...

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क्या मैं मिला हूँ तुमसे कभी??
सुनो तुम्हें देखता हूँ अब भी....हर बार... बार बार...
कोशिश करता हूँ पहचानने की ... क्या मैं जानता हूँ तुम्हें??
क्या मैं मिला हूँ तुमसे कभी?? शायद नही....
सिर्फ़ चेहरा बाक़ी है तुममें वही औऱ कुछ नही मिलता अब तुममें तुम जैसा...
वो नखरीली मुस्कान जो तुम्हारे चेहरे पर काबिज रहती थी जो तुम में तुम होने का अहसास दिलाती थी वो नही है अब.. वो आँखें जो एहसास दिलाती थी तुम्हारे मन की ख़ूबसूरती का वो ग़ुम सी गयी है अब...
तुम्हें पढ़ते रहने लायक अब कुछ भी तो नही तुममें.. तुम कुछ भी नही थी तब पर सब कुछ थी मेरे लिये...
तुम्हें सुनना मेरा पसंदीदा वक़्त था जो मुझे मुझ तक ले जाता था... हमेशा...
अब तुम्हें सुनता हूँ तो एहसास होता है तुम्हारे तुम से किसी औऱ में बदल जाने का... बदल ली है शायद तुमने अपनी आत्मा अपने जीते जी किसी औऱ शरीर मे... तुम्हें ताउम्र चाहते रहना मेरा ख़ुद से किया वादा था.. जो टूटता रहा हर साँस के साथ जब जब तुम्हें बदलते देखा मैंने..
क़ाश तुम न दिखती मुझे अब भी..
क़ाश मैंने न देखा होता तुम्हें हर पल बदलते हुए...
क़ाश तुम उस वक़्त चले जाते जब तुम मेरे थे..
तब शायद हमेशा मेरी ही रहती.. तुम्हें रखना चाहता अपने दिल के उस अनछुए से हिस्से में जहाँ तुम तक कोई पहुँच ही न पाता कभी... जीती रहता उन तमाम पलों को जो हमने साथ गुज़ारे... पर अब बदल गया न सब कुछ...
मान भी लो अब तुम तुम न रहे....कोई औऱ हो गयी हो ....

© The Introvert Guy...!!