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एक असम्भव प्रेम गाथा एक वैशया और एक अन्य की अध्याय 1बी
चेतावन वैशया और एक अन्य की है इस कहानी काकिसी-वसुनधरा ग्राहक अपरिचित -कृष्णानन्द। प्रेम का प्रतीक =कृशनआलय मोक्छ ।।
वैशया प्रेमिका बन गई -लसवी । औधा-पवित्र स्थल । तुलना -मन्दिर।
"श्री कृष्ण 🔔 वैष्णो श्री राधा"
एक बार की बात है । एक बहुत बड़ा आदमी था जिसका वास्तविक नाम कृष्णानंद था और मूल नाम गरीब चन्द था । और वह बहुत बड़ा ज्ञानी था।
उसका परिवार चार लोगों का था , वह और उसकी स्वर्गवासी मां और पापा जो जो कि एक वृद्ध थे।
और एक मित्र भी था ।ज्ञिसका नाम अन्य बताया गया है था। मां स्वर्ग सिधार ने के पशचात और पिता बुजुर्ग होने के कारण वह बहुत दुखी और परेशान रहने लगा था। और तभी उसने मां के गुजरने के बाद अपने लिए कहीं काम तलाशा मगर वह हमेशा असफल और निराश हो जाता था। मगर फिर इस दौरान उसकी एक अनजान व्यक्ति से मुलाकात हो जाती है जो अपने बारे में कुछ नहीं बताकर उसे काम दिलवाने की बात कहता और वह उसकी बात भरोसा कर लेता और फिर उसकी मदद का दिलासा देते हुए उसे इस्तेमाल करता पहले किडनैपिंग,खून, चोरी बौम आदि बनाने का जिम्मा सौंप देता । और वह ट्रेनिंग के तौर अपने छूटे मोटे काम उसे ही देता था मगर क्योंकि वह ईमानदार था
और वह सबकी मदद करता था और वह अपने उसी ग़लत दोस्त को पहचान ना सका और और दुर्भाग्य वर्ष उसकी बात मानकर वह बचते बचते वह उसी एक वेश्यालय आ पहुंचा जहां के बारे में कभी वह सुना करता था और ये लही जगह जहां वह वह अपने उसी ग़लत दोस्त के साथ आता था ।
और वहां समस्या यह थी कि जिस रजकशी नाम ने
मित्र उसे वहां काम दिलवाया था । जिसने कृष्णानंद को यह काम दिलवाया था आज वही उसके पीछे पड़ा हुआ था। और अब उसे अपनी जान बचाकर भागते हुए लगभग सुबह से शाम होने को थी। और वह रूका तो कहा आकर रूका एक वेश्यालय के बाहर आकर मुरझित हो गया। जिसके गेट पर पर लिखा था 'करम ही पूजा है तथा गृहक ही ईशवर है।'मगर अब वह जा ही रही थी मगर चलते चलते उसके गेट बाहर बहोश हो गया था वो आदमी उसे मुरझित अवस्था में पड़ा हुआ मिला तो आज उसने बिना परवाह किए बिना उसे अपने साथ अन्दर ले गई और फिर जो हुआ होगा ?
संवाद
१) वैशया -उसे उठाकर ले आई और आज अब रात बहुत होने के कारण वह भी फिर उसके साथ ही ही रूक गई। जब तक कि उसे होश नहीं आ गया।
२) कृष्णानंद वैशया से -मै कहा हूं और ये कौन सी
जगह है और तुम लड़की कौन हो? मै यहां कैसे आया नशें में पूछ रहा था।
३) वैशया कृष्णानंद से -यह एक वेश्यालय है साहब जी और मैं एक वैशया हूं। आप मुझे बेसुध मिले थे बाहर।
४) कृष्णानंद क्या अरे नहीं हटो मुझे जाने दो।
५) नहीं आप रूक जाइए आप को मेरी कसम।
६) कृष्णानंद -उसका मान रखने के लिए रूक जाता है। आज की रात वह दोनों बिल्कुल अकेले थे वहां पर। वह दोनों अलग ही लेटे थे।
लेखक -मगर रात बहुत थी और वर्षा और कड़कड़ाती बिजली के कारण सेल्वी नाम की वो वैशया जैसे ही सोने कि कोशिश कर बिजली और तेज़ कड़क उठ रही थी और कृष्णानंद नाम का व्यक्ति खटिया छोड़ कर जमीन में जहां वो सेल्वी नाम की वैशया उसकी तरफ पीठ कर लेटी हुई थी । फिर क्या कृष्णानंद नाम का वो यक्ति नग्न अवस्था में उसकी पीठ की ओर आकर लेट गया था। फिर क्या वो उसके बदन की गर्माहट से उत्तेजित होकर उसके आघोश में जा सिमटती और फिर कृष्णानंद एक हाथ उसके सीने पर और दूसरा हाथ स्तन पर और साथ ही वह उसकी गर्दन पर कान पर चुंबन कर रहा और वैशया का एक हाथ उसके प्रईवेट पार्ट पर था दूसरा मथे पर था। और फिर उस रात वैशयल
मे ही उनके बीच संबंध हो गया। उसकी दूसरी सुबह आदमी कृष्णानंद तो सही था मगर लेकिन
वैशया -डरई हुई बोली की जी अब क्या मैं तो आपके साथ सो ली जी अब क्या हमारे संबंध बन ग ए।
लेखक बता रहा -मगर यक्ति कृष्णानंद डरा नहीं और लड़ा और शादी सबके खिलाफ रस्में कसमें और मरियादा को भुलाकर शादी करने का सोचा और कर भी ली। मगर शादी वाले दिन की रात कुछ ऐसा हुआ जिसे देखकर वह दोनों थीडी पीड़ा हुई।
आदमी वैशया क साथ सुहागरात मनाते समय उसके हाथ पर एक नम्बर गुदा हुआ है था 278L56देखकर भी वह उसकी जिस्म की सुलगती अग्नि से देख उसके प्रेम को स्वीकार करता है।
क्योंकि लैसवी ने बिना परवाह किए बिना एक रात को उसकी मुफ्त सेवा की थी। और कृष्णानंद की एक इस भूल से वह वैशया से दुल्हन बन गई और उसका पूरा जीवन ही बदल गया।
हर वैशया का सौभाग्य मेरे इतना अच्छा नहीं होता क्योंकि खुदा कृष्णानंद जैसे यक्ति आजकल ढूंढने से भी नहीं मिलते जो एक अपनी भूल के कारण वैशया के खातिर उससे विवाह करने का सोचे ताकि वो समाज के खिलाफ जाकर एक वैशया के अस्तित्व को बनाए रखने में मदद करें आज ऐसे कृष्णानंद जैसे यक्ति ढूंढने पर भी मिलना असम्भव है।
सूचना -लेखक अपनी इस लेखनी से समाज को यह समझना चहाता है की कोई मनुष्य कभी मलीन नहीं हो सकता सिर्फ उसकी संगत उसके कर्म निर्धारित नहीं करती है। और इसलिए वैशया का
चरित्र काभी अपवित्र नहीं हो सकता क्योंकि वो मजबूरी में अपने आप को शर्मशार करतीं है वह भूख तथा रोटी की भूख जिस्म के कपड़े उतार लेती
साहब जहां कोई हमारे दर पर सिर सब झुकाते हैं।
फिर भी सोने वाला सफेद है तो मैं वैशया काली क्यों हूं। समाज में मैं निम्न औधे पर क्यों। मै दाम लेकर सबकी हूं फिर भी मेरा मलीन और बेनाम क्यों। क्यों मेरा कोई अस्तित्व नहीं। वह शौक में जिस्म नीलाम नहीं करतीं हैं जनाब ए ग़ालिब।
मजबूरी सब करवा देती है । यह पाप नहीं है एक फ़रियाद होती वैशया की। और वही दूसरी ओर जो हैवान बन इस्त्री पर कू दृष्टि डालते वो पाप नहीं है क्या और इस्त्री का जिस्म से कारोबार करे तो पाप करार और और जो जानवर करें वो पाप नहीं या गुनाह भी करार करते तो है मगर न्याय नहीं करता ये समाज।
वैशया -सब आते और एक रात का भाव देकर जिस्म में अग्नि लगाकर छोड़ जाते हैं ।
लैसवी आहें भरने लगती है।
कृष्णानंद -अब उसके माथे और गर्दन पर चुम्बन कर रहा होता हैं। और साथ ही उसके ब्लाउज की डोरी खोल रहा होता हैं।
लैसवी -अब और ज्यादा आहें भर रही है। और जब अब वो पूरी नंगी नग्न हो चुकी है । और कृष्णानंद भी पूर्ण रूप से उसके समक्ष पूर्ण रूप से नग्न अवस्था में है। और अब शायद वो संबंध बनाने को तैयार है और फिर वह दोनों संबंध बनाने लग लेते हैं । वह गर्भवती हो जाती है इसलिए उसके बच्चे को भी एक नाम चाहिए था।
सीख-यह दुनिया एक मंच है जहां सब प्याले है।
फिर एक दूसरे से मन मुटाव सिर्फ ऊच नीच,अमीर गरीब पवित्र और अपवित्र मनाते कर्म सब करते हैं हैं तो फल सब प्राप्त करना चाहते और सबको कर्मो के अनुसार ही फल मिलता तो दुनिया स्त्री मां के समान है और किसी नारी का चरित्र या फल उसके स्वभाव तथा पुन्य तय करते हैं ना कि कर्म क्योंकि कर्म ही वेश्यालय से वैशयालूधाम बना क्योंकि कृष्णानंद ने जुबान और लैसवी ने कसम देकर एक दूसरे को अपमानित होने से बचा लिया।
क्योंकि वैशयालूधाम के प्रवेश गृह पर ऐसा कुछ लिखा था जिसमें था कि ग्राहक ही ईशवर है तथा कर्म ही पूजा है। और इस्त्री का स्थान हमेशा मन्दिर के सम्मान होता है। इसलिए अपवित्र मनु नहीं होता अपवित्र सोच होती है जो हमारे विचारो से आती है। और विचार संगत से मिलते हैं । क्योंकि जेसी संगत वेसी रंगत । इससे यह साफ है कि स्त्री कभी बाजारू नहीं बनना चाहती । जो पैसे मुखिया के उस पर खर्च हुए उन्हें जुकाने तक उसे यह करना ही पड़ता है।
मगर शायद ये प्रकृति आज कोई गाथा लिखने जा रही थी और शायद तभी वह वेश्यालय के पास आकर ही मुरझित हुआ क्योंकि गुरान एक मयस्सर लिखने जा रहा था। उस रात एक मुरझित अपने हथियार डालकर प्रेम की गाथा समझा रहा था जब उसकी मां की परछाई उसने एक वैशया में महसूस की जिसके साथ उसकी यह असम्भव प्रेम गाथा लिखी गई। जैसे जैसे रात्रि आ रही थी दिन ढल रहा था उन दोनों के मन में एक चुभन सी हो रही थी। और सबके जाने के बाद वो वहां से निकल ही रही थी।तब उसे वो मिल गया। मेरा नाम लैसवी हैं साहब जी और आप मेरे वैशयलय में हो। और वह दोनों उस रात लेटे तो अलग ही थे लेकिन फिर वह अजानक वह उसके बागल में जाकर लेट गया और फिर धीरे धीरे वह अपने आप को रोक नहीं पाई और और दोनों दोनों के बीच संबंध संबंध हो ग ए ।
वैशया बोली जी जी ये अब क्या होगा मैं तो आपके साथ सो ली और कृष्णानंद अपनी जुबान का मान और वैशया की मरियादा का सम्मान किया और फिर उसने उसे विवाह के लिए कहा तो वह हिचकिचाकर बोली यह बाजार जिस्म का काटकर घर बनाती हूं। सैकड़ों चीखें निकल जाएं चाहे फिर भी मग्न रहती हूं । वह आदमी ये सुनकर उसने उसे आपना तो लिया मगर एक शर्त रखता है और कसम देकर उससे विवाह करने का निर्णय लेता है ।
और इस तरह वह फिर सम्भोग करना फिर से चालू कर देते हैं। और फिर पहले कृष्णानंद का वो औजार अपने हाथों से हिला हिला कर उसका मल अपने मुंह में और पूरे जिस्म पर फैला रही थी। और फिर क्या कृष्णानंद भी अपना औजार उसकी गान्ड में डाल देता और वह बहुत मज़े से चीख बोलती आह आह आह। और इस तरह एक कृष्णानंद नाम के एक उस यक्ति के कारण वेश्यालय "वैशयालूधाम बन गया। वेश्यालय गृह पर लाल रंग से लिखा था कि कर्म ही पूजा तथा गृहक ही ईशवर है यह काले रंग में लिखा गया था। अतः अनेक प्रयासों के बाद वह वैसयालय से आजाद हो गई और सारे समाज के सामने उस एक यक्ति अपनी ग़लती सुधारते हुए सारे समाज और सारी रस्में कसमें भुलाकर उस वैशया से शादी रचाई जिसके बाद उस एक यक्ति की जुबान और उस वैशया की एक कसम के कारण उसे वैशयालूधाम नाम दे दिया गया। और उस आदमी और वैशया एक साथ पूजा जाने लगा।
और इसी तरह उनकी यह कथा सदा सदा के लिए अमर हो गई। वैशया बोली सब करना आसान है है जी मगर एक वैशया होना आसान नहीं होता है।
सब आते हैं हमें लुटने हमारे अड्डे पर वो एक रात का भाव देकर जिस्म को उत्तेजित कर और आग अपनी प्यास बुझाकर हमारे भीतर आग लगाकर जिस्म को उत्तेजित कर अपनी हवस को मनोरंजन बोलकर चलें जातें हैं। और फिर हम से नज़रें भी नहीं मिला पाते और समाज कहता है कि वैशया अपवित्र होती है। क्यों जनाब उसकी रोटी मलीन क्यों और वो अपवित्र क्यों।
क्योंकि उसकी मजबूरी यह है कि क्योंकि वह किसी का बुरा ना चहाकर सबको खुश करके पैसा कमाती है तो वह निम्न दर्जे की हो गई और आदमी जो हर तरह का होता और उसके यहां जाता है तो उसकी पोशाक सफेद कैसे और आदमी का क्या। तो आदमी के साथ क्या होना चाहिए।
"जब वैशया बनी कृष्णानंद की दुल्हन और देखी रस्में और देखा विवाह और हुईं डोली में से रूखसत तो वहां से आई और वो पहली रात में डरी सहमी हुई बैठीं थीं सेझ पर और लगा की यह पर भी रूह तड़प जाएगी।
अभी बन्द कमरे में लैसवी घोंघट निकाल कर बैठीं थीं। और आसपास आज भी वही एक बिस्तर फूलों से सजा हुआ (गुलाबो) का वही मैं हूं सब कुछ वही है। बस फर्क इतना है कि आज मैं एक जिस्मानी करोबार में वैशया के पलंग पर ना होकर के देव स्वरूप महापुरुष की अर्धांगिनी हूं जिसमें वो मुझे सबकुछ मिला जो मैं चाहती थी। आपके की वजह से मैं उस बाजारू नाम और उस चीखों के दलदल से बाहर आ पाई हूं जहां सदियों से वैशया की बन्द कमरे से जोरदार चीखें निकलने की आवाज सुनाई देती है उन्हें अलग अलग तरह से छुआ जाता है और जिस्म तड़प भी रहा हो अगर भी वह चुप रहती है।आप से उस दिन नशें में भूल ना हुईं होती तो आज मेरा सौभाग्य दुर्भाग्य में तकदील हो जाता।
और इतना कहते ही कृष्णानंद और भी प्रेसनन हो जाता है और फिर वो लैसवी के साथ पहली रात का आनन्द लेने लग जाता है।
संवाद -कृष्णानन्द और लैसवी के बीच।
१कृषणाननद-कमरे में दाखिल होते हुए और सिटकनी लगा ते हुए।
२वैशया घोंघट निकाल कर बैठीं हुई थी।
३कृषणाननद उसके पास आकर उसका घोंघट नीचे की ओर गिराते हुए।
४) कृष्णानंद घोंघट खोलकर देखता है।
५) लैसवी दूध का गिलास उसे पिलाते और कृष्णानंद उसे पिलाते हुए।
६) कृष्णानंद -अब धीरे धीरे उसके जेवर उतारने लग जाता है।
७) वो आहें भर रही है और अभी उसकी आंखें बंद है।८) कृष्णानंद -अब धीरे धीरे उसका पल्लू नीचे गिरता है।
लैसवी आहें भरने लगती है। कृष्णानंद अब उसके माथे और गर्दन पर चुम्बन कर रहा होता हैं और साथ ही उसके ब्लाउज की डोरी भी खोल रहा होता है।
लैसवी और ज्यादा आहें भरने भर रही है।
और जब अब वो पूरी तरह से नग्न हो चुकी है और
कृष्णानंद भी पूर्ण रूप से उसके समक्ष पूर्ण नंगा हो कर है।
फिर वो संबंध बनाने सुरू कर देते हैं। वह फिर वैशया गर्भवती हो गई इसलिए उसके बच्चे को भी नाम चाहिए था।
कृष्णानंद नाम के उस एक यक्ति की वजह से वैशया नाम लैसवी लड़की सारे समाज के खिलाफ जाकर उस लैसवी नाम की वैशया से विवाह करने का सोच रहा था और उसने सारे समाज की रस्में कसमें रिति और रिवाज के खिलाफ जाकर उस लैसवी नाम की लड़की वैशया से विवाह किया और इस तरह उनकी इस कथा ने समाज और वेश्याओं में एक नई छवि की पहल की जिसके बाद वह वैशया गली संजीवनी के नाम से मशहूर होनी सुरू हो गई। और उस वैशया के आत्मसमर्पण और उसे यह लगा कि जिसके नाम में कृष्ण उसके कर्म उसे
एक नये जीवन की आस देता दिख रहा था। और एक दूसरे पर भरोसा के कारण उनकी यानी की उस नौजवान वैशया की उम्र २३और कृष्णानंद की उम्र २७के होने पर उनके भरोसे और दृढ़ निश्चय होने
के कारण उसके उस वेश्यालय को वैशयालूधाम
बोलने इन दोनों की इस साझेदारी के कारण कारण उनका यह विवाह निर्विघ्न संपन्न सफल हुआ।
और बिना समाज की परवाह किए उन्होंने अपनी इस गाथा को विवाह करके एक नया अध्याय लिखा जिसमें उस यक्ति ने विषय रखा"एक असम्भव प्रेम गाथा एक वैशया और एक महापुरुष की जिसने एक नई मिसाल कायम की समाज में एक असम्भव
पहल की ओर प्रयास की ओर एक नया पैगाम एक नया पग रखने की ओर अग्रसर प्रयास की ओर बढ़ावा दे रहा है। वैशया बता रही की -समाज में मैं ही एक ऐसी वैशया नहीं हूं जिसका चरित्र अभिशापित है और भी कई वैश्याएं है जो हर अपनी चीख से अपना पेट पालती और हर समय हमारे यहां बड़े से बड़ा यक्ति छोटा बनकर हमारे साथ सेक्स सोने आता है अपनी जिस्म की भूख हम से मिटाने जहां मंत्री से भिखारी सब की बात है यहां सभी जिस्म के भिखारी हैं। सब आते हैं सरकार इस जिस्म की नुमाइश में हमारे जिस्म को जलाकर और नोच नोच कर बदन अपनी छुअन की गर्माहट पैदा कर और हमें चीखता चिल्लाता और तड़पता हुआ छोड़ कर चले जाते हैं।
एक वैशया का तन मलीन हो सकता है क्योंकि वह मृत्यु सा भयानक दृश्य जब उसे रोटी बनाने के लिए
शर्मशार होना पड़ता है तब उसका जिस्म आवारा कीचड में डूबकर कर भी तन विभिन्न प्रकार की
छुअन से मैला जरूर हो जाता है जिस्म एक गन्द मारने भी लगे फिर भी रूह पवित्र रहती और उनकी लाज पर पग पर दर्द और अश्रु से उनका एक महाभोज एकठा होता है। और उनके जिस्म की आंच से उसमें सौंधी सी खूशबू पैदा हो जाती है ।
जो कि वास्तविकता में संसार को यह समझना चहाती है कि ईमानदारी से बड़ी कोई पहचान नहीं ।
और इस्त्री की लाज भी ईमानदारी के लिए दांव पर लगा दी जाती मगर जिस्म बेचकर पेट पालने में कोई पाप नहीं फिर भी वह वैशयालूधाम बदनाम है। और मनु चाहें कितना भी दुष्कर्म करने पर उतर आए उसके साथ कुछ नहीं और वैशयलय जहां वैशयाए हर जाति को अपनाकर उनके साथ सेक्स संबंध बना लिया करती है वह इस अपना धर्म कर्म और कर्तव्य खुद को अन्य को सौंप कर वो अपना धर्म कर्म और कर्तव्य अन्य प्राप्त करती हैं । तो वो स्थान मलीन और वो मलीन तथा वो अपवित्र कैसे हो सकती है। उसका किरदार तथा भूमिका दोनों बखूबी निभाया है। चरित्र काभी मैला नहीं हो सकता बस सही दृष्टिकोण और एक नया पैगाम तय किया जा सकता है।
अगर यह पढ़कर कोई मनुष्य एक भी वैशया को
अपनाकर उसका सम्मान और आदर सहित उसे
अपनाता है और समाज से भी रिवाज कसमों रीति
के खिलाफ जाकर अगर किसी एक वैशया को गंगूबाई से राधा या किशोरी बना दिया तो हम समझे
और सोचेंगे कि कृष्णानंद और लैसवी की यह असम्भव गथा सम्भव हुई यह प्रेम गाथा अनन्त काल तक कलम तोड़कर याद रखी जाएगी ।
कौन साफ है और कौन मलीन है और कौन चिन्ता में है और कौन संतुष्ट हैं और पाप क्या है और पुन्य क्या है । यह पता लगा पाना असम्भव है मगर कोशिश के तौर पर यह उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं।
साधु संत -भिकशा
शिशु की भूख -चनचलता
विधवा -कलेश
गर्भवती -वरदान।
बांज -अभिशाप
वैशया -एक बेबश मजबूरी। अघोर -परिश्रम विलुप्त छवि।
यमराज वैशया से -पवित्रता मन की होती है तन की क्या और कुछ भी तुच्छ नही होता वह वैशया भी अपवित्र कैसे हो सकती जो बिना किसी जाति धर्म और हर मनु के चरित्र को अपना कर्तव्य समझकर अपनाती है। और कभी मलीन और अपवित्र नहीं हो सकती अनगिनत छुअन के बाद भी निडर होकर वह कर्म करती हैं उनकी चीख ही उनकी भूख का एक मात्र साधन है। और वो यह खुशी में नहीं बल्कि
मजबूरी और लाचारी और धन के अभाव में आकर
करती है। क्योंकि वह यह सोच सकती है कि हम सोच सकते है कि धन मरियादा को भी एक समय पर दांव पर लगा सकता है। मगर फिर भी कभी ईमानदारी को कभी नहीं खरीद सकता । धन एक वैशया का सम्मान ले सकता है लेकिन उसकी मरियादा और पवित्रता को कभी नहीं मिटा सकता है। क्योंकि वह जिस्म भी तभी नीलाम करती हैं।
जब उसे रोटी सजाने का अधिकार दो और कृष्णानंद और लैसवी के जैसी आज तक कोई प्रेम गाथा आज तक रचित ही नहीं हुई होगी।
चरित्र पवित्र तथा समाज पोशित और भूमिका भूख से मजबूरी में जिस्म दांव पर लगती जरूर हूं जिस्म विचारों से प्रभावित होकर मैला जरूर है लेकिन मेरा स्वभाव इतना इसथिर है कि अनगिनत छुअन के बाद भी मैं पवित्र हूं तेरा चरित्र का चित्र काला जरूर है मगर मैं वो हूं अपने आप को चुनौती और चोट देकर अपना किरदार निभा रही हूं। मै लोगों कि चाह हूं और मेरी सुन्दरता ही मेरे जीवन का आधार है।
और सूत्र बताते हैं कि वो वैशयालूधाम की जगह जिस जगह है वो एक वनका मानडे मानक सेठ जी
की है। जो वैशया की मुखिया के बहुत कायल थे ।
लैसवी को पहले कोई विदेशी आए होंगे तो मुखिया के द्वारा उसे सेठ जी के मेहमानों की खिममत में उनके साथ सोने का सबसे बड़ा इनाम सेठ ने खुद उसे अगली सुबह बुलाकर उसे दिया जो की वास्तविकता में सभी के लिए बहुत बड़ी बात थी ।
मोटी रकम और उसके बाद हमेशा के लिए सेठ जी के हरम में उसे पेश रहना पड़ता था। जिससे वह बहुत शोशित हो चुकी थी ।


अंतिम अध्याय -अब विवाह के कुछ समय बाद जब वह पेट से थी और तो एक दिन उसे अत्यंत दुर्लभ जलन महसूस हुई पेट में होती है और उसे जब दिखलाने के लिए रैसमो अस्पताल भेजवया गया है तो पता चला कि वो पेट से है। और जब पूर्ण शरीर की जांच करवाई गई तो क्या पता चलता कि उसे
दिमाग में टईयूमर है वह अब बस वो कुछ समय की मेहमान है । यह जान वह कृष्णानंद को एक लेटर लिखती जो कि कृष्णानंद को जब मिलता जब वो मर गई होती है। तो ऊपर जाकर उसने यम देव से
बोला कि मेरी मृत्यु ऐसे क्यों हुई भगवन ।


और फिर बोली कि मैं तो एक वैशया हूं और अगर वैशया होकर कर्म कर रही थी और अगर वैशया होना और वैशया होकर जिस्म बेचना पाप है ।
तो हां आप मुझे बेसक दंड दे सकते हैं भगवन आपका दंड भी अगर आशीर्वाद के रूप में मिल जाए तो यह मेरे लिए बड़ी सौभाग्य की बात होगी।

यमराज कहने लगे -ये सुन वह बहुत अधिक प्रसन्न होकर उन्होंने उसकी परिछा लेनी की सोची और उसकी परिछा कैसी हो गी यह तय भी कर लिया था। और वो बुले इसे अगर तुम पार कर लेती हो
तो तुम्हें जो भी चाहिए वो तुम पा सकती हो।


वैशया थोड़ा ठहरकर बोली - क्या आप सच्च बोल रहे हैं और क्या सच्च में जो चहाती हूं वो मिलेगा भगवन सत्य कह रहे हैं क्या आप।

जो चहाती हूं वो मांग सकती हैं क्या?

यमराज -बोले हां बालिके जो चाहो वो मांग सकती हूं और श्रृष्टि में सारे न्याय कर्म और वाणी से आपके संस्कार से विचार से यवहार से प्रचार से व्यापार बनता है।
वो कहने लगे कि हम एक गाथा सुनाएगे वो सुनकर जो हम कहें वो करना होगा।
बोलो मंज़ूर है।

वैशया -जी भगवन आप जो कहेंगे वो करूंगी।

यमराज बोले कि ठीक है। हम तुम्हें बताएंगे मगर पहले यह तो बोलो कि क्या मांगना चहाती हो।

वैसया यमराज से कहते हुए -कि है भगवन आप तो सब जानते हैं कि मैं क्या थी और मेरा जीवन किस तरह गुजरा और मेरे इस श्रापित और मुश्किल जीवन को एक नई दिशा देने वाले यक्ति जो कि मेरे पति हैं जिनका नाम कृष्णानंद है जिन्होने अपनी एक भूल से मुझे एक नया जीवन दिया और मुझे अपना बना लिया उनके अलावा मुझे और कुछ नहीं चाहिए।
और यह सुनते ही यमराज ने कहा कि तो असम्भव है बालिके।
और फिर उन्होंने उसे कहा कि मैं यमराज तुम्हें तीन वरदान दे ता हूं ताकि कि कृष्णानंद और लैसवी अगले
योग में फिर एक होंगे और वो कृष्णानंद की एक भूल फिर तेरा हाथ थाम कर वो तुझे एक नई बार कहानी देकर एक असम्भव गाथा को पूरा करा को पूरा करेगा।
और मैं तुझे ५फरिसते भी देता हूं जो तेरा जीवन कोरा कागज़ पर सजाएंगे।


मगर मै एक बार फिर पूछता हूं क्या चाहिए तुझे मोक्ष या प्रेम गाथा।


वैशया बिना किसी हिचकिचाहट के झट से बोल तीहै प्रेम चाहिए भगवन क्योंकि मैं जिन्दगी भर खोजतीं रही स्वाभिमान और इज्जत और कृष्णानंद वो यक्ति है जिनकी एक भूल ने मुझे और मेरी जिंदगी को नया सार दिया था। और इस जीवन को मैं उन्हें के नाम समर्पित कर देना चाहती हूं।

फिर यमराज उसे परिछा की विधि बताते हैं।

यमराज उसे श्रृष्टि के जाल बुनें जाल के बारे में सुनिश्चित कर रहे हैं और वो समझ कर भी नहीं समझ पा रही थी।

एक वैशया और यमराज एक मार्गदर्शन की गाथा।

और लैसवी के साथ और उनके साथ भी वो सब कुछ हुआ जो कि एक आम पति और पत्नी दोनों के बीच होता है संबंध बने और वह गर्भवती हुई मगर तकदीर में उनका पिछड़ना तय था और इसलिए उसकी मृत्यु के बाद फिर काभी उन्होंने किसी और को देखा तक नही और वह ज्यादा से ज्यादा ख़ुद को अकेला और लैसवी की यादों और उसके साथ बिताए गए एक एक पलों याद करते हुए रोकर गुजारा करते थे।

मगर फिर एक दिन वह कुछ खोज रहा था और इसी बीच उस नायिका की आखिरी निशानी उसकी एक अध्यात्मिक किताब जो कि श्री कृष्ण जी की थी और उसी किताब के अन्दर नायिका का वो आखिरी पत्र उसे रखा मिला। उस किताब अन्दर एक मोर पंख और एक लिफाफा भी मिला जो कि गुलाबी रंग काथा जिसमें एक लेटर लिखा मिला मिला जिसमें में लिखा कुछ ऐसा था जो कि सिर्फ एक प्रेमिका ही अपने प्रेमी के लिए लिख सकती हैं।

लेटर का नाम - तेरे चंचल मन की प्यास और तेरे बिखेरने से मैं टूटकर गिर जाती हूं । मेरा मन जलता एक असम्भव प्रेम गाथा का एक दीपक प्रज्ज्वलित करने को तैयार है जो कहीं ना मैं और तू है।
और आगे लिखा था मैं आऊंगी वापस हमारी मेरी और मेरी प्रेम कहानी की गाथा के संग्राम को पूरा करने में फिर लौटूंगी ओ रे पिया बालम।

"तू ही मैं हूं और मैं ही तूं है "
मुख्य पात्र और भूमिका।
औधा नायिका और नायक
लैसवी (एक वैशया प्रेमिका और कृष्णानंद श्री हरि का एक रूप जो वैसया का आस्तित्व बन चुका होता है।

यमराज उसे परिछा कैसी देनी यह समझना चाह ताकि वह अपने इस मोह को त्याग से आकर और पुनर्जन्म लेकर और एक नई पहचान के साथ और एक अधूरी प्रेम कथा अनजाम देना ही होगा माधविका और गोखरीदास की प्रेम कहानी को एक अनजाम के साथ मोकमल करेगा और के लिए उसके तुम्हें वो सारे पूराना अध्याय हमेशा हमेशा के लिए मिटाना ही होगा ताकि मधविका और गोखरीदास गाथा को से फिर रची जाएगी बस कुछ समय और बालिके।
माधविका दुखी होकर यमराज जी के हुक्म को स्वीकार कर कहती मुझे अब सब कुछ मंज़ूर है आप जो कहने मैं वो करूंगी बस मैं उनसे एक बार फिर मिलना चाहती और यमराज उसे परिछा क्या है वो पूरी अवधि बताते हैं।

एक असम्भव प्रेम गाथा की पुनर्जन्म की परिछा की विधि सुनो बालिके।-यमराज माधविका से कहते हुए।

आस्तित्व एक पुनर्जन्म का रहस्य।

नायक -गोखरीदास नायिका -मधविका (Nivisha).
पहले हम तुम्हें वो तीन वरदान के बारे में कुछ छवि दिखलाएगे और हम मगर ये कदा भी नहीं बताएंगे कि क्या सही है और क्या चुनाव उचित है या नहीं।

यमराज परिछा चुनाव का मूल्यांक देते हुए।(26)
वरदान और परिछा का प्रस्ताव दिया -श्री हरि।

माधविका का अखंड तप एक असम्भव प्रेम गाथा में पूर्ण समर्पित होकर एक पक प्रेम की ओर।

और यमराज बोले यदि तुम हमें प्रसन्न करने में में सफल हो ग ई तो हम तुम्हें और क्या करना होगा ये
बताएंगे।
वैसया -मुझे स्वीकार है भगवन।
यमराज -तथासतू बालिके।
वैसया यमराज के नाम का-१०८बार जाप करती वो नग्न अवस्था में आकर और अपने प्रेम की लाज बचाने के लिए वह छोली फैला कर भीख मांग रही है।
यमराज -अभी भी नहीं हरे।

और तब उस माधविका सिर्फ एक नाम पुकारा।
तब यम भी हरि से बोल गए।
और मधविका छंद से अपनी प्रेम रूपी विराह की अग्नि को शान्त करने का प्रयास कर रही थी।
वो अपनी मधुर वाणी से छंद बना कर प्रेम के मुतियो का उपवन अपने अश्रु से संजो रही थी।
और फिर वो कृष्ण अर्थात् श्री हरि के सामने बहुत
पीड़ा में होकर अब यमराज जी के अहावहन करते वो
यमराज उन्हीं तीनों वरदान के बारे में ज्ञान और सीमा की अवधि बताएंगे कार्यों में ताकि बाधा उत्पन्न ना हो।

और फिर जब उस मधविका मठवाली ने श्री हरि से अपनी छोली में प्रेम गाथा का उपहार मांग वो उन्हें एक नाम लेकर पुकरने लगीं और यमराज श्री कृष्ण की आगया पालन को अपना कर्तव्य और सौभाग्य दोनों समझ के उसकी मदद करने में लग गए।

मगर अभी भी कुछ नहीं हुआ इसलिए वैशया अपने प्रेमी को जीवित करने कि मांग सबसे बड़े मायावी अर्थात श्री कृष्ण जी से अपनी छोली प्रेम गाथा अनन्त की अग्नि को साक्षी मानकर प्रज्वलित करने कि गुहार अपने मनमोहक छंद द्वारा कर रही थी।

तो आइए जानते हैं कि यमराज और श्री कृष्ण की क्या रणनीति रही वैशया को एक पवित्र तथा मठ वाली बनाने के कार्य में उन्हें सफलता कैसे प्राप्त हुई।

श्री कृष्ण के द्वारा कन्या का मार्गदर्शन चला।
यमराज ने उस माधविका उर्फ लैसवी नाम की वैशया उसकी और उसके स्वामी कृष्णानंद की प्रेम गाथा अनन्त को पूरा करने के लिए उसे इस पूरी प्रेम गाथा अनन्त के तीन वरदान से रूबरू कराया।
1जनम २पुनरजनम ३तीन महाउपयोगी वरदान।

वह अब बात यह थी कि माधविका ने लैसवी नाम की वैशया की प्रेम गाथा अनन्त को पूरा कैसे किया होगा।

उसके माता पिता को दान स्वरूप उसका दान करना पड़ा था।

यमराज और श्री हरि के आदेश पर चलकर उसे इस अनन्त प्रेम गाथा को पूरा किया होगा।
नायिका का पुनर्जन्म -नीविशा माधविका के पर हुआं था।

और फिर सब लोग बहुत दुखी हुए और उसे दान कर दिया गया था।
यही से एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त का प्रारंभ एक बार फिर से शुरू हुआ।
एक पुनर्जन्म के साथ सबकुछ बदल गया है।
सभी की भूमिका बदल गई।
लैसवी वैशया से मधविका मठवाली बनकर आ गई
और कृष्णानंद गोरीदास आलमगीर में बदल गया और संजीवनी गली कडोपरा में तकदील हो गया था।
और फिर से एक नया अध्याय प्रारंभ हो गया था।

हे भगवन कृपा करें। भाग 1। प्रथम अध्याय समाप्त -१
प्रथम अध्याय भाग -१ एक असम्भव प्रेम गाथा -परिचय
लेखक का नाम -आयुष वर्मा
लेखक की मां -अवनतिका वर्मा।
लेखक के पिता का नाम -शिवाय ।
जन्म तारीख और महीना १६जनवरी२००४
समय -_। भाग एक असम्भव प्रेम गाथा।
नायक -कृष्णानन्द (36)
नायक का मूल नाम गरीब चन्द
नायक की मां का नाम सैलानी देवी (75)
परिस्थिति -मृतक
पिता का नाम -रविदास हरदयाल शंकर (52)
पिता का यवसाय -अखबार कार्यालय में रिपोर्ट तैयार करने थे। (४६)।

यवसाय -वैशयालय कर्मचारी (30) वर्ष से।
प्रियतम का मूल नाम - लैसवी रहेहाइश ।
मुख्य नाम -सैलवी हयास ।(२७)
पिता का नाम - स्वर्गवासी हरिशंकर चौहान (98)
मां का नाम -सकुनतलाबाई (60)। कुमाहार।
वैशया की आय =20000Per Customer.
वैश्यों का दलाल मुख्यास खान(21)
मित्र का उपनाम -रजकशी(25) अन्य।
सेकटरी का नाम -शीवानी शाह (22).
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मालकिन -भर प्रीत डाडरी
पता -शइवआलयधाम ३/२ सुनशान गली संजीवनी गृह ।
सम्पर्क करे.........
गाथा संग्रह के भीतर स्थल और पात्रों की भूमिका महत्वपूर्ण रही गथा संग्रह के भीतर।।
#अजनबी322378

प्रथम अध्याय एक असंभव प्रेम गाथा अनन्त भाग १





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#एक_असभंव_प्रेम_गाथा_अन्नत_एक_वेशया_और_अन्य_की💔