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सोच


भारती बहुत ही शालीन और सरल स्वभाव की लड़की थी। उसकी मां के बचपन में ही गुज़र जाने के कारण परिवार में मात्र दो हो जन थे, एक वो और उसके पिता।

बचपन से ही उसने घर का सारा काम और अपने पिता की देखभाल अकेले ही की थी।

उसके पिता एक मध्यम वर्गीय नौकरीपेशा आदमी थे। आय ज़्यादा नहीं थी, परंतु उन्होंने भारती की परवरिश में कभी किसी बात की कमी नहीं रखी थी।

अब भारती की आयु लगभग 25 वर्ष की हो चुकी थी और वो घर देखने के साथ-साथ एक पार्ट–टाइम नौकरी भी कर रही थी ताकि अपने पिता की आर्थिक मदद भी कर सके जिसकी वो हमेशा से चाह रखती थी।

उसके पिता अपनी उम्र की ढलान पर थे, तो ज़ाहिर तौर पर उन्हें अपनी बिटिया के विवाह की चिंता भी थी।

उधर भारती के चाचा, जो उनके शहर में ही अलग रहते थे, जब भी मिलने आते थे तब–तब अपनी कटु बोली से उसके पिता को एक ही दकियानूसी बात का ताना दिया करते थे कि "भैया कब तक बिटिया को घर में रखेंगे। उसका ब्याह तो अभी तक कराया नहीं ऊपर से नौकरी और करवा रहे हैं। कहा था आपसे कि समय...