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"एक प्याली☕ चाय"
सुधा को इत्मिनान से बालकनी में बैठ कर चाय पीना बहुत पसंद था। उस समय वो अकेली ही बैठना पसंद करती थी शायद यही वो समय होता था जब वो कुछ समय खुद के साथ बिताती थी बाकी तो दिन भर घर के कामों में ही व्यस्त रहा करतीं थीं। पति अभय को भी पता था कि इस समय वो बालकनी में बैठती थी इसलिए वो भी उसे डिस्टर्ब नहीं करते थे।
एक दिन की बात है सुधा रोज की भांति बालकनी में बैठी हुई थी कि तभी उसे एक फेरी वाले की आवाज सुनाई दी,पुराने एन्टीक सामान ले लो पुराने........ सुधा को बड़ा आश्चर्य हुआ कि ऐसे तो किसी फेरी वाले के बारे में उसनें आज तक नहीं सुना जो पुराने सामानों की बिक्री करता हो।
उत्सुकता वश सुधा नीचे उतरी और फेरी वाले के पास गई देखा तो उसके ठेले में तरह तरह के पुराने सामानों का ताता लगा हुआ था। तभी उसकी नजर एक आईने पर ठहर गईं वो अति उत्कृष्ट कलाकारी का नमूना थी।
उस पूरे आईने के किनारों पर बेहद खूबसूरत नक्काशी की गई थी जिस पर हर फूल के मध्य में खूबसूरत पत्थर जड़े हुए थे कुल मिलाकर सुधा को आईना बहुत पसंद आया और उसने उसे मूल्य चुकाकर ले लिया।
उसके बाद उसनें उस आईने को अपने कमरे में रखा और
घर के कामों में व्यस्त हो गई।
फिर नहाने चली गई। नहाकर जब वो आई और उसनें उस आईने के सामने खड़े होकर खुद के बालों में कंघी करते हुए खुद का अक्स देखा तो एक अद्भुत सा दर्प उसके भीतर उत्पन्न हुआ।
वो सोचने लगीं कि कितनी खूबसूरत है वो अभय तो उसके सामने कुछ भी नहीं और फिर उसनें एक आसमानी रंग की साड़ी निकाली और तैयार होकर घर के बाहर निकल गई।
उधर शाम को जब अभय घर आया तो ताला लगा हुआ देखकर परेशान हो गया।
उसनें सुधा को क्ई कौल किएँ हर बार वो कहती बस आती हूँ और फोन रख देती। लगभग आधे घंटे बाद वह घर लौटीं। उसका साज श्रंगार देखकर अभय आश्चर्य में पड़ गया सुधा बेहद सजी धजी थी और मेकअप में उसनें जरूरत से ज्यादा किया हुआ था जो कि सुधा कभी नहीं करतीं थीं।
सुधा बेहद सिंपल रहना पसंद करतीं थीं और बहुत हलका मेकअप करती थी।
घर आतें ही उसनें अभय को चाय दिया और रात का खाना बनाने चली गई।
रात के खाने के बाद भी उसनें अभय से कोई बात नहीं की और एक किताब पढ़ने लगी।
उसके इस वर्ताव से अभय परेशान हो उठा।
अब तो ये आए दिन का काम हो गया था अभय जब भी शाम को घर आता उसे सुधा नदारद मिलती।
घर के कामों में भी अब उसका मन नहीं लगता था। जो घर कभी अभय को साफ सुथरा और व्यवस्थित मिलता अब वही घर बेहद ही अव्यवस्थित मिलता था।
अभय ने भी ठान लिया कि वो पता लगा कर ही रहेगा।
तभी उसकी नज़र कमरे में रखें उस खूबसूरत आईने में गई। उसनें सुधा को बुलाकर पूछा कि ये आईना उसे कहाँ से मिला? सुधा ने अभय को पूरी कहानी बता दी और तैयार होकर घर से बाहर निकल गई। इधर अभय का भी माथा ठनका उसनें समझ लिया कि हो न हो ये आईना ही शायद जड़ है पूर्ण किस्से का और उसनें उस आईने को एक कागज़ में लपेटा और बाईक निकाली और चल पड़ा कुछ दूर जाकर उसे सुनसान झाड़ियाँ दिखीं उसनें आईने को वही फेक दिया।
घर आकर वो निशचिन्त होकर बैठ गया। कुछ देर में सुधा आ गई उसनें जब अपने कमरे में जाकर वो आईना नहीं पाया तो अभय से पूछने लगी वो आईना कहाँ है? अभय ने बताया कि वो आईना उसके हाथों से गिरकर टूट गया है। सुनकर पहले तो सुधा परेशान सी हो उठी और अभय को आग्नेय नेत्रों से देखने लगी। लेकिन धीरे धीरे वो सयंत होने लगी।
दूसरे दिन जब अभय उठा तो बिस्तर में सुधा नहीं थी। वो परेशान हो उठा कि आखिर सुधा कहाँ गई तभी उसकी नज़र बालकनी पर गई,सुधा पहले की भांति ही बालकनी में बैठ कर चाय पी रहीं थी। अभय मुस्कुरा दिया क्योंकि उसनें जान लिया था कि तिलस्मी आईने का तिलिस्म अब टूट चुका था। (समाप्त) समय- 12:1- बृहस्पतिवार



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