कंपनी में सीओ है उसके अंदर बहुत सारे लोग काम करते हैं और वह जो कह देती है वह पत्थर की लकीर होती है खैर उसमें सभी को सारी बातें समझा कर बाकी लोगों को कहा कि आप सब लंच के बाद वापस इसी ऑफिस के अंदर केबिन में आकर मिले और कुछ बातें अगर ना समझ में आई हो तो यहां आकर पूछ ले सभी उठकर जाने लगे लिहाजा निखिल पर उठकर जाने लगा पर स्नेहा ने उसे रोक दिया कंपनी में निखिल और स्नेहा के अलावा उनका क्या रिश्ता है किसी तीसरे को कुछ भी नहीं पता था स्नेहा को भी नहीं मालूम था कि निखिल इसी कंपनी में काम करता है और यह बातें बहुत पुरानी थी सभी ने सोचा कि शायद ऑफिस के किसी काम की वजह से निखिल को रोका गया है केबिन का दरवाजा बंद होते ही स्नेहा ने निखिल को देखते हुए पूछा कैसे हो निखिल गुमसुम चुपचाप खड़ा रहा स्नेहा ने फिर थोड़ी जोड़ आवाज से पूछा कैसे हो निखिल सब ठीक चल रहा है जिंदगी में निखिल ने स्नेहा को एक नजर देखा और हां मैडम सब बहुत बढ़िया स्नेहा ने उसे कहा मैंने सुना नहीं तुमने क्या कहा निखिल थोड़ा लड़खड़ाते हुए हां मैडम सब ठीक है और तुम्हारी वह स्मार्ट से पत्नी का क्या हाल है निखिल अब थोड़ा सा शक पका गया पर धीरे से कहा सब बढ़िया है सब बेहतर है स्नेहा अपनी कुर्सी को पीछे कर कर सीधी खड़ी हो गई और निखिल के पास आकर बोली तुम्हारी पत्नी अभी क्या करती है निखिल ने एक नजर स्नेहा को देखा और फिर खिड़की से बाहर देखते हुए कहा स्कूल में टीचर है बच्चों को पढ़ाती है तो वह लेकिन साहब आप उससे पूरा पूर्णता संतुष्ट होंगे निखिल ने कहा हां और वह फिर बाहर की तरफ देखने लगा स्नेहा उससे आंखें मिलाना चाहती थी पर निखिल उससे आंखें नहीं मिला ना चाह रहा था स्नेहा ने निखिल को कहा निखिल जी थोड़ी देर के बाद आकर मिलिए गा निखिल दो कदम दरवाजे तक गया फिर अचानक किसकी तरफ वापस आकर बोला स्नेहा देखो मैंने जो गलती की थी ना उसकी सजा मेरे परिवार को मत देना और रही बात मुझे प्लीज इस नौकरी से मत निकालना स्नेहा चौक गई स्नेहा ने कहा मैं इतनी भी बुरी नहीं हूं कि तुम्हें नौकरी से निकाल दूंगी मैंने बस अपने काम के लिए तुम्हें बुलाया है निखिल ने धीरे से पूछा स्नेहा तुमने यह सब पढ़ाई कब और कैसे पूरी की स्नेहा एक जोर की सांस लेकर उसको उपेक्षित नजर से देखते हुए बाहर देखने लगी और उसने कहा बेहतर होगा कि इस जख्म को तुम ना ही कोरे दो तो ठीक होगा निखिल को कहने के लिए कुछ भी नहीं था निखिल की आंखों में लग रहा था कि आज शायद उसने बहुत कुछ खोया है वह कुछ कहना चाहता था पर सब उसके साथ नहीं दे रहे थे होठों पर आकर एक छुट्टी हो जा रही थी स्नेहा ने उसकी तरफ फिर एक नजर मुस्कुरा कर देखते हुए पूछा तुम पूछोगे नहीं कि मैं शादीशुदा हूं या नहीं निखिल कुछ कहता है इससे पहले ही स्नेहा ने कहा कि मेरा जो पति है ना वह इसी कंपनी में मेरे से नीचे पोस्ट पर काम करता है निखिल थोड़ा चौक कर देखने लगा हां पर हम लोगों में ना पढ़ाई करते वक्त ही प्यार हो गया और मेरी थोड़ी तरक्की ज्यादा हो गई मैं ऊंची कोर्स कुर्सी पर आ गई पर वह तुम्हारी तरह नहीं है उसमें एक इंसानियत का दिल है और वह उसी हिसाब से सोचता है क्योंकि जिंदगी के दौर में कभी कोई भी आगे या पीछे हो सकते हैं यह तुम भूल गए थे वह नहीं भूलता उसको पता है कि क्या सही है और क्या गलत है इतना कहते ही उसकी आंखें थोड़ी ना हो गए निखिल ने पूछा तुम रो रही हूं नहीं मैं रो नहीं रही हूं मैं यह तुम्हें बताना चाहती हूं कि जो वक्त मैंने तुम्हारे साथ बर्बाद किया शायद वह मेरी जिंदगी की बहुत बड़ी सीख थी और एक तरह से मैं तुम्हारा शुक्रिया भी करूंगी कि तुम्हारी ही वजह से आज मैं इस कुर्सी पर हूं और मैंने अपने आप को अपनी ताकत को पहचाना अगर तुम मुझे उस दिन चक्कर नहीं करते अपने घर से नहीं निकालते तो शायद आज मैं कहीं तुम्हारे घर की हाउसवाइफ होती और तुम इसी कंपनी में छोटे से मुलायम होते पर आज मैं बहुत खुश हूं और यह मेरी आंसू खुशी के हैं जिंदगी में बहुत कुछ जो हमने चाहा मैंने पाया इतना कहते ही उसका फोन बजने लगा उसने फोन उठाया तो शायद दूसरी तरफ उसके पति का फोन था उसने निखिल को एक नजर देखी और एक्सक्यूज में कह कर बाहर निकल गई निखिल को अभी यह जो भी लम्हा थे वह इतने बिजी लग रहे थे और उसको सोचने पर मजबूर कर दिया किस समय कितना बलवान होता है जिसको उसने बिल्कुल धूल के बराबर समझा था आज देखो उसकी कितनी तरक्की हो गई काश कि इसके इस जज्बे को मैं पहचान पाता उसने मन ही मन सोचा पर अब कुछ भी नहीं हो सकता था दोनों के रास्ते अलग हो चुके थे और निखिल उसके लिए सिर्फ और सिर्फ ऑफिस का एक कर्मचारी था इससे ज्यादा कुछ भी नहीं सच ही है औरत जब अपने पर आती है ना तो बहुत कुछ कर गुजरती है
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