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आहट मौत की
काली शक्ति , त्रिकाल शक्ति , मायावी शक्ति , अंजान शक्ति , ये कई सारे नाम है काली विधाओं के और ये काली विधाओं को जानकर मानव से बनते तांत्रिक या महा तांत्रिक जो करते सब कुछ अपनी इच्छाओं के आधार पर लोगो का मरना या जीना सब उनकी इच्छा से लेकिन क्या हो जब वही तांत्रिक अपनी ही तंत्र विधाओं से मरकर भटकती आत्मा बने और वही आत्मा जो मरने के बाद भी तांत्रिक शक्तियों की महामाया हो । जो ना हार पाए ना उसे कोई हरा पाए । ऐसी ही एक महा तांत्रिक की बात कर रहा हु जो ऐसे तांत्रिक जो कहानी को पढ़ने के बाद भी ना भूल शकेगा और वो तांत्रिक जिसका नाम बाबा त्रिकाल नाथ जो मृत्यु का दूसरा नाम और काली शक्ति के महा तांत्रिक जो मारने और मरने और उच्चारण में ताकतवर जिनके साथ क्या हुआ था ऐसा की जिनकी आत्मा दर की सही दस्तक बन गई वो जानते है और कहानी की शुरुआत करते है।

बाबा त्रिकाल नाथ वो थे जिनकी ताकत का परिचय ऐसी बात से ही लगा सकते है की कर्ण पिशाचिनी जैसी साधना तो उनके आगे ऐसी ही लगे जैसे बच्चे के हाथ में खिलौना । बाबा काली चौदस पे ऐसी ऐसी बलि देते थे जिनकी ताकत अनेक ताकतों से घिरी रहती थी । बाबा त्रिकाल नाथ एक बार किसी गांव में जाते है और गांव वालो को जैसे ही पता चलता है की बाबा त्रिकाल नाथ आए है सभी लोग अपनी अपनी इच्छा से बाबा से कुछ ना कुछ मांगते हैं और बाबा वो सब कुछ देते है जो गांव वाले मांगते हो और बाबा की जय जय होने लगी थी । बाबा के वैसे कई चेले थे जो काली विधाओं के प्रखर ज्ञाता थे लेकिन बाबा की एक ऐसी भी परिस्थिति थी वो काली चौदस आने पर किसी ना किसी गांव में जाते थे और वही से किसी एक व्यक्ति को चुनकर उसको अपना चेला बनाते थे और बाबा का चेला बनना समझ आए की शाक्षत मौत को दावत देना और उसी में उनका एक चेला था जो काफी ताकतवर था काली शक्ति में लेकिन बाबा त्रिकाल नाथ से शक्ति पाने की चाहत भी उतनी ही रखता था और वो काफी डरावना भी दिखता था ।

बाबा त्रिकाल नाथ का मानना था की इस बार वो काली चौदस के दिन वही चेले के साथ साधना में जायेंगे जो उनके रूप में बराबर हो और इसी लिए बाबा अपने डरावने चेले यानिकि जटा नाथ को साथ ले जाने का फैसला करते है और वो बात जानकर जटा नाथ बेहत खुश होता था । और बाबा त्रिकाल नाथ काली चौदस के दिन सभी काम काज निपटाकर रात के ठीक १२ बजे अपने ही गांव के स्मशान में जाते है और वो अपनी साधना की शुरुआत करते है।

बाबा की साधना की शुरुआत होते ही दूसरे साधक स्मशान से इस तरह भाग जाते ही की जैसे की कोई बिल्ली को देखते चूहा भाग जाता है । बाबा अपनी साधना से स्मशान के सभी आत्माओं और जिन , छलावा, और खवी इस तरह के महा ताकत आत्माओं को अपनी मंत्रो की शक्ति से बंधी बना लेते है और सब बंधी बनने के बाद बाबा से छूटने की गुहार लगाते है लेकिन बाबा उनकी एक नहीं सुनते और वो बार बार बाबा से मुक्ति पाने के लिए चीखते है चिल्लाते हैं और रोते है लेकिन बाबा अपनी ताकत से किसी भी तरह से इनकी एक नहीं सुनते और बाबा की ताकत के आगे सब विवश हो चुके थे ।

लेकिन कहते है की जहां ताकत होती है वहा उसका अंत भी होता है और वही अंत बाबा त्रिकाल नाथ का हुआ क्योंकि सभी को बंधी बनाने के बाद बाबा अपना मनचाहा काम कराते थे और यही बात उनके चेले यानि की जटा नाथ के लिए उपयोगी साबित हुई और बाबा त्रिकाल नाथ के बंधी बनाए हुए सभी प्रेत और भूतो को वो ये कहेकर बाबा की चंगुल से छुड़ाता है की बाबा के बाद हर अमावस्या के दिन तुम मेरी ताकत को बढ़ाओ और अब सब प्रेत और भूत बाबा जटा नाथ की बात मानकर बाबा त्रिकाल नाथ के चक्र व्यूह में तोड़ने में कामयाब हो जाते है और छलावा बार बार बाबा को भ्रमित करता था और बाबा की मृत्यु के लिए हर संभव प्रयाश करते थे । लेकिन हर वक्त वो नाकाम हो जाते थे क्योंकि बाबा त्रिकाल नाथ में इतनी मायावी और काली शक्तियों की ताकत थी की वो हर मुस्किल परिस्थिति को अपने हिसाब से बदल देते थे ।

बाबा जटानाथ की कोई बात असर नहीं हो रही थी इसलिए वो बाबा त्रिकाल नाथ को मारने के लिए स्मशान में जाता है और तांत्रिक शक्तियों को बढ़ाने के लिए एक विधि करता है जिसमे वो कर्ण पिछाचीनी से लेकर अनेक विधाओं को प्राप्त करता है जिसमे वो ताकतवर बनना चाहता है और भविष्य को जानना चाहता है और इसलिए वो मुर्दो को भी जीवित करने की साधना में पारंगत हो जाता है । बाबा त्रिकाल नाथ अब इन सब बातो से काफी सोच में रहते थे क्योंकि काली शक्तियों को पाने के लिए उसको अपने वस में रखने की भी शक्ति को प्राप्त करनी चाहिए थी जो जटानाथ में नहीं थी । और जटानाथ बाबा त्रिकाल नाथ को मारने की लिए किसी भी हद को पार सकता था ।

एक बार अमावस्या की घनघोर रात होती है उस वक्त बाबा जटानाथ स्मशान में जाकर अपनी तमाम ताकत को आजमाने की सोच रखता है । उस वक्त बाबा त्रिकाल नाथ की आज्ञा से वो जंगलों में जाता है घोर सन्नाटा पैर से सुके पते की आवाज ये सब दिल को अंदर से कंपा देता है । उस वक्त चारो और दिल के ध्बकारो से भय फैला हुआ था । उस समय बाबा जटानाथ जंगलों में जाकर सर्व प्रथम वो भस्म से अपने चारो और चक्रव्यूह बना लेता है और फिर मास मदिरा और खून पीने लगता है जैसे की अब वो इंसान से सेतान बन गया हो और वो इतना अंधा हो जाता है की वो अपने खून से ही मुर्दों के शवों का अभिषेक करता है । बाबा त्रिकाल नाथ ये सब अपनी साधना में देखकर चौक जाते है। वो खुद ये सब सोच नही पा रहे थे की बाबा जटानाथ क्या करने की सोच रहा है l

बाबा जटानाथ ने पूरे श्मशान को जागृत कर दिया हर तरफ जोर की आंधी और चीख पुकार और रोने और जोर से हसने की आवाज आने लगी थी और रात गहराई में खो रही थी । जटानाथ को देखकर सारे प्रेत और भूत उनसे अपने भोग को मांगते हैं और जटानाथ उन सबको अपना ही खून पीने के लिए देता है । तब सारे भूत प्रेत उनसे कुछ मांगने को कहते है क्योंकि बाबा जटानाथ की एक ही इच्छा थी की वो बाबा त्रिकालनाथ को मारकर उनसे भी ज्यादा ताकतवर बने । तो बाबा जटानाथ कहता है की बाबा त्रिकाल नाथ को मारने के लिए मेरी सहाय करो तब सारे प्रेत कहते है की उसके लिए तुम्हे अपनी खुद की बलि देनी होगी और हमे भोग देना होगा फिर तुम आत्मा बनकर अजय और अमर हो जाओगे उसके बाद तुम्हे कोई नही हरा पाएगा । और बाबा त्रिकालनाथ भी ये सब देखकर काफी दंग रहते है । बाबा जटानाथ अपने आप को वो सभी प्रेत को समर्पित करता जो बाबा त्रिकाल नाथ को मारने के लिए उसकी शक्ति बढ़ाने में मदद करेंगे । सारे प्रेत बाबा जटानाथ को मारकर उसके शव को चीर फाड़कर खा जाते है और बाबा जटा नाथ की आत्मा को बंधी बना लेते है l

ये सब देखकर बाबा त्रिकाल नाथ तुरंत ही स्मशान की और जाने के लिए निकलते है । लेकिन बाबा जटानाथ की आत्मा वो प्रेतों के प्रकोप को सहन नही कर पा रही थी इस लिए वो अब अपनी ताकत को सारी उपयोग में लाता है और सभी प्रेतों को वो वश में करने की कोशिश करने लगता है लेकिन अब परिस्थिति बदल गई थी । सारे प्रेत गांव में हाहाकार मचा देते है जो भी दिखा समझ जाओ की अगला पल दिखने नही बचा और पूरे गांव के लोग इससे कांप उठते है और बाबा त्रिकालनाथ को पुकारा करते है क्योंकि अब वो ही इस स्थिति को रोक सकने की ताकत रखते थे । सारे गांव में ऐसा सन्नाटा पसरा की मानो पूरा गांव ही समशान बन गया । लेकिन बाबा त्रिकाल नाथ पहले से ही स्मशान की और जाने के लिए निकल चुके थे । और गांव में दर और दहेसत को देखकर वो सभी गांव वालो को एक जगह पे इक्ट्ठा करते है । बात तो यहां तक बन गई थी सारे गांव में चीख पुकार और मौत तांडव कर रही थी ।

बाबा त्रिकाल नाथ अब सभी गांव वालो को इक्ट्ठा करके एक अनुष्ठान करते है जिसमे केवल और केवल रूह कंपा देने वाली आवाज और अचानक ही कोई आत्मा किसी के शरीर को कब्जे में लेकर वो शरीर को मार देती थी । सब लोग तावीज पहने हुए और बाबा त्रिकाल नाथ पे विश्वास रखकर चुप चाप डरके मारे खड़े हो जाते थे । बाबा त्रिकाल नाथ वो सारी आत्माओं को बंधी बना लेते हैं जो गांव में दहेसत बनाए हुए थे । और बाबा जटानाथ की आत्मा को भी मुक्त कराते है । मन में अजीब सा दर और पैरो की आहत से भी मन मास्तिक सुन्न हो जाए और रूह तक कांप उठे ऐसी परिस्थिति में शब्द भी नहीं निकल पा रहे थे ठीक से । सभी आत्मा को बाबा त्रिकाल नाथ समशान के घेरे में बांध लेते है और बाबा त्रिकाल नाथ बाबा जटानाथ की आत्मा को पूछते है की जब तुम खुद ही कई सारे विधाओं के जानकर थे और खुद से सब कुछ कर सकते थे तो ये सब सोच कहा से आ रही थीकी तुम मुझे मारने में सफल हो जाओगे और खुद ही बाबा त्रिकाल नाथ बन जाओगे ।

बाबा जटानाथ की आत्मा कहती है की में आपका दास नही होना चाहता था और आपका दास बनना स्वीकार नहीं था और में अपने आप ही आपको मारने के लिए सक्षम बनना चाहता था वो कोई भी स्थिति हो बस मेरा एक ही ख्वाब था की में आपको मारकर अपने आप को एक अच्छा तांत्रिक सिद्ध करु और में आज भी आपको हरा सकता हु । बाबा त्रिकाल नाथ कहते है की खुद ही आत्मा और प्रेतों के चंगुल में फस गया हो वो कैसे मुझे हरा सकता है और तुम केवल और केवल लालची थे और कुछ नही जो गलत तरीके से विधा का दुरपयोग करने की सोच रखता था । बाबा जटानाथ की आत्मा कहेती है की वो एक क्षण था जो में नही सोच पाया और चंगुल में फस गया लेकिन अब में पूरा आजाद हु आपसे युद्ध करने के लिए तत्पर हु मुझे शरीर चाहिए और बाबा त्रिकाल नाथ कहते है की अब तुम आत्मा हो और तुम्हे शरीर नही मिल सकता क्योंकि तुम अपना शरीर पहले ही गवा चुके हो ।

तब बाबा जटानाथ की आत्मा श्मशान के घेरे से सभी आत्माओं को आजाद कर देती है और मरे हुए मुर्दे को कब्र से बाहर लाकर उस मुर्दे में सभी आत्माए एक साथ समा जाती है और बाबा त्रिकाल नाथ से युद्ध करने के लिए आगे आ जाती है और ये सब देखकर कई सारे गांव वाले दर के मारे बेहोश हो गए या किसी किसी की तो जान भी चली गई और बाबा त्रिकाल नाथ के उपर भारी से भारी ताकत को उपयोग में लाया जाता है कुछ कुछ ताकत बाबा त्रिकाल नाथ अपनी शक्तियों से हरा देते है और कुछ कुछ ताकत अपने आप में समाहित कर लेते है और कुछ शक्तियों का तेज अब उनसे सहन ही नही हो रहा था और बाबा त्रिकाल नाथ का शरीर उनकी ही शक्तियों के कारण काला पड़ने लगा था और दोनो और भीषण ताकत का उपयोग हो रहा था आत्माए बार बार शरीर को बदल लेती थी लेकिन बाबा त्रिकाल नाथ एक ही शरीर होने के कारण वो तेज सहन नही कर पा रहे थे और अंत में बाबा त्रिकाल नाथ का शरीर पूरी तरह जल जाता है और सभी आत्मा और बाबा जटानाथ की आत्माए बाबा त्रिकाल नाथ को मारने के सफल हो जाती है और बाबा त्रिकालनाथ की आत्मा जिस भी शरीर को धारण करती वो काली शक्तियों के कारण पूरी तरह जल के भस्म हो जाता था ।और गांव में रहने वाले सभी लोगो की भी मौत हो जाती है पूरे गांव में दहेसत और कोई भी इस गांव में आने जाने वाला नही बचा था ।
बाबा त्रिकाल नाथ की आत्मा मरने के बाद भी युद्ध करने में लगी हुई थी लेकिन गांव के एक भी लोग को बचा नही पाई थी । और अंत में बाबा जटानाथ और श्मशान की आत्माए बाबा त्रिकाल नाथ की आत्मा से काली शक्तियों के रूप में टकराते है और जोरदार एक तेज पुंज बनकर आकाश में ही विलुप्त हो जाता है । और पूरा गांव और गांव के लोग हमेशा के लिए इस दुनियां से अलविदा हो जाते है और बाबा त्रिकाल नाथ के दूसरे शिस्यो की भी एक एक कर अनेक हादसों में मौत होने लगती है और उनका नाम निशान मिट जाता है और आस पास के गांव के लोग ऐसे ही खोफ के कारण लोग आज भी ये बात सुनने में और जानने में डरते है और ये कहानी खोफ का दूसरा नाम बन जाती है और इस कहानी का अंत हो जाता है ।


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