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समर्पण:- प्रेम और परमात्मा में
समर्पण:- प्रेम और परमात्मा में

हीर और रांझा की प्रेम कहानियों से शायद ही कोई अपरिचित रहा होगा। आज भी जब पवित्र प्रेम की बात आती है तो इन्हीं की मिशाल दी जाती है, आज भी उनका प्रेम जिंदा है हमारी कहानियों में।

ज़माने को सच्चा प्रेम रास नहीं आता तो हीर और रांझा की प्रेम में भी कई सारी बाधाएँ आई पूरा गांव दोनों के प्रेम के खिलाफ था, पर कहते हैं न कि सच्चा प्रेम रब का आशीर्वाद है तब ही तो आज भी हम उन्हें पढ़ते हैं।
एक बार रांझा को गांव वालों ने पकड़ लिया और एक पेड़ से बांध कर पीटने लगे, जब इसकी सूचना हीर को लगी तब वो नदी में स्नान के लिए जा रहीं थीं वो बीच रास्ते में ही कपड़े वगैरा फेंक कर नंगे पैर गांव की तरफ दौड़ पड़ी जहां रांझा को पीट रहे थे।

जिस रास्ते से हीर जा रहीं थीं उसी रास्ते में एक साधु की कुटिया पड़ती थी और वो साधु आंखें बंद करके भगवान की तपस्या में लीन था, हीर बेतहाशा भागी जा रहीं थीं, उसे कुछ ध्यान नहीं रहा वो कहाँ से गूजर रहीं हैं .... ऐसे में उसके घुँघरू की ध्वनि और इत्र की महक से साधु महाराज का ध्यान टूट जाता है और वो आँखे खोल कर देखते हैं तब तक हीर दूर जा चुकी थी।

हीर जब रांझा को लोगों से छुड़ा कर वापस उसी रास्ते से गूजर रहीं थीं तो उसके घुँघरू की ध्वनि और इत्र की महक से साधु महाराज ने उसे पहचान लिया और उससे क्रोधित होते हुए बोला कि :-
तुम्हारे पायल की ध्वनि और इत्र की महक से मेरी तपस्या भंग हो गई है इसके लिए मैं तुम्हें श्राप दूँगा।

इस पर हीर हाथ जोड़ कर बोली महाराज जब मैं यहां से दौड़ती हुई जा रहीं थीं तब मेरे प्रेमी को गांव वाले पीट रहे थे तो जैसे ही मुझे उसकी सूचना लगी तो मैं बस दौड़ पड़ी मुझे न कोई कुटिया नजर आ रहीं थीं और न कोई तप करते साधु संत.... मुझे बस अपने प्रेमी के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था।

जब मैं अपने प्रेमी के प्रेम में इस तरह खोई थी कि मुझे उसके अलावा किसी का ध्यान न रहा, तब आप तो महाराज भगवान के ध्यान में मग्न थे.... फिर कैसे मैं आपका ध्यान भंग कर सकती हूं, कैसे मेरी पायल की ध्वनि और इत्र की महक आपको तप करने से विचलित कर सकती है।

साधु महाराज हीर के कहने का तात्पर्य समझ चुके थे और वो बस एकटक उसे देखते रहे।

अर्थात्‌ :- हमें प्रेम /तप के लिए एकाग्रता और समर्पण आवश्यक है।


चेतन घणावत स.मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान
© Mchet143