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संतुलन...

विचारों से शून्य हो जाना शायद अच्छा है कभी - कभी। न कुछ अच्छा लगे , न कुछ बुरा लगे , जीवन में ऐसे क्षण भी शायद ज़रूरी होते हैं ... जो चल रहा है न उस से कुछ शिकायत , जो हो न पाया उसका कोई मलाल नहीं... जो हो सकता है उसकी भी कोई ज़्यादा फ़िक्र नहीं ...
एक ही तरह की परस्थिति से ख़ुद को बांधकर रखना और उस परस्थिति से अपने आप को इतना ज़ाया करना कि थोड़ा सा बदलाव भी आपके मन -मस्तिष्क को झझकोरने लगे, आपको विचलित कर दे , ज़िंदगी का संतुलन खराब कर दे.... ऐसा होना तो नहीं चाहिए, लेकिन अक्सर होता यही है....
इंसानों और परिस्थितियों से मोह त्याग देना ही उचित है शायद ...बदलाव प्रकृति का नियम है तो ....इनके बदल जाने से भी जीवन में असंतुलन की स्तिथि नहीं आनी चाहिए...
उसकी रजा़ में रहना जाने कैसा होता होगा.... शायद कुछ ऐसा ही होता होगा.... शायद


© संवेदना
#मौन_संवाद