...

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"चाय का ख्याल"
क्या हुआ ? आप तो बुरी तरह कांप रहीं हो, कहां से आई हो? जी मैं पीलीभीत से आई हूं। अरे तब तो बहुत सुबह चली होगी? यहां से तो काफी दूर है। हां 50 किलोमीटर है, 4:00 बजे चली थी। एग्जाम है, मजबूरी है। बस में तो पता नहीं चला लेकिन यहां पर उतरते ही ठंड लगने लगी।

थोड़ी देर आग के पास बैठ जाओ।

सोच तो मैं भी रही हूं बहुत देर से लेकिन हिम्मत नहीं हो रही भीड़ में जाने की। कोई लड़की भी नहीं दिखी अब तक, जिधर देखो लड़के ही लड़के खड़े हैं।

कोई बात नहीं, मैं अभी चाय बना देता हूं। बाहर कुर्सियां पड़ी हैं, वहीं बैठ जाओ।

मैं एक कुर्सी पर बैठ गई। कुछ देर बाद चाय वाले ने तसले में थोड़ी सी लकड़ियां सुलगा के रख दीं। देखते ही देखते बाकी कुर्सियों पर लड़के आकर बैठने लगे और चाय वाले की दुकान के बाहर भी लाइन लगना शुरू हो गई।

मैं संकोच में अपनी कुर्सी पर ही बैठी रही। जाती भी तो कहां, मेरा एग्जाम था तो वहां बैठने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था।

मेरे पास में जो लड़का बैठा था, वो कभी मेरा सफेद चेहरा देखता और कभी मेरे कांपते हाथ। कुछ देर बाद उसने मुझसे पूछ ही लिया, आपको इतनी ठंड लग रही है तो आप चाय क्यों नहीं पी लेती?

मैंने उसकी तरफ देखा.....
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फोटो क्रेडिट-गूगल।

© प्रज्ञा वाणी