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अन्धे क़ातिल
कभी सोचा भी ना था कि सुबह सुबह मोबाइल पर फेसबुक खोलना कभी इतना भी घातक हो जाएगा कि मेरे जीवन के सारे सिद्धान्त मेरे लिए ही अमान्य हो जाएंगे और मेरी सभी मान्यताएँ मुझे एक ही पल में खोखली लगने लगेंगी ।

मुझे अच्छे से ध्यान है ,हाँ चार या पाँच ही दिन हुए एक फेसबुक मित्र ने किसी “धर्म रक्षक “ नाम के फेसबुक पेज के लिए इनवाइट भेजा था । दरअसल बहुत ही मामूली सी बात थी ,इसलिये सरसरी निगाहों से ग्रुप में लिखी पोस्ट देखीं और ग्रुप ज्वाइन कर लिया ।

नये ग्रुप में उपस्थिति दर्ज कराने के लिये कुछ क्रान्तिकारी कविताएँ पोस्ट कीं और कुछ देशभक्ति गीतों के वीडियोज़ भी अपलोड कर दिए ।

दूसरे दिन ही मैंने देखा मेरी कविताओं को पाठकों से बहुत ही बढ़िया प्रतिक्रिया मिली । लोगों के कमेंट्स पढ़कर मेरे अंदर का क्रांतिकारी कवि फूला नहीं समा रहा था।

इस तरह का बेहतर रेस्पॉन्स शुरूआत में मिल जाये तो इंसान के अंदर अलग ही तरह की रचनात्मकता पैदा हो जाती है जिसमें कुछ नहीं, कुछ भी रचना करना ही महत्वपूर्ण लगता है ।

मैं अब तक अपने आप को प्रबुद्ध पाठक मानता रहा हूँ ,पर लाईक्स और कमेंट्स का स्वाद ऐसा भाया कि मैंने दूसरी रचनाओं को पढ़ना तो छोड़ अवलोकन करने और विचार करने की प्रक्रिया का भी परित्याग कर दिया ।

मेरा पूरा ध्यान सिर्फ इसमें ही रहने लगा कि क्या तुकबंदी करूँ और कैसे शब्दों को तोड़मरोड़ कर कुछ लिखूँ और उसे अपनी मौलिक रचना में शुमार कर सोशल मीडिया पर वाहवाही हासिल करूँ। 

ये जो लोगों की सकारात्मक प्रतिक्रिया कमेंट्स के जरिये प्राप्त होती हैं , अब जाकर समझा इनका नकारात्मक प्रभाव किस कदर हमारे व्यक्तित्व की मौलिकता को लील जाता है ।मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ... जो रचनाऐं कभी मेरे व्यक्तित्व का आइना थीं, आज सत्य से परे मात्र ऐसे आदर्शो का निरूपण करने लगीं जिन पर लोगों की दृष्टि पड़े तो श्रद्धा ही उत्पन्न हो मतलब ये कि मेरी रचनाओं में सत्य लुप्त था और शब्दों का मायाजाल रह गया था।

पहले मेरी लेखनी मेरी मान्यताओं का आधार लेती थीं पर अब महत्वपूर्ण स्थान उनकी मान्यताओं का हो गया जिनके लाईक्स पाने के लिये मेरी लेखनी अब चल रही थी ।

ये सारी भूमिका सिर्फ आप सबको ये बताने के लिये बनाई है कि , कैसे तारीफों की भूख हमारे चारित्रिक पतन का भी कारण बन जाती हैं। इंसान के लिये जब अपने सत्य से अधिक महत्वपूर्ण अपनी लोकप्रियता हो जाती है और इंसान अपनी आत्मा की आवाज को ना सुन भीड़ के शोर को आत्मसात कर लेता है बस उसी समय से उसके पतन का प्रारम्भ हो जाता है ।

मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ , पहले मैं सिर्फ अपनी रचनायें लिखकर पोस्ट करता था पर अब मैं ऐसे वीडियोज़ व पोस्ट भी शेयर करने लगा जिनमें किसी अन्य समुदाय विशेष का मान हनन या धार्मिक या जातीय कट्टरता से भरी टिप्पणियाँ हों । इस सब के पीछे मात्र ये मकसद होता था कि कट्टरता से भरी विचारधारा को अधिक पसंद किया जाता था। अधिक से अधिक लाईक्स और कमेंट्स पाने की भूख ।

जिस विचारधारा का आप समर्थन नहीं करते उसका पोषण कैसे कर सकते हो? यह विचारणीय प्रश्न है , जिसपर मैंने कभी भी विचार नहीं किया ।

अब मैं आपका ज्यादा वक्त नहीं ले रहा और मूल कहानी पर आता हूँ ।

दो दिन पहले एक पोस्ट  देखी जिसमें एक लड़के का फोटो दिया गया था और घटना का विवरण कुछ इस प्रकार से था कि वह लड़का एक समुदाय विशेष से है और दूसरे समुदाय की लड़की को प्यार के जाल में फंसाया और उससे फर्जी तौर पर शादी  करके अपने साथ भगा कर ले गया ।दोस्तों के साथ मिलकर उसका रेप करके उसकी हत्या कर दी । साथ ही एक वीडियो भी डाला गया था जहाँ कुछ लड़के एक लड़की के साथ जबरदस्ती करते नजर आ रहे थे ।

यहाँ मैं बताना चाहुंगा कि, वीडियो क्लिप में किसी का चेहरा स्पष्ट नहीं था, ना कहीं पोस्ट में घटना के समय या स्थान का ही कोई जिक्र था। हाँ , पोस्ट में लड़के की तस्वीर स्पष्ट दी गई थी लगभग18-20 वर्ष उम्र होगी लड़के की। उसका चेहरा देखकर मेरे मन में जिस तरह का घृणा भाव उत्पन्न हुआ वैसी नफरत इससे पहले कभी महसूस नहीं की थी ।

अपनी नफरत से प्रेरणा पाकर मैंने पोस्ट लिखी और अपने अंदर की सारी नफरत उड़ेल डाली , और अपने कट्टरता वादी मित्रों के ग्रुप में उस लड़के की तस्वीर के साथ शेयर कर दी ।
शाम होने तक मेहनत का फल दिखाई देने लगा ,अपने ग्रुप से बेशुमार लाईक्स और कमेंट्स आने लगे जितने कभी मेरी किसी भी रचना पर पहले नहीं मिले थे। इसके साथ ही कोई साठ - सत्तर के ऊपर शेयर भी थे ।

मैं अपनी उपलब्धि पर मन ही मन उल्लास मना रहा था ।अपनी पोस्ट की पॉपुलरिटी के आँकड़ों को देखने ,अन्य लोगों के कमेंट्स पढ़ने और रिप्लाई करते करते मैं लगभग सारा दिन और पूरी रात ऑनलाइन रहा। अजीब नशा होता है ये खुद को लोकप्रिय होते देखने का ,इसी नशे में डूबे हुए लगभग रात के दो बजे के बाद कब आँख लगी मालूम नहीं ! फिर सुबह सात बजे नींद खुली !

सुबह भी वही जुनून हावी , लाईक्स और कमेंट्स को देखने की जिज्ञासा में फिर से मोबाइल हाथ में लेकर अपनी पोस्ट चेक करने लगा । तभी लोकल न्यूज चैनल के संदर्भ से प्रकाशित एक पोस्ट पर मेरी नजर गई ।

पोस्ट में सदर समाचार की प्रकाशित खबर का स्क्रीनशॉट डाला गया था ,जिसमें एक समुदाय विशेष की भीड़ द्वारा एक दूसरे समुदाय के आटो रिक्शा चालक की पीट पीट कर हत्या किये जाने की घटना का विवरण था।
पोस्ट लिखने वाले व्यक्ति ने बड़े उग्र शब्दों एक समुदाय के लोगों को निशाना करके अपनी बात लिखी थी । और ऑटोरिक्शा चालक की हत्या करने वाली भीड़ के मजहब पर निशाना साधते हुए एकजुट होकर बदला लेने की अपील की थी।

जिस तरह के नफरत से भरे शब्दों का प्रयोग मैंने किया था उनकी प्रतिक्रिया इस पोस्ट में स्पष्ट झलक रही थी ।
खबर में विस्तारपूर्वक लिखा गया था कि, इस गरीब लड़के की तस्वीर दिखा कर उसे बलात्कारी व हत्यारा बताने वाली एक पोस्ट हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी। जिसे आधार मानकर उस लड़के को पहचानने वाले पास ही के मोहल्ले के लोगों ने घेर लिया और बड़े ही बर्बरता पूर्ण तरीके से  उसको जिंदा जला डाला । पहले उसका अंगभंग किया, फिर उसकी आँखें निकाल ली ,और उसके बाद उसे आग के हवाले कर दिया ,जबकि वो लड़का जान की भीख माँगता रहा ,खुद को निर्दोष बताता रहा ,पर किसी के कानों तक उसकी आवाज नहीं पहुँची ।

पोस्ट पढ़ते पढ़ते यूँ लगा मानो मेरे पैरो के नीचे की जमीन पर किसी ने नुकीले काँच के टुकड़े  बिछा दिये हों ,मेरी आँखें अपने आप बंद हो गईं और मेरा शरीर इस तरह कांपने लगा  जैसे किसी ने मेरा सारा खून निचोड़ कर तपती धूप में खड़ा कर दिया हो।

मेरी लिखी पोस्ट का प्रत्येक शब्द मेरे सामने जिंदा दिखाई देने लगा ,वो मुझपर अट्टहास करते हुए गूँज रहे थे, चीख रहे थे...,
''धर्म हित तथा मानवता की रक्षा  लिये ऐसे जानवर की सजा हम तय करेंगे कानून नहीं, उसका अंगभंग करके ,उसकी आँखें निकाल कर उसे जिंदा जला दो।'' सीने में दर्द उठा आह! तो ये मेरी लगाई आग थी जिसमें वो गरीब लड़का और उसका परिवार....”
“उफ, सब खत्म कर दिया राक्षस तूने। “धिक्कारने लगा मेरा जमीर ,जिसे मैंने अपनी लोकप्रियता के अहं के नीचे अरसे से दबा रखा था।
“यह तेरी तय की गई मौत थी ना जिसे तूने प्रत्यारोपित कर दिया था अपनी जहर बुझी लेखनी से उन अंधे कातिलों के दिमाग में।“

तभी फोन की घंटी और डोर बेल एक साथ बजने लगीं । मैं अपनी पूरी ताकत, समेट कर दरवाजे पर पहुँचा और काँपते हाथों से दरवाजा खोला । मेरा बड़ा बेटा वैभव जो कानपुर आईआईटी में पढ़ रहा है दरवाजे पर खड़ा मुसकुरा रहा था। कई दिनों में घर आये अपने बेटे को देखकर भी मेरे चेहरे पर मुस्कान नहीं आ सकी...! अचानक मुझे अपने बेटे की जगह, डरा हुआ वो ऑटोचालक लड़का दिखाई देने लगा जो गिड़गिड़ा रहा था घुटनों के बल बैठा कह रहा था ''मुझे छोड़ दो ,बिना गुनाह के क्यों मेरी सजा मुकर्रर कर रहे हो ?मेरी बहन की शादी तय करनी है अब्बा को दिखता नहीं, मुझे जाने दो मैंने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा है।“

मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया और मैं कब बेसुध हुआ नहीं जानता । अभी आँख खुली तो सिरहाने पर मेरी धर्मपत्नी बैठी हुई थी आँखों में गहरी उदासी के साथ ,सामने ही बेटा भी खड़ा परेशान निगाहों से छत को ताक रहा था ।
मुझे होश में आया देख मेरी पत्नी राधिका जो मेरा माथा सहला रही थी , बोलने लगी, ‘कितनी बार कहा है आपसे कम से कम रात को तो आराम किया कीजिये । लगे रहते हो बस उस मनहूस मोबाइल पर,ना जाने ऐसा कौन सा कारोबार चौपट हुआ जा रहा है तुम्हारा। "

मैं बस मुसकुरा कर रह गया कुछ बोल नहीं सका । इतने में मेरा बेटा बोल पड़ा ''पापा, डॉक्टर ने कहा है कि आपको ज्यादा से ज्यादा आराम मिलना चाहिये ,तो आज से आपका ये देर रात तक मोबाइल और कम्प्यूटर से पूरी तरह बंद, ओके। अब मुझे डाँटोगे तो भी आपकी बात नहीं सुनूंगा ।“

"अरे मुझे कुछ नहीं हुआ है ,बस थोड़ी थकान है, तुम और तुम्हारी माँ ख्वामख्वाह राई का पहाड़ बना रहे हो। ' मैंने धीरे से कहा और आँखें मूँदकर बीते हुए घटनाक्रम के बारे में फिर से सोचने लग गया।

मैं समझ नहीं पा रहा था कि जब अंधे कातिलों की भीड़ न्याय करने निकल पड़ेगी तो कैसा न्याय होगा। क्या होगा जब अफवाह के आधार पर जुर्म तय हो और दरिंदों की सोच से सजा तय होने लगे ।तब तो मानवता  अपना अस्तित्व बचाने के लिए भागती, गिड़गिड़ाती और छिपती ही रहेगी, नहीं तो मार दी जाएगी ।

मैं चाहता हूँ कि उस लड़के के निर्मम हत्यारों को सजा मिलनी चाहिए पर मैं नहीं जानता कातिलों की पहचान कैसे होगी ।  क्या सचमुच वो अंधी भीड़ किसी का कत्ल कर सकती है जिसको खुद नहीं पता होता कि करना क्या है ?        

वो तो बस एक पहल का इंतजार कर रही है, और इंतजार कर रही है नफरत से भरी एक खबर का , जिसका विश्वसनीय होना आवश्यक नहीं है । इतना ही आवश्यक मानते हैं ये अंधे कातिल कि, उस खबर में नफरत की उनकी खुराक पूरी मिले बस इशारा मिलते ही टूट पड़ेंगे , तथाकथित गुनाहगार का फैसला करने को।

हाँ ,वो भीड़ कातिलों की ही भीड़ है पर वो भीड़ अकेली नहीं है । और ये जो कत्ल हुआ ये खाली भीड़ के पागलपन का नतीजा हो ऐसा नहीं है ,.... ये जो कत्ल हो रहे हैं जिसे भीड़ के उन्माद का नाम दिया जा रहा है असल में एक साजिश के तहत किये जा रहे कोल्ड ब्लडेड मर्डर है । जिसके पीछे की प्लानिंग इतनी फुलप्रूफ है कि, कोई भी इसके पीछे छिपे असली कातिलों तक नहीं पहुँचेगा । उस ऑटो चलाने वाले गरीब लड़के का कत्ल किसी और ने नहीं बल्कि खुद मैंने किया है अपनी जहर बुझी कलम से ।

और मैं जानता हूँ इसकी मुझे किसी भी कानून में सजा नहीं मिलेगी ।मेरे जैसे बुद्धिजीवियों ने अपनी कुंठाओं को लेखनी का रूप देकर कत्ल करने की इस नई तकनीक को जन्म दिया है ।

वैसे मुझे इस कत्ल के बाद डरने की जरूरत तो नहीं थी क्योंकि कानून को कभी मेरे कातिल होने का सबूत नहीं मिलेगा पर फिर भी मैं डर रहा हूँ । क्योंकि, मैं जानता हूँ की उस परमात्मा के न्याय से कोई भी नहीं बचता। डरता हूँ की कहीं किसी जगह मेरे बेटे के कत्ल की साजिश रची जा रही होगी ।

ये जो तकनीक ईजाद की है कत्ल करने की हम बुद्धिजीवियों ने ,वो कल हमारे विरुद्ध ही काम आएगी ,और हमारे बच्चों के कत्ल भी ऐसे ही कुछ अंधे कातिलों की टोली कर देगी ।
मैं जान गया हूँ और आप भी जान लीजिए हथियार बनाया किसी ने भी हो पर उसकी वफादारी और निष्ठा सिर्फ उससे होती है जिसके हाथों ने उसे धारण किया है।

ये जो अंधे कातिलों की भीड़ है ना, ये किसी को कभी बेगुनाह नहीं मानती ,जुर्म कैसा भी हो सजा सभी को समान देती है ये भीड़ , क्योंकि ना ये देख सकती है ,ना सोच सकती है ,बस कत्ल कर सकती है बिना सही गलत में फर्क किये पूरी निर्ममता के साथ !!

इंतजार करिये जल्द ही आप भी इसके शिकार होने वाले हैं ।

समाप्त
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#सामाजिक_कथा
                           


© बदनाम कलमकार