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प्रभु श्री राम
राम केवल एक ईश्वरीय नाम ही नहीं,हमारी अंतरात्मा की अनुभूति है । शायद ही ऐसा कोई सनातनी पारिवारिक परिवेश रहा हो जहां, हमने राम नाम की महिमा न सुनी- समझी हो। जैसे -जैसे मानसिक परिपक्वता आती है हमारे विचार और गूढ़ होते चले जाते हैं, उन सभी संदर्भों में जो हमारे जीवन से कहीं न कहीं सारोकार रखते हैं।
बचपन में दादोसा को राम-राम की माला जपते देखा, तो दादीसा का आज भी नित्यक्रम यही है। ननिहाल में भी रिश्ते में एक बूढ़ी नानीसा (जिन्हें सभी माताजी से संबोधित करते रहें है)  राम राम करते दिखते, जब भी मैं उन्हें श्री गीताजी का पाठ सुनाती, तत्पश्चात वो राम धुन में खो जाते, हालांकि उस वक्त श्री गीता जी मेरे लिए आम पाठ्य सामग्री की भांति केवल पठन-वाचन तक ही सीमित थी, कक्षा तीन तक हम सिर्फ पढ़ना जानते हैं, भावों की समझ इतनी विकसित नहीं होती। अन्यथा मेरा उनसे सवाल होता कि, श्रीकृष्ण के प्रवचन सुन आप राम नाम कैसे गाते हो, और आज ये प्रश्न पूछने के लिए वे स्वयं ही नहीं है।

हां, तो मैं कह रही थी हमारे प्रभु श्री राम !  मर्यादा के संवहन के श्रेष्ठतम आदर्श स्तंभ जो हमारे जीवन में निसंदेह जुड़े हैं । व्यक्ति गिर भी जाए, लग भी जाए तो अक्सर हे राम! जैसे शब्द अनायास ही निकल पड़ते हैं। सुख में दुख में इतनी घनिष्टा हमारी हमारे  राम से।  "श्री राम जय राम जय जय राम"  का विजय मंत्र आज भी अति उत्साह है हमारे नित्य पूजा में सम्मिलित है पापा के कहे अनुसार हनुमान-चालीसा वाचन में भी अंतर्मन में छवि राम-दरबार की रहती है, इससे हनुमान जी प्रसन्न होते हैं भक्त भगवान का संबंध है ही ऐसा। राम से भी बड़ा राम के नाम को बताया गया है, जो हमारे सेतू की शिलाओं में प्रतिबिंबित होता है । अधिकतर घरों में आज भी बुजुर्गों के हाथ माला और राम नाम जाप उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा दिखाई पड़ता है ।
जैसा कि मैंने कहा राम एक भाव है जो हमें सकारात्मकता से सारोबार करते हुए जीवन के आदर्श मूल्यों के निर्वहन का संदेश देता है । इसका हम किस स्तर तक अनुसरण कर पाते हैं यह तो अलग बात है, परंतु इस हेतु राम-नाम को स्वयं में समाहित करना, जीवन में समाहित करना परमावश्यक है ।।
जय श्री राम 🚩🚩
©Mridula Rajpurohit ✍️
🗓️ 21 April, 2021
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