...

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अश्कों की बारिश
मन में उथल पुथल मचा कर
आ बैठते नम आंखों के कोरों पर....
बड़े ही बेनामी हैं ये अश्क
गुस्सा आता इन छिछोरों पर।
एक ज़माना था जब सूखते थे
मां के आंचल के छोरों पर;
ढूंढते बहाने देख टकटकी लगाए
टंगे बादल जो आसमां की डोरों पर।
दिल में रखूं तो करें परेशान
अपनी खामोशियों के शोरों से;
हर भाव को हिला के रख देते
जैसे उबलती, उफनती चाय सकोरों से।
रोकना चाहूं तो आंख मिचोली खेलते,
लुकाछिपी करते चोरों से;
संग बारिश सैलाब उमड़ता
जब बादल बरसते ज़ोरों से।

"लीना" ०१/०८/२०२०