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रॉन्ग नम्बर
#रॉन्गनंबर


पार्ट- 1


बड़ी ज़ोर की बारिश हो रही थी। आसमान में बिजली कड़कड़ा रही थी पर घर पर बिजली गुल थी। तभी फोन की घंटी बजी और जीत ने रिसीवर उठा के कहा हैलो, कौन है? उधर से आवाज़ आई ओह, सॉरी, रॉन्ग नंबर, और फोन रख दिया गया। जीत को दो साल पहले की वो तूफानी रात याद आ गई। उस दिन भी तो ऐसे ही कॉल आया था और बस आवाज़ सुन कर फोन कट गया था।

पर अब दो साल पहले वाली बात याद आते ही जीत की धुँधली हुई यादों पर से धीरे धीरे धूल की परत उड़ती दिखाई दे रही थी।

जीत को शायद एहसास हो रहा था कि ये फ़ोन गीत का है....."गीत"....कौन है ये आख़िर...??

गीत वही याद है जो जीत ने धूल के नीचे दबा रखी थी। 1999 अप्रैल 15..... रात के 11:30 बजे हैं और सामने वाले घर से एक लड़की पढ़ती हुई दिखाई दे रही है छत पर। बस पहली नज़र में ही पसन्द आ गयी थी जीत को वह....छत पर पहुँचा जीत फौरन और किसी बहाने से बात करनी चाही मगर गीत तो बस पढ़ने में ही व्यस्त है....

जीत ने आवाज़ लगाई कि.... हलो!! सुनिए...क्या आप बता सकती हैं कि time क्या हुआ होगा अभी ??

गीत ने समय बताया और वापस पढ़ने लगी। पर जीत है कि बेचैन है।
दो दिन बाद गीत के एग्जाम ख़त्म हो गए और जीत को मौका मिल गया उससे मिलने का। वो अब ध्यान रखने लगा कि गीत कब और किस समय जाती है।

बस फिर क्या था....हो गयी शुरुआत प्रेम की। गीत को भी जीत अच्छा लगा....अभी एक ही बार मिले थे दोनों रेस्टोरेंट में एक साल की जान-पहचान के बाद पर नियति को मंज़ूर न था.... गीत के भाई की मृत्यु हो गयी और गीत ने जीत को इनकार कर दिया कि माँ पापा ने जवान बेटे को खो दिया...वो वैसे ही टूट चुके हैं...और अब उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ जाकर मैं उनको ज़िंदा लाश में नहीं बदल सकती। अगर तुमने सच में प्रेम किया है तो साथ देना मेरे इस फैसले में और कभी कोई गलत काम नहीं करना न ही कोई क्लेश.....

और जीत ने इस दर्द भरे फैसले को तुरंत मान लिया क्योंकि वो समझता था कि गीत सही कह रही है... और हट गया पीछे बिना किसी शिकायत के......

ये सब याद आने के बाद तो यकीन हो चला था जीत को कि ये कॉल गीत की है। जैसे ही ये अनुमान हुआ कि गीत है कॉल पर वैसे ही उसके मन मे टीस जगी कि वो परेशानी में है....पर 22 साल के बाद अब.... क्या हो सकता है..?? और उसका परिवार....

अशांत ही था जीत का मन रातभर पर सवेरे सवेरे फिर वही आवाज़ कॉल पर ....
जैसे ही जीत ने हेलो कहा उसने फ़ोन रॉन्ग नंबर कह के काट दिया। कुछ देर बाद फिर कॉल आया तो इस बार जीत नहीं बोला कुछ... जैसे ही उधर से आवाज़ आयी...हेलो !!... जीत बोल पड़ा..."गीत" तुम ही हो न....इतना सुनते ही गीत रो पड़ी.... बहुत कोशिश के बाद जीत उसको चुप करा पाया।

जीत ने पूछा कैसी हो? कहाँ हो? सब ठीक है न? इतने सालों के बाद जीत कैसे याद आ गया?.....

गीत कुछ बोल ही न पायी..... कहने लगी कि कल मिलो मुझसे ....वहीं बसन्त टाकीज़ के पास वाले रेस्टोरेंट में जहाँ हम पहले मिले थे।

अब तो जीत को काटो तो खून नहीं...ऐसी हालत थी उसकी। बहुत घबरा गया था कि पता नहीं किस मुसीबत में होगी गीत....आख़िर दिल के किसी कोने में आज भी है वो।



........ to be continue
© shaifali....✒️