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निखिल निराला प्रेम जोगी:- ये कैसी मोहब्बत ?(उपन्यास)
@nikhilthakur #love
ये कैसी मोहब्बत(सच्चे प्रेम पर आधारित उपन्यास)

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जीवन नामक पूंजी में हमने अनेक प्रकार के ....सुख दु:ख है....कभी सुख के पल आते है ...तो कभी दु:ख के ...कभी हंसी के ...तो कभी रोये जी भर के ..!

पर मैने भी जिन्दगी उसी तन्हा जी ...जिस तरह से मैं सुख में रहता हूं ...तो उसी तरह दु:ख में भी ...मैने कभी भी अपने दोस्तों व परिवारों वालों को यह अहसास नहीं होने कि मैं दु:खी हूं....मेरे अंदर दु:खों का सागर छुपा है ...कि दिल के अंदर कितना दर्द छुपाये बैठा हूं...कितना दु:खी हूं मैं ....कितना तन्हा जैसा हूं...कितना अकेलापन ....खालीपन है मेरी जिन्दगी में.......!

❗❗जिन्दगी तो कोरे कागज की तरह ही है हमारी

जिसमें कोई स्याही लग ही नहीं पाई ,ना कोई रंग❗❗

वह कहते है ना कि """" जब जीवनरूपी नाव में प्यार की गंगा रूपी नदी बहती है तो जीवन के सारे दु:ख ..दर्द..तकलीफ ....कष्ट...और वो तन्हाई अपने आप धीरे -धीरे खत्म हो जाती है .....दिल की हर बात जुबां पे आ जाती है।

बचपन से लेकर 18 साल की आयु तक मुझे कभी किसी लडकी को देखकर प्यार नहीं हुआ और ना ही हुआ था ....बस एक आकर्षण सा था जो सिर्फ कुछ पल का था ...जो सिर्फ एक लडकी के लिए था....अब उसे मैं आकर्षण कहूं या प्यार आज तक ही नहीं समझ नहीं पाया हूं। वह लडकी बचपन से ही मेरे साथ ही पढती थी। उस लडकी का नाम """" अमिता """ और 8th कक्षा तक एक साथ एक ही स्कूल में हम पढते थे ....मैं कक्षा में उसे ही देखता रहता ...बात करना चाहता था ...पर कभी हम दोनों के बीच बात ही नहीं हुई ....शायद उसका आकर्षण ही था ....या यूं कह सकते है कि एक तरफा प्यार ...और उस समय तो मैं प्यार के बारे में तो कुछ जानता ही नहीं था....गाँव का जीवन था ...बिना किसी टेंशन के जीवन को व्यतीत करते थे ....उस समय पापा एक रूपया देते तो ऐसा लगता था कि हमें सौ रूपया दिया हो ...और पांच रूपये मिलने पर ऐसा लगता था कि पाँच सौ रूपये दिये हो...दस रूपये मिलने पर इतना खुश होते थे कि मानों हमें कोई खजाना दिया हो।

अमिता के प्रति वह प्यार था या आकर्षण यह तो मैं आज तक समझ नहीं सका हूं ....और उस समय तो प्यार के बारे में कुछ पता ही नहीं था।

सब कुछ ठीक चल रहा था ...अपनी पढाई पूरी करके अमिता भी चली गई ...अपने घर ...उनका घर जोगिन्द्रनगर में था ...और उसके माता पिता अध्यापक थे ...उनके माता पिता का ट्रांसफर हमारे गांव में ही हुआ था .....और अमिता का जन्म भी हमारे गाँव मे ही हुआ था ....उसका बचपन आदि सबकुछ हमारे गाँव में ही गुजरा था ।

अमिता के अपने शहर वापिस जाने का कोई गम सा भी नहीं हुआ मुझे ...कोई दु:ख नहीं हुआ ...उसके जाने के बाद मैं भी अपनी पढाई में व्यस्त हो गया और उसे भुल ही सा गया था ।फिर मैैैं अपनी आगे की पढाई पुरी करने के लिए अन्य गाँव के स्कुल में चला गया और वहां एक साल तो सही सा रहा ...तो एक साल को बाद एक और लडकी हमारे स्कुल में पढने आई ...पहले एक दो माह तो ठीक ही रहा ...पता नी कब मैं उसके प्यार में ही खो गया मालुम ही नहीं चला मुझे...

और उस समय मैं दसवीं कक्षा में पढता था....पर मैं उससे कभी भी अपने प्यार इजहार ही नहीं कर पाया ...वह एक साल ही हमारे साथ पढी और फिर चली गई ...कुछ महीने तक उसकी कमी सी महसूस हुई ...पर यार दोस्तों के याराना में उसे भुल सा ही गया और फिर जिन्दगी पुन: आराम से गुजरने लगी ...

क्रमशः-

आज के लिए बस इतना बाकी धीरे- धीरे आगे लिखुंगा ..
निखिल ठाकुर
© Nikhilthakur