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तमाचा
सुमन और सूर्यकांत मेडिकल कॉलेज में एक साथ ही पढ़ते थे। दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी। हालाँकि उनके बहुत सारे दोस्त थे, लेकिन इन दोनों की दोस्ती कुछ हटकर ही थी। एम.बी.बी.एस के समाप्त होने तक दोनों की दोस्ती कब परवान चढ़ी, उन्हें खुद पता ना चला। हालाँकि दोनों ही ब्राह्मण समाज के ही थे। उन्हें लगा उनकी शादी में कोई दिक्कत या परेशानी नहीं आएगी। दोनों को अपनी मंजिल बहुत आसान नज़र आ रही थी। एक दिन दोनों ने फैसला किया क्यों न विवाह की बात अपने माता-पिता से की जाए। सूर्यकांत और सुमन दोनों ने अपने-अपने घरों में बात की। सुमन के माता-पिता तैयार हो गए, किंतु सूर्यकांत के पिताजी विवाह के लिए तैयार न थे। उन्होंने तो अपने पुत्र के लिए कुछ और ही सोच रखा था। सूर्यकांत ने जब मेडिकल में एडमिशन लिया था, तभी उन्होंने सोच रखा था कि मैंने लाखों की संपत्ति बेचकर सूर्यकांत की पढ़ाई पर जो खर्च किया है, उसे सूद समेत उसके विवाह के समय लड़की वालों से वसूलना है। इन मनसूबों के साथ उन्होंने सूर्यकांत पर ढे़र सारा खर्च किया था। आज जब सूर्यकांत ने अपने विवाह की बात अपने पिता से कहीं, तो उन्हें ऐसा लगा जैसे किसी ने उनके पाँव तले जमीन खींच ली हो। उन्होंने विवाह से साफ इनकार कर दिया। लाख जतन करने पर भी, सूर्यकांत के पिताजी विवाह के लिए तैयार न हुए। जबकि घर के अन्य सदस्य इस विवाह के लिए...