...

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अक्षरो मैं सिमटा वजूद मेरा
''दिल ख्याल और धड़कन में समाए तुम हो,
मेरे भीतर आत्म के इत्र बिखराए तुम हो II

आओ आपको एक रोज से रिझाता हूं,
बचपन के मनोज और आज के विनोद से मिलाता हूं II

जन्म भारतवर्ष के राजस्थान गंगानगर के आंचल में,
नो जुलाई सन् उन्नीस सो पिचानवे वक्त के सांचल मैं II

मेरे पापा का नाम लिलू राम है,
उनकी दया से जग में मेरा नाम है II

मां मेरी संतोष है,
प्रेम स्वरूप आत्मरोष है II

धर्मेंद्र मेरा छोटा भाई है,
मेरी खुशी उसमे समाई है II

सुमन मेरी छोटी बहिना है,
वो मेरी खुशियो का गहना है II

मेरे दोस्तो के नाम ए से जेड तक जिगरी राकेश शर्मा है,
कोइ मस्ती का शहजादा कोइ रूहानी आलम का कर्मा है II

गुरु मेरे सतगुरु वकील साहिब आत्म चित राम है,
इनकी दया मेहर से बनता मेरा हर एक काम है II

लिखने की शुरुआत आठवीं के पहले एग्जाम से हुई,
वो नजर झुका कर बैठी थी लेकिन दिल मेरे में घर कर गई II

नाम उसका लिखकर उसे बदनाम नही करना चाहता हूं,
रखकर दिल में सबर का दिया उसके प्रेम में बुझना चाहता हूं II

खेर प्यार की बातों से आगे आते है
आपको मेरी हकीकत से रु ब रू कराते है II

एक गरीब परिवार में अपना छोटा सा आशियाना है,
एक दिन मेहनत से खुद को मां की नजर में दिखाना है II

बाते तो हर वक्त में होती रहेगी हमारी,
क्योंकि वक्त के बीते पन्नो में मोहोब्बत गूंजती रहेगी हमारी II

एक सवाल आज भी जहन में है,
कहां से आया हूं कहां मुझे जाना है II
किस से रूठना है और किसे मनाना है,
सुना है जिस देश जाना है वो दीवाना है II

दीवाने देश की न जाने कब सैर होगी,
सतगुरू कि जब रूह पे मेरी दया मेहर होगी II

एक बात आपको सच कहूं दूं,
दोबारा मुझे इस दुनियां में नही आना है।
इस जन्म में मेरी एक तपस्या है बस
जैसे तैसे अपने भीतर आत्म रूह जगाना है।
कर के अपने हर एक गुनाहों का प्रायसचित बस
अपने सतगुरु वकिल साहिब शरण कि में जाना हैII

अब अपने शब्दो को विराम देना ठीक होगा,
मेरी हस्ती मैं शामिल मेरा हर एक शरीक होगा II

आपका स्नेह और प्रेम स्वरूप आर्शीवाद से
आत्म विश्वास पूर्ण है सम्पूर्ण है||

ManojSuthAr*
© Manoj Vinod-SuthaR