...

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aapse door
आपसे दूर जाने का इरादा तो नहीं था,
साथ-साथ रहने का भी वादा तो नहीं था,
तुम याद आओगे ये जानते थे हम,
पर इतना याद आओगे अंदाज़ा नहीं था।
तुझे भूलकर भी न भूल पायेगें हम,
बस यही एक वादा निभा पायेगें हम,
मिटा देंगे खुद को भी जहाँ से लेकिन,
तेरी याद दिल से न मिटा पायेगें हम।
भुला देने की आदत नहीं हमको,
हम तो आज भी वो एहसास रखते हैं,
बदले बदले तो आप हैं जनाब,
जो सिवा हमारे सबको याद रखते हैं।

हक़ीक़त खुल गई हसरत, तेरे तर्क-ए-मोहब्बत की,
तुझे तो अब वो पहले से भी बढ़ कर याद आते हैं।

बारिशें कुछ इस तरह से होती रही मुझ पे,
ख्वाहिशें सूखती रही और पलके भीगती रही।

ये शायरी कुछ और नहीं
बेइंतहा इश्क है,
तड़प उनकी उठती है
और दर्द लफ्जों में उतर आता है।


जरा छू लूं तुमको मुझको यकीन आ जाए,
लोग कहते हैं कि मुझे साए से मोहब्बत है।

© अल्फाज़.शायरी