यादें अब्बू
आज से ठीक 2 महिने पहले यानी 18 अप्रैल काे भी सुरूज तुलू हाेता है हमेशा की तरह और हम अब्बू के पास आते हैं और अब्बू ठीक ठाक रहते हैं थाेड़ा तकलीफ रहती है लेकिन मैं कहता हूँ अब्बू आप जल्द ठीक हाे जायेंगे और फिर हम सब चलेंगे घर लेकिन हमें जरा सा भी एहसास नहीं था कि आज का एक एक मिनट जो गुजर रहा है वाे हमारी ज़िन्दगी का अब्बू के साथ दाेबारा कभी नहीं आने वाला ये वक़्त गुजर रहा है अब्बू के पास आज के दिन सुबह से मै एक मिनट के लिए उनकी आंखों से ओझल नहीं हाेना चाहता था
मैं राेजे से था अब्बू मुझे देखते और कुछ बाेलते नहीं इस दिन जैसे जैसे वक़्त गुजरता मैं उनकी खिदमत करता रहा उस दिन मेरे हाथ भी थक नहीं रहे थे मैं आराम भी नहीं करना चाहता था मुझे ये पता भी नहीं था की अब्बू आज चले जायेगें
अब्बू कभी कहते बेटा सर पर आगाेछा भिगा कर रखाे कभी कहते पैर काे पानी से पाेछाे मैं कहता अब्बू नुकसान करेगा लेकिन...
मैं राेजे से था अब्बू मुझे देखते और कुछ बाेलते नहीं इस दिन जैसे जैसे वक़्त गुजरता मैं उनकी खिदमत करता रहा उस दिन मेरे हाथ भी थक नहीं रहे थे मैं आराम भी नहीं करना चाहता था मुझे ये पता भी नहीं था की अब्बू आज चले जायेगें
अब्बू कभी कहते बेटा सर पर आगाेछा भिगा कर रखाे कभी कहते पैर काे पानी से पाेछाे मैं कहता अब्बू नुकसान करेगा लेकिन...