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चलो एक किस्सा सुनाती हूं...
आज़ नए साल के पहले दिन एक पुरानी याद सुनाती हूं... चलो एक किस्सा सुनाती हूं
11th में थी जब हॉस्टल में रहने गई थी तब मम्मी बहुत इमोशनल हो गई और साथ में नहीं गई। मुझे हॉस्टल छोड़ने पिताजी गए, उधर से लौटते समय पिताजी ने एक ही बात कही कि, "तुम आज से जहां चाहो, जब चाहो, जैसे चाहो और जिसके साथ चाहो आ जा सकती हो, कोई नहीं होगा रोकने टोकने वाला, जो करना है करो बस एक बात याद रखना आज से तुम कुछ भी करोगी उस में तुम्हारे नाम से पहले तुम्हारे मां बाप का नाम और उनके दिए संस्कार साथ रहेंगे... इसलिए कुछ भी करने से पहले ये याद रखना की इसका असर तुम्हारे मां बाप पर कैसा पड़ेगा फिर कोई कदम उठाना"।

उस दिन से आज तक ये बात मेरे दिमाग से नहीं निकली... मैं जो भी करूं जैसा करूं हमेशा मां पिताजी का खयाल दिमाग में रहता है...
वैसे हमारे घर में लड़कियां वेस्टर्न ड्रेस नहीं पहनती हैं... ऐसा नहीं है की ये हमारी संस्कृति के खिलाफ़ है पर हमें इसकी अनुमति नहीं है... दादा जी कहते थे, "सोच भले ही मॉडर्न रखो पर संस्कार हमेशा पुराने ही रखना...।
मैं अपने पिता को पिताजी कह कर बुलाती हूं औरों की तरह पापा नहीं बोलती हूं, जींस नहीं पहनती हूं, इस बात पर। सब हमेशा कहते हैं कितनी ओल्ड फैशन वाली हो तुम आज के मॉडर्न जमाने में भी पापा को पिताजी बोलती हो, बहनजी जैसे कपड़े पहनती हो तो आज उन लोगों से बस यही कहना चाहती हूं कि मन और सोच से खुले विचार का या मॉडर्न होना चाहिए कपड़ो से, पहनावे से या बोलचाल से नहीं...
और सच कहूं तो मुझे कोई शर्म भी नहीं है ऐसे रहने में, क्योंकि... मैं जैसी हूं वैसी हूं और मेरे घरवालों को मुझ पर भरोसा है की उनकी बेटी कभी कुछ गलत नहीं कर सकती और उनका यही भरोसा मेरे लिए मेरी दुनिया है...!!



© wordsofaayushi