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#मजबुरी #आत्मोत्सर्ग
आज लगातार चार पांच दिनों से मुशलाधार बारीस हो रही है, रूकने का नाम नहीं ले रही । मयंक बड़ी असमंजस में है अपने बूढ़े बाप को इलाज की सख्त जरूरत है । बारीस रूके तो वह शहर जा कर बाप का इलाज करवा सकता है । वृद्धावस्था के कारण शरीर वैसे भी कृशकाय तो था ही उपर से मलेरिया ने अडिंगा जमाया है।
चौदह - पंद्रह साल की मंहगी पढ़ाई के बावजूद वह परिवार को सहारा नहीं दे सका और आज बाप की बिमारी में अपनी जवानी की दूपहरी में लाचारी उसे बेचैन किये जा रही है ।
स्वप्नों की बात तो अब उसे याद भी नहीं है । बहुत कुछ उसने छोडा था ...पढाई के खातिर । बल्कि आज उसे अपने अस्तित्व का बोझ लगने लगा ।वह स्वयं पर खिन्न है ।
पैसे तो कैसे भी करके जूटा लिए मगर बारीस ? गांव के एक व्यक्ति से अपनी प्राइवेट कार लेकर साथ अस्पताल आने के लिए राजी किया । उसे पता था कि इलाज ना होने पर बाप अपने बेटे की कंगालियत और बेहाल सी स्थिति देखकर ही अफसोस लैकर चल बसेगा ।
दिमाग में विचारों का बवंडर उठ रहा था उसने अपने पर इसे हावी नहीं होने दिया । खैर जैसे तैसे करके अस्पताल पहुंचे वहां भारी भीड़ थी ।डाक्टर ने जल्दी से इलाज शुरू कर दिया ।
डेढ दो घंटों के बाद डाक्टर ने मयंक को कैबिन में बुलाकर सभी जानकारी दी और दूसरे बडे अस्पताल ले जाने की हिदायत भी दी ।
मयंक ने भगवान को सब कुछ सौंप दिया । अब स्थिति पर कोई नियंत्रण नहीं है वह यह समझ चुका था डाक्टर को अपनी असमर्थता बताकर हाथ जोडकर उसने "आप ही भगवान है मेरी जरा भी कैपेसीटी नहीं है " यह बता दिया ।
स्थिति अत्यंत नाजुक भी ।डॉक्टर भी थोडा बहुत मदद कर सकते हैं बाकी तुम्हें ही संभालना होगा कहकर लाचारी बता गये ।भगवान की मर्जी समजकर उसने डोक्टर को ओफर दे डाला ।अगर कुछ हो सकता है तो मैं अपना सबकुछ दांव पर लगा दूंगा डॉक्टर ।आप ही कुछ कीजिए ।
आखिर में डोक्टर ने उस पर तरस खाकर उसके ओफर को स्वीकार किया और अन्य मरीज को कीडनी जरूरत थी उससे सौदा मोल कर लिया ।
आज की ई दिन बीत गये हैं और बाप और बेटा जिंदा लाश बनकर जिंदा है ।मैंने यह उस गाडी वाले के मुंह से सब सूना था वह मेरे दिल दिमाग को ठेस पहुंचा रहा है ।मैं कुछ भी नहीं बोल सका सिवा तबियत पूछने ।
अफसोस कि पढे लिखे होनहार भटक रहे है।मां बाप संतानों पर बेशुमार खर्च करके उच्च शिक्षा दिला रहे हैं ।सत्तानशीन और अवसरवादी रूपये बटोर रहे है ।भ्रष्टाचारी अपनी सुवरमस्ती में मस्त है । लगभग हर साल होने वाले चुनावों ने इनको आश्वस्त कर रखा है कि करोड़ों रूपये पार्टी को डोनेशन करके अरबो खरबों छाप लेंगे ।
सबसे बडी दुविधा तो यह है कि धर्म के ठेकेदार पाखंड से पूरे देश को हाइजैक कर बैठ गये है और कोई कुछ नहीं कर सकता चाहे मतदाता हो या चाहे भगवान ।
खैर पिता कुछ दिनों का मेहमान है ।और पुत्र का त्याग शायद पुरे परिवार का आत्मोत्सर्ग ।
🙏जय हिंद 🙏

© Bharat Tadvi