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कहानी सूनी राहों की ....!!
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कहने को तो हम सब इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं !!

और हमारे संविधान ने भी हमें हर क्षेत्र में बराबरी का अधिकार दे रखा है।
आज हम अपने निर्णय लेने के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र भी हैं।
और हर क्षेत्र में हम अपना पूर्ण योगदान भी दे रहे हैं !!

फिर वो क्षेत्र चाहे गृह ग्रहस्ती का हो ,शिक्षा का ,चिकित्सा का , या फिर राष्ट्र रक्षा का !!
हमने हर जगह "नारीशक्ति " की एक अलग पहचान बनाई हुई है !!

पर हमारी विडंबना तो देखो .....
खुद को इतना सक्षम बनाने के बावजूद भी आज भी हम अपने अन्दर के डर पे काबू नहीं पा पाए हैं !!

आज भी जब हम घर से बाहर किसी सुनसान जगह पर अकेले होते हैं तो हम खुद को असहज और डरा हुआ ही महसूस करते हैं !!
और किसी अप्रिय घटना के घटित होने की आशंका से ही हमारी सारी चेतना तो मानो उस समय शून्य ही हो जाती है !!

हमारी सारी डिग्रियां उस समय धरी की धरी रह जाती हैं और हम खुद को उसी जगह पर खड़े पाते हैं जहां आज से हजारों वर्ष पहले थे !!

तब एक ही सवाल मन को कचोड़ता है कि क्या फायदा रहा इस, बदलाव का ,शिक्षा का , संस्कारों का, जब हमारे समाज के लोगों की मानसिकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा !!


इससे तो अच्छा
हम आदिमानव ही सही थे!! 🥺😥

🙏🙏











© Rekha pal