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मंथन: मनोवेज्ञानिक दृष्टिकोण
समझ जब बढ्ने लगे तो दिमाग मनुष्य मे हावी हो जाता है, सब जानते हुए समझ्ते हुए भी मनुष्य ग़लत निर्णय के जाल मे उलझ ही जाता है फिर शुरू होता है मंथन... मंथन जो देवता और दानवो के बीच हूआ था....  लेकिन ये असुर सुर कौन है हमारी कल्पना या हमारे मन का संकेत.... फ्रायड ने सुमद्र मे डूबे बर्फ को मनुष्य के मन की तीनो अवस्थओं मे विभाजित कर दिया... पर शायद फ्रायड से पहले कुछ और बुद्धिजीवियों ने सागर मंथन को समझा कि मनुष्य के भीतर के सुर और असुर को बुराई और अच्छाई का प्रतीक कह दिया...  मनुष्य का मन 'समुद्र', विचार 'पर्वत', असमंजस 'नाग' और पर्वत (विचार) जिस कूर्म मे बैठा वो हमारे 'कर्म'....जो मथता है...