#मजबुरी #आत्मोत्सर्ग
आज लगातार चार पांच दिनों से मुशलाधार बारीस हो रही है, रूकने का नाम नहीं ले रही । मयंक बड़ी असमंजस में है अपने बूढ़े बाप को इलाज की सख्त जरूरत है । बारीस रूके तो वह शहर जा कर बाप का इलाज करवा सकता है । वृद्धावस्था के कारण शरीर वैसे भी कृशकाय तो था ही उपर से मलेरिया ने अडिंगा जमाया है।
चौदह - पंद्रह साल की मंहगी पढ़ाई के बावजूद वह परिवार को सहारा नहीं दे सका और आज बाप की बिमारी में अपनी जवानी की दूपहरी में लाचारी उसे बेचैन किये जा रही है ।
स्वप्नों की बात तो अब उसे याद भी नहीं है । बहुत कुछ उसने छोडा था ...पढाई के खातिर । बल्कि आज उसे अपने अस्तित्व का बोझ लगने लगा ।वह स्वयं पर खिन्न है ।
पैसे तो...
चौदह - पंद्रह साल की मंहगी पढ़ाई के बावजूद वह परिवार को सहारा नहीं दे सका और आज बाप की बिमारी में अपनी जवानी की दूपहरी में लाचारी उसे बेचैन किये जा रही है ।
स्वप्नों की बात तो अब उसे याद भी नहीं है । बहुत कुछ उसने छोडा था ...पढाई के खातिर । बल्कि आज उसे अपने अस्तित्व का बोझ लगने लगा ।वह स्वयं पर खिन्न है ।
पैसे तो...