...

11 views

लव इफेक्ट पार्ट-टु

अचानक.. मोबाइल पर धीमी रिंगटोन बजीं, ज्योति ने बड़ी उत्सुकता से डिसप्ले पर देखा कि वो बड़ी हड़बड़ी में लाइब्रेरी के बाहर चलीं गयी, वो भी मुझे बताएं बग़ैर.., पर अचानक ज्योति का ऐसा आश्चर्यजनक वर्तन-व्यवहार या बोड़ी लेंग्वेज देखकर मैं वाकई में हक्का-बक्का रह गया और चिंता की लकीरें भी चेहरे पर दस्तक दें चुकी थी । क्योंकि पहले कभी ऐसी घटना घटित हुई नहीं थी इसलिए ऐसा सोचने के लिए मजबूर था ।

किन्तु ताज़्जुब की बात यह थी कि ऐसी नाज़ुक स्थिति में भी ज्योति का ख्याल दिलों-ओ-दिमाग़ पर इश्क़-ए-जुनून बनकर छा गया था । लेकिन अचानक उसका नज़र अंदाज़ करके जानें का तौर-तरीकों ने मुझे वाकई में हिलाकर रख दिया था । फिर सोचा कि शायद कोई फैमिली का मेम्बर बिमार होगा अन्यथा सिरीयस कंडिशन में होगा तभी तो वो सुध-बुध भूलकर भागी-भागी से गयी हैं वर्ना वो मुझे बताएं बग़ैर कभी इस तरह चलीं नहीं जाती, इतना तो मुझे उस पर विश्वास था । किन्तु आज मुझे क्या हो गया हैं जिसके बारे में कुछ ज्यादा ही सोचने लगा हूं, पर हकीकत कारण क्या था ? वो किसीको पता नहीं था, फिर भी कोई खास वजह अवश्य रहीं होगी उसे विवश करने के लिए । लेकिन मैं पागल केवल कल्पना के शहर में बेबुनियाद भटक रहा था वो भी क़िस्मत को जोर-शोर से कोसता हुआ । फिर भी उम्मीदों की श्वासों ने कही से कहीं भीतर से मुझे जिंदा रखा था, प्यार को हरगिज़ तलाशने के लिए ।

क्योंकि.., जब आप किसी से बेइंतहा मोहब्बत करते हैं तब उसके लिए फिक्रमंद होना स्वाभाविक है। क्योंकि वो आपकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन जाती हैं, उसके अच्छे ख़्याल और मीठी बातें हमेशा मन और हृदय को प्रभावित करती है ।

अब लाइब्रेरी से सीधा होस्टेल वापस लौट आया, वो भी कोलेज का एक लेक्चर छोड़कर, क्योंकि थोड़ा मूड़ ओफ हो गया था । लेकिन भीतर उठें सवालों के बंवडर ने तरह-तरह तर्क-वितर्क से स्वयं को परेशान करके रख दिया था और ऊपर से भीतरी जिज्ञासा ने तंग-वंग करना जारी रखा था, वहीं हल्की-फुल्की सांझ के किरणें मेरी आंखों को उम्मीद की रोशनी प्रदान करने के लिए आतुर हो वैसा धुंधला सा प्रतीत हो रहा था । स्वयं को प्यार की विश्वसनीयता पर चलने के लिए प्रेरित करने के लिए हृदय की तेज़ धड़कन पुकारा रहीं थी ऐसा ओजस्वी आभास भीतर से महसूस हो रहा था ।

तभी तरुण नाम का फ्रेंड जोर से कहता है कि
" शेखर जल्दी उपर आना खाना तैयार हो गया हैं , वर्ना ऐसे बेसुध बैठा रहेगा तो खाना शीघ्र खत्म हो जाएंगा, क्योंकि यहां कई भूख्खड लोग भी बेटिंग करने आ गएं है, वो सबकुछ चौपट कर जायेंगे और ड़कार भी नहीं करेंगे, भला ये ठहरें कुंभकर्ण के भाई... कहां आगे पीछे देखते हैं ।"

ऐसा मज़ेदार हास्य-व्यंग्य सुनकर कहा-
" हां.. तरुण जरुर आता हूं, जरा बाथरूम में हाथ-मुंह धोकर ', फिर क्या था में सीधा बाथरूम में चला गया वहां करीब दस मिनट हाथ-मुंह बार-बार धोता रहा, वो भी गहरी सोच में डूबकर क्योंकि में क्या करने आया था वो बात वाकई में भूल गया था, तभी अचानक दिमाग़ की बत्ती जली, फटाफट खानें के लिए ऊपर रसोई के रूम और भागता गया लेकिन काफ़ी देर हो चुकी थीं, सब छात्र खा चुके थें, कुछ आधा चावल बचें थें, वो खाकर स्वयं की भूख को तृप्त कर किया, लेकिन प्यार की अभिलाषा ने मुझे विचलित या अतृप्त बना दिया था ।

अब अंधेरा धीरे-धीरे आंखों पर ढ़लने लगा था, तभी मैंने सोचा कि चलो ज्योति को फोन से मेसेज भेजकर हालचाल पूछ लेता हूं, ऐसा स्वयं से कहकर मैंने मेसेज लिखा " हेल्लो.. डियर ज्योति... सबकुछ तो ठिक है या नहीं मैं थोड़ा यहां परेशान हूं तुम्हारे अचानक इस तरह मुझे छोड़कर जाने से, खैर.. कोई बात नहीं कोई काम अवश्य रहा होगा । वैसे बाय द वे कल मिलते हैं ।" ऐसा कहकर ज्योति को मेसेज भेज दिया क्योंकि मैं लड़कियों से फोन पर बात करने पर अक्सर अनकंफर्टेबल फिल करता था क्योंकि कुछ ग़लत कह दिया तो सारी बनाई बात बिगड़ जाएंगी । इससे अच्छा तो ख़ामोशी ही बेहतर है, वर्ना जुबानी शब्दों से प्यार रूठ जाएगा। वहीं मेसेज का रिप्लाय पढ़ने के लिए मैं बार-बार मोबाइल को देख रहा था, काश.. कोई पोजिटिव रिपोन्स फटाफट आ जाएं इस होप में भोंदू सा बनकर इंतजार की माला आधी रात जपता रहा पर कोई रिपोन्स आया नहीं, इस बात से दुःखी होकर खुद पर हंसू या रोऊं मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था । जैसे मैं कोई प्रेमी योद्धा बनकर सूखे रेगिस्तान प्यार ढूंढने के लिए व्यर्थ प्रयास कर रहा हूं ऐसा आभास भीतर से फड़फड़ाने लगा था और स्वयं को बेवजह धिक्कारा लगा था ।

अगली सुबह फिर से कोलेज चला गया, लेकिन लेक्चर ऐटेन करने के बजाय उसे आसपास ढूंढने लगा, काश.. वो मिल जाएं तो कुछ बात दिल की आगे बढ़ें । इस दौरान मोबाइल पर मेसेज आने की आवाज़ आयी, मैंने तुरंत ज्योति का मेसेज ओपन करके पढ़ने लगा " मैं जानती हूं कि तुम मेरी परवाह करते हो, मुझे इस बात की बेहद खुशी हैं कि तुम मेरे बारे में इतना अच्छा सोचते हो, लेकिन जरा भी टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं हैं , मैं सच में सकुशल हूं, और तुम्हें पक्का लाइब्रेरी मिलती हूं ।"

ऐसा भावनात्मक मेसेज पढ़कर मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, जैसे लव नाम के कुत्ते ने मुझे काट लिया हो वैसा बावरा बनकर, होशोहवास भूलकर, लाइब्रेरी की और पागल आशिक कि तरह दौड़ता गया । लेकिन वहां पहुंच कर देखा तो ज्योति मौजूद नहीं थीं, फिर क्या था सारी खुशी हवा-हवाई हो गयीं, फिर सोचा चलों कुछ इंतज़ार करते हैं कहीं वो आ जाय तो ठिक है वर्ना मेरी हालात " धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का " जैसी बनकर रह जाएंगी । इससे अच्छा हैं कि मुझे प्यार-व्यार के चक्कर में पड़ना ही नहीं चाहिए था और फिजुल में दिल के जज्बातों में भी बहकना नहीं चाहिए था, केवल सिंघल बंदा बनकर अच्छी तरह पढ़ाई लिखाई पर ध्यान केन्द्रित करता तो आज ऐसी नोब़त ही नहीं आती और न हालातों के आगे घुटने टेकने पड़ते । लेकिन क्या करूं मैं भी एक जज़्बाती इंसान हूं, मेरे अंदर भी एक नादान दिल धड़कता है, वो भी खूबसूरत प्यारा की तलाश करता है, वो भी आंखों से आंख मिलाकर घंटे भर बातें करना चाहता, धड़कनों को करीब से महसूस करना चाहता, हाथों में हाथ डालकर उन्मुक्त गगन में उड़ना चाहता है, पदचिन्हों पर पग रखकर हर सफ़र में साथ चलना चाहता है । लेकिन क्या यह सब काल्पनिक बातें मेरी जिंदगी में हक़ीक़त में मुमकिन होगी या भ्रम के मायाजाल में उलझकर नामुमकिन हो जाएंगी, वो मुझे बिल्कुल पता नहीं था । क्योंकि मैंने परिणाम से ज्यादा प्यार को महत्व दिया था ।

अब मैं प्यार के नाम से कुछ अधिक ही डिस्टर्ब हो गया था । रात के घनघोर पहर में कभी-कभी निशाचर पक्षी की भांति बेवजह गहन, चिंतन शील विचारों में खोया रहता था, फिर भी नीरव शांति का भाव भीतर निष्ठुर बनकर चुभता रहा , मन का अकेलापन और हृदय का खालीपन चुप्पी साधकर प्रतिक्षण मेरी इन्तेहा लेने पर तुला था । इस असमंजस से भरी परिस्थिति में भला करता तो क्या करता उल्टा उसका प्रभाव मुझ पर हावी होने लगा था । तरह-तरह उधेड़-बुन ख्यालों ने मुझे परेशान करके रख दिया था । ऐसी हालात में आधी रात उसकी यादों में बीती और आधी रात करवटें बदलने में गुजर गयी ।

रोज़मर्रा की तरह मायूस सी शक्ल लेकर फिर कोलेज चला गया, जैसे मैं गेट के अंदर दाखिल होने वाली ही था की तब ज्योति की फ्रेंड संगीता मिल गयीं, इसलिए मैंने मौका देखक पूछ लिया- " संगीता तुम्हारी फ्रेंड ज्योत कहीं दिखाई नहीं दे रही क्या तुम्हारे साथ कोलेज नहीं आई ?"

बात पर जोर देते हुए संगीता ने कहा" यार.. मुझे पता नहीं, वो दो दिन से मुझे मिलीं नहीं, शायद आज मिल जाएं । "

" मैंने उतावलेपन में कहा- "हां..ठिक है किन्तु वो तुम्हें मिलें तो पक्का उसे कहना कि ब्रेक के बाद शेखर ने तुम्हें लाइब्रेरी में मिलने के लिए बुलाया हैं ।"

संगीता हंसकर बोलीं- " ज़ी बिल्कुल बता दूंगी, तुम ज़रा भी चिंता मत करों ! "

मैंने आभर प्रगट करते हुए थैंक यू कहा और वो सीधी क्लास रूम की ओर चलीं पड़ी । फिर मैंने अपनी आंखों को 576 मेगापिक्सल की तरह झूम करके सारी कोलेज में तकरीबन दस मिनट तक ज्योति को यहां-वहां बहुत ढूंढा पर वो कहीं भी नहीं देखीं । फिर निराश होकर और आंखों झुकाकर सीधा क्लास रूम में चला गया वहां करीब एक घंटे का लेक्चर ऐटेन किया लेकिन पढ़ाई में रत्ती भर का मन नहीं लग रहा था, जैसे ब्रेक पड़ा तो मैं लाइब्रेरी ओर चल पड़ा । वहां जाकर अखबार पढ़ने ही लगा था कि पीछे से आवाज़ आया " शेखर...तुम तो लाइब्रेरी में बैठो हों और मैंने सारी कोलेज में तुम्हें ढूंढा ? "
मैंने मन ही मन मुस्कुराते हुए कहा- मैंने भी आपको बहुत ढूंढा फिर आप न मिली तो लाइब्रेरी में चला आया । "

" रियली... शेखर यह तो कोइन्सिडन्स है ।"

" नो ज्योति ईटिंज जस्ट ए कोइन्सिडन्स ( No jyoti it's just a coincidence , नहीं ज्योति यह तो केवल इत्तेफ़ाक हैं ) "

" शेखर..तुम मानो या ना मानो ईटिंज पोसीबल
.!"

" क्यूं तुम्हें ऐसा लगता हैं ? "

" मैंने कई मुवी में ऐसे कोइन्सीडन्स देखे हैं । "

" अरे.,,पगली..यह रियल लाईफ हैं, जिसमें ऐसे करिश्मा नहीं होते । "

" बुद्धू तुम्हें क्या पता ?, ऐसा होता है ।"

" क्या तुम्हारे साथ ऐसा मैजिकल हुआ हैं कभी.. ? "
" हां.. क्यूं नहीं बिल्कुल हुआ हैं । "

" तो देर किस बात की.., तुम खुलकर बता सकतीं हो ? "

(ज्योतिने बात बदले हुए कहा)- " खैर.., शेखर छोड़ो कोई दूसरे टोपिक बात करतें हैं, जो तुम्हें पसंद हो । "

ऐसा सुनकर मैंने सोचा की शायद वो मेरा दिल रखने के लिए झूठ बोल रही थीं या सच को दबाने के लिए वो मुझे बिल्कुल पता नहीं था ।

फिर मैंने हां में हां मिलाते हुए कहा- " जैसी आपकी मर्ज़ी मोहतरमा..! "

उसने भी हंसी मजाक करते हुए कहा - " हां..तो ठीक हैं महोदय...! "

फिर मैंने बातों-बातों में पूछ लिया " ज्योति तुम दो दिन से कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, इसलिए मुझे फ़िक्र हो रहीं थी कोई सीरियल प्रोब्लम्स तो नहीं था ना ? "

" शेखर... सुनकर बहुत अच्छा लगा पर अचानक मेरी मां की तबियत बिगड़ गयी, इसलिए दो दिन कोलेज न आ सकीं..!"

ऐसा प्रत्युत्तर सुनकर मुझे कुछ-कुछ आभास हो रहा था, शायद...वो जानबूझकर झूठ बोल रहीं थी क्योंकि उसकी पलकें झूकी हुई थी और चेहरे का हाव-भाव बदला-बदला सा था ।

मैंने भी उसका दिल रखने के लिए कहा- " आई होप आपकी माँ जल्दी ठिक हो जाएगी । "

उसने प्रतिक्रिया में - " थें क्यूं सो मच शेखर... ' कहा... !

मैंने गंभीरता पूर्वक कहा- " कोई बात नहीं सबकुछ ठीक हो जाएगा क्योंकि यह जिंदगी है उसमें उतार-चढ़ाव अक्सर आते रहते है, टेढ़े-मेढ़े मोड़ की तरह बस अपना ख्याल रखना पड़ता है ।"

" वाह..,शेखर..तुम तो परिपक्व जैसी समझदारी वाली बातें करने लगें हो । "

" ऐसा कुछ भी नहीं, बस जो मन में था वहीं कह दिया ‌।"

" शेखर.. मुझे लगता हैं कि तुम्हारी हार्ट टचिंग
बातें उम्रभर सुनतीं रहूं..। "

मैंने उत्साह में कहा- " रियली...ज्योति.., यह तो मेरा अहो...भाग्य...!!"

" शेखर..बातें बनाना तो कोई तुमसे सिखे, इतनी अच्छी बातों तुम क्यों कर लें तो हो, जिसे सुनकर मुझे जलीश फींल हो रही हैं ।"

" रियली...ऐसा हो तो मुझे गुड फींल हो रहा हैं ।

" आपका पक्का इरादा देखकर मुझे लगता हैं कि आप मुझे दिवाना बनाकर छोड़ेंगे..! क्योंकि इतना हक़ जो जता रहे हो । "

" हक़ नहीं पगली यह तो प्यार है, जो दिल से महसूस होता हैं । '

" वो तो मुझे भी पता है पगले..., लेकिन कवियों का दिल भी कितना खूबसूरत होता है, वो जो महसूस करते है वो कितनी आसानी से शब्दों में पिरोकर सुन्दर काव्य गढ़ते हैं, वाकई में यह एक अद्भुत कला है ।"

" वाह डियर.. क्या बात है आपने तो कवियों का मान रख लिया..!"

" शेखर..आप भी कुछ कम नहीं, बहुत बढ़िया लिखते हो, जिसे पढ़कर मैं आपकी फैन भी हूं और दिवानी भी हूं।"

" यह तो आपका बड़प्पन हैं ज्योति..जो हमें बेहद पसंद हैं । वर्ना हमारी आज इतनी तारीफ़ कौन करता ?"

" लगता है शेखर..आज इन चिकनी-चुपडी बातों से तुम मुझे पक्का कर्जदार बना दोगें..!"

" डियर.. हमारी कहा इतनी औकात जो तुम्हें कर्जदार बना देगें, हम तो बस आपके दिल के मुरीद बन गयें हैं ।"

" क्या कहूं मैं अब शेखर...आपकी बातों ने तो मुझे इंप्रेस कर दिया ।"

" यह तो ओर भी अच्छी बात है और उपर से तुम मुझे मिलने आई वहीं मेरे लिए काफ़ी है, बाकी तो सब फ़िज़ूल है सिवाय तुम्हें रूबरू सामने पाकर ।"

" अब इतनी भी तारीफ़ मत करो की हम शर्म से पानी-पानी हो जाएं । "

" उफ्फ.., आप भी क्या कमाल करती हो, प्यार भी जताती हों और दरियादिली भी दिखाती हो । "

" आपकी दिलचस्प बातें सुनकर मैं तो बस इतना कहूंगी कि निःसंदेह तुम एक बढ़िया इंसान निकले।"

इस तरह हम दोनों ने घंटे भर बातें करने के बाद लाइब्रेरी से बाहर आ गए, और कल फिर से मिलेंगे ऐसा कहकर अपने रास्ते नापने लगें ।
तभी मेरा एक दोस्त जिग्नेश ने हम दोनों को साथ में आते देख लिया था इसलिए वो तुरंत पास आकर बोला- "अरे यार..शेखर वो लड़की कौन थीं तुम्हारे साथ ? "

" वो तो मेरी जस्ट फ्रेंड हैं जिग्नेश..!"

" रियली.. शेखर जस्ट फ्रेंड या गर्लफ्रेंड ?"

" ऐसा कुछ भी नहीं यार.., बस वो मेरी गुड फ्रेंड हैं "

जिग्नेश हंसकर बोला- " जस्ट फ्रेंड कभी इतने प्यार से बाल नहीं सहलाती ?"

" अरे..जिग्नेश तुम भी मुझ पर काले कौवे की तरह नज़र गड़ाकर फ़ालतू में कांव-कांव करते हो..!"

" यार..तुम तो बुरा मान गए लेकिन यह सच है कि जिस दिन तुम लाइब्रेरी में थें उस दिन में भी था, मैंने तुम दोनों को करीब से देखा था इसलिए मैं कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहता था । नहीं तो तुम्हें ज़रूर बुलाता, पक्के दोस्त के तौर पें...! वैसे शेखर तुम आज रूबरू मिल गए, वहीं मेरे लिए काफ़ी हैं वर्ना कई दिनों से तुम्हें मिलने के लिए कोशिश कर रहा था लेकिन हम दोनों का सब्जेक्ट डिफरेंट होने की वजह से मिल नहीं पाते थें । क्योंकि तुम्हें इक सेंसेटिव मुद्दे पे इत्तिला जो करना था । "

" दोस्त... तेरी बात सुनकर बहुत अच्छा लगा लेकिन तुम्हारा अंदाजा बिल्कुल सही निकला क्योंकि वो लड़की मेरी गर्लफ्रेंड ही हैं हम अक्सर बातों के सहारे लाइब्रेरी में मिला करते हैं, हां..पर मैंने अबतक प्रपोज नहीं किया, बस प्यार जताने की कोशिश की है, क्योंकि अबतक मेरी फिलिंग्स की प्रपोजल पर उसके दिल का सिग्नेचर हुआ नहीं, अगर.. यह बात कंफर्म या प्रूफ हो गयीं तो एक दिन इश्क़ में पागल यह बंदा दिल खोलकर प्रपोज कर देगा ।"

" यार.., यह बहकी-बहकी बातें बनाना छोड़ दें..! क्योंकि तेरी हसीन जिंदगी में विस्फोटक भूचाल आने वाला हैं, जरा दिल थामकर बैठना । "

" क्या.. यार फालतू में बकवास कर रहा, कुछ कहना है तो साफ-साफ बता ना...! "

" बताता हूं, जरा कलेजे में ठंड रख.., इतनी भी क्या जल्दी है ?"

" यार.. इतना भी न तड़पा, अब बता दें..! तेरा दोस्त मरे जा रहा हैं ।"

" अब जिंद ना कर शेखर... तुम्हें एक सिक्रेट बात बताता हूं, क्योंकि तुम तो वाकई में भोले और नादान जो ठहरें, कभी तुम्हारी गर्लफ्रेंड की हिस्ट्री या बेकग्राउ जानने की कोशिश की है, बस यूंही उसके इमोशनल बातों में आकर अपना दिमागी संतुलन खो बैठे ओर दिल दे बैठे..!"

"यार.. मुझे क्यूं जानने की जरूरत हैं उसकी हिस्ट्री या जियोग्राफी, मुझे तो बस उसके दिल पर रिसर्च करनी हैं ।"

" ठीक है शेखर.. किन्तु सीरियसली बता रहा हूं, क्योंकि बाद में यह नहीं कहना कि तुम सच जानते थें, पर जानबूझकर बताया नहीं ?"

"अब यार जो भी हो वो बक दें..मेरी सब्र की इंतेहा मत लें..!''

" दोस्त.. तुम्हें बताते हुए बहुत अफ़सोस हो रहा की तुम्हारी गर्लफ्रेंड तुम्हें डबल क्रॉस कर रही हैं क्योंकि उसका तो पहले से ही कोई बोयफ्रेंड मौजूदा है फिर वो तुम्हारे दिल के साथ खिलवाड़ कर रही हैं या मौज-मस्ती के लिए इस्तेमाल कर रही हैं यह बात मुझे बिल्कुल पता नहीं है, पर हां... वो तुम्हें चीट ज़रूर कर रही हैं ।"

" मैं यह सुनकर स्तब्ध हो गया, जैसे मेरे पैरों तले से जमीन खिंच गई हो ऐसा गहरा आघात दिल को चीर रहा था ।"

" फिर मुझे थोड़ा उदास देखकर जिग्नेश ने कहा- " यार सच बात सुनकर सांप सुंघ गया या शोक लगा....?"

" तुम्हारी बातों ने मुझे हिलाकर रख दिया हैं फिर तुम यकिन के साथ कहते हो या हवा में तुका लगा रहो रहें हों ? यह मुझे फिलहाल मालूमात तो नहीं हैं पर हां...बड़ी दुविधा में हूं ।"

" नहीं यार..मैंने प्रत्यक्ष इन दो आंखों से देखा हैं, वो किसी बोयफ्रेंड की बाइक पर बैठकर बिंदास घुमती फिरती हुई देखीं है, वो भी एकबार नहीं पर तीन बार.., इसलिए तुम यकिन करो या न करों लेकिन जो मैंने देखा और समझा हैं वहीं जुबां से बयां किया है ।"

ऐसा सुनकर भी में मानने के लिए तैयार नहीं था इसलिए मैंने कहा- " यह सच नहीं हो सकता क्योंकि वो मुझे बेहिसाब चाहतीं हैं, तुम खामखां मेरा ब्रेकअप करना चाहते हो, इसलिए ऐसी मनगढ़ंत कहानी बना रहें हों, शाय़द तुम मुझसे जलते हो..!"

" मैं तुम्हारी भावनाओं को वास्तव में समझ सकता हूं, क्योंकि तुम उदार और नेक दिल वाले इंसान हो इसलिए एक दोस्त की हैसियत से सलाह-मशवरा दे रहा हूं कि तुम्हारा यह फस्ट लव, लाइफ का लास्ट लव न बन जाएं वो भी टोटली
दिल का इमोशनल हार्डवेयर डिस्ट्रोय करके । जरा इन तमाम बातों पर गौर फरमा कर ज़रूर देखना, कोई क्लू या सोल्यूशन अवश्य मिल जाएगा । उचित डिसिजन लेने के लिए ।"

" यार.. तूने बात तो फतेह की बताई, पर ये कमबख्त़ दिल मानने के लिए कतई तैयार नहीं है ?"

" शेखर..तू दिमाग से ज्यादा दिल से सोचता हैं इसलिए कन्फ्यूज में है, जरा एकबार दिमाग से सोचकर देख, रास्ता ज़रूर मिल जाएगा ।"

पर मैं भला.. दोस्त की एक भी बात मानने के लिए तैयार नहीं था इसलिए दिमाग़ के तरह-तरह घोड़े दौड़ाते हुए कहा- " काश.. उसका कोई भाई, कलीग या दूसर का रिश्तेदार हो सकता है ?"

" अरे..यार कोई रिश्तेदार इतना चिपकर साथ नहीं बैठता, उसमें मर्यादा या शिष्टाचार के नाम की कोई चीज होती है भला..।"

अंत में जिग्नेश ने आक्रोश में आकर कहा- " अरे.. पागल, बावली पूंछ, मैं तो तुम्हें समझा समझाकर थक गया हूं, अब ईश्वर ही तुम्हें सद्बुद्धि दें..! मैं तो चला घर की ओर आगे तुम्हारी मर्ज़ी ।"

क्योंकि मैं प्यार में अंधा, गूंगा-बहरा और पागल सबकुछ बन चुका था इसलिए दोस्त की बातों को ग़लत या मिथ्या ठहराने लगा था या भ्रम का कारण दे रहा था । क्योंकि मेरा दिल यह बात मानने के लिए तनिक भी मंजूर नहीं था, वो तो बस अपनी मनमानी पर उतर आया था, हद से ज्यादा जिंद पे जो अड़ा था । पर हां.. मेरा प्यार गंगाजल जैसा शुद्ध था, चट्टान जैसा मजबूत था, पुष्प जैसा कोमल था, जल जैसा मीठा था, पर न जाने क्यूं उन पर बुराई का ग्रहण लगने वाला था । राहु-केतु और शनि का प्रकोप भी मेरे आसपास मंडराने लगा हो वैसा आभास हो रहा था । क्योंकि भीतर नकारात्मक और सकारात्मक विचारधारा का द्वंद्व युद्ध चल रहा था । प्यार की कश्मकश में निहत्था योद्धा बनकर मझधार में व्यर्थ छटपटाने लगा था । न कोई सहारा, न कोई उम्मीद, बस दूर-दूर तक अंधेरा सा फैला था । फिर सोचता हुआ रोड़ क्रोसींग करने लगा वो भी रेड सिग्नल पर लेकिन एक भले इंसान मुझे खिंचकर बचा लिया उस वक्त मेरी दिल धड़कने तेज बढ़ गयी थी, जैसे लगा कि मृत्यु एक क्षण में मुझे छू कर गयी हो और जिसने बचाया था उसने कहा बेटा मरने के लिए इतना उतावला क्यूं है? जरा ट्राफिक सिग्नल पर देखकर चल चाहिए.., मैंने जी हां..कहकर धन्यवाद अदा किया ।

अगले दिन में साइकोलॉजी का लेक्चर ऐटेन कर रहा था लेकिन मेरा ध्यान कहीं ओर ही लगा हुआ था । तभी प्रोफेसर ने मुझे बेध्यान देखकर क्वेश्चन पूछा कि ' ईवान पावलव ने क्लासिक कंडिशनिंग थीयरी का एक्सपेरिमेंट ' किस एनिमल्स के उपर किया था । मैंने सोचें बिना ही डोंकी कह दिया, यह सुनकर क्लास रूम में मौजूद सभी स्टूडेंट्स मुझ पर हंस रहें थें, जैसे में कोई हंसी-मजाक का पात्र बन गया था लेकिन मेरा रोंग आन्सर सुनकर प्रोफेसर ने भी खूब खरी-खोटी सुनाई, पर मैंने तुरंत सोरी सर.., कहते हुए सही आन्सर में डोंग कहा तभी कलेजे में थोड़ी ठंडक पहुंची । फिर मैं ब्रेक के बाद ग्राउंड पर दोस्तों को मिलने के लिए चल पड़ा था, तभी अचानक मुझे देखकर ज्योति ने पास आकर कहा- " चल शेखर.. आज तुम्हें वो स्पेशल कुल्हड़ वाली चाय पी लाती हूं !"

मैंने मना करते हुए कहा-
" डियर..आइ एम रियली सोरी..!
क्योंकि आज कई दिनों के बाद यारों के संग गुफ्तगू करने का गोल्डन चान्स मिला है, इसलिए मैं गंवाना नहीं चाहता, पर हां...पक्का प्रोमिस कल ज़रूर हम दोनों कुल्हड़ वाली चाय साथ में बैठकर पिएंगे ।"

" प्लीज़ शेखर.., हम्बल रिक्वेस्ट ? आज न जाने क्यूं तुम्हारे साथ चाय के लिए मेरा मन इतना उत्सुक हैं ।"
(उसकी मासूमियत देखकर मेरा दिल बच्चे की तरह पिघल गया )
" ओके.., आइ एम एंग्री ज्योति बंट आइ कैन अंडरस्टैंड, वैसे आपकी इमोशनल, सेंसेटिव फिलिंग्स का दिल से रिस्पेक्ट करता हूं । इसलिए आपको हर्ट नहीं कर सकता..!"

" रियली शेखर.. आपका यही बेटर एटीट्यूड मुझे बेहद पसंद हैं ‌। वर्ना आपके साथ तो कोई भी लड़की चाय पीने के लिए तैयार हो जाएंगी, इतना तो मुझे यक़ीन है ।"

" बाय द वे ज्योति..ऐसा हो भी सकता है और ना भी हो सकता है लेकिन हर कोई तुम्हारे जैसा प्यारा थोड़ी हो सकता हैं ।"

" नथिंग शेखर..बट आजकल तुम कुछ ज्यादा ही मेरी प्रसंशा के पुल बांधने लगे हो इसलिए मैं थोड़ी एक्साइटेड हूं ।"

मैंने चाय की चुस्की लेते हुए कहा- " क्या यार... तुम्हारा कोई हैंडसम सा बोयफ्रेंड तो ज़रूर होगा ?"

" शेखर ऐसा कुछ भी नहीं है, पर हां..एक तुम ही मेरे दिल के करीब हो, बाकी तो सब बकवास है ‌।"

वो झूठ बोल रही थीं या सच मुझे बिल्कुल पता नहीं था, क्योंकि मैं समझने में असमर्थ था । इसलिए मैंने प्रत्युत्तर में कहा- " इतना लकी तो में नहीं हो सकता की कोई मुझे बेहद पसंद करें ? "

इतने में ज्योति कुछ कहे उससे पहले फोन पर कोल आया लेकिन मुझे पास देखकर दो बार कट कर दिया, फिर तीसरी बार कोल आया इसलिए मैंने कहा इंपोर्टन कोल होगा, जस्ट रिसीव....,
याह.. एसक्यूसमी..' कहकर वो कोल रिसीव करके बात करतीं हुई मुझसे दूर जा रहीं थीं, लेकिन मैं भला मुर्ख उसके इंतज़ार में आधा घंटा टैबल पर ही बैठा रहा इस उम्मीद में कि वो लौट कर वापस आ जाएं लेकिन मैं ग़लत था. बल्कि उसके ऐसे रवैए से मेरे अंदर शंका-कुशंका के बादल घने हो रहें थे । विश्वास की परतें बर्फ़ भांति दिल से टूट टूटकर पिघल रहीं थीं ।

इन दिनों में कोलेज में छुट्टियां पड़ गयीं, इसलिए मैं शहर का प्यार नाम का बोझ दिल में भर कर गांव लौट आया था किन्तु उसकी व्याकुलता ने मुझे पूरी तरह जकड़ लिया था, बस उसका ही ख़्याल बार-बार मन-मस्तिष्क में भ्रमण कर रहा था । इसलिए मैंने सोचा चलो ज्योति को प्यार भरा मेसेज भेज देता हूं, किन्तु गांव में मोबाइल नेटवर्क का प्रोब्लम्स था इसलिए सिग्नल नहीं आ रहें थें । लेकिन वो बात तो आपने सुनी होगी की प्यार में पागल बंदा कुछ भी कर सकता हैं फिर मैंने भी ठान लिया कि पहाड़ पर चढ़कर मेसेज भेजूंगा, बस मैंने यही तरकीब आजमाई, करीब डेढ़ घंटा पहाड़ चढ़ने में लगा दिया और मेसेज भी भेज दिया क्योंकि ऐसा साहस मैंने दो बार किया था, लेकिन मेसेज का अबतक रिप्लाय आन्सर मिला नहीं था इसलिए थोड़ा मायूस भी था, परंतु प्रयास करना शत-प्रतिशत ज़ारी था ।

इस तरह वक़्त बीत गया ओर कोलेज वापस जाने का टाइम आ गया । इसलिए मैंने जानें के लिए निकलने वाला ही था तभी माँ ने प्यार से कहा बेटा तेरा पसंदीदा खाना मक्की की रोटी और गुड़, घी के साथ तैयार हैं जरा खाकर जाना क्योंकि दो या तीन किलोमीटर पैदल चलकर मेन आईवे तक जाना पड़ेगा, माँ को इतना चिंतातुर देखकर बताया कि सुबह मैंने हल्दी वाला दूध पीया हैं इसलिए अभी भूख नहीं है लेकिन माँ कहा मानती उसने टिफिन का बोक्स बनाकर दें दिया और कहा कि होस्टेल जाकर खा लेना और अपना ध्यान रखना । हां.. मां ज़रूर कहकर मैं गांव से पैदल रास्ता नापता हुआ शहर की दुरियां को कम करने के लिए शीघ्र निकल पड़ा, लेकिन प्यार का बुखार दिल में तपिश बनकर बदन को जला रहा था ।

इस बार मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि ज्योति को किसी भी कंडिशन में प्रपोज करके रहूंगा । चाहे दर्द मिलें या खुशी लेकिन प्यार की गहराई को टटोल कर देखूंगा, विश्वास की नींव पर तैर पाता हूं कि नहीं या झूठ के फरेब में घुट-घुटकर मर जाता हूं ।
चलो आज किस्मत को इश्क़ के दांव पर लगाकर देखते हैं, ताकि पता तो चले कि किसके हिस्से में क्या लिखा मिलता है ।

वैसे प्रपोज करने के लिए ग़ुलाब के फूल का मैंने पहले से इंतज़ाम कर दिया था, इसलिए गांव से शहर आकर सीधा कोलेज की ओर जाने लगा वो भी दिल की खुशियों को ज़ज्बातों से इज़हार करने के लिए, लेकिन उस वक्त मुझे बहुत प्यास लगी थीं गला भी सूखने लगा था तभी गार्डन के पास रखा मटके से में पानी पीने गया, तभी मेरी तिरछी नज़र गार्डन पर पड़ी तो वहां काफ़ी संख्या में यंग जनरेशन के लवजर्ड दिखें है, इनमें से मैंने ज्योति जैसी हू-ब-हू शक्ल-सूरत वाली लड़की वहां किसी लड़के का सर गोद में रखकर गुफ्तगू करतीं हुई मशगूल देखीं लेकिन मैं पक्के तौर पे कंफर्म करने के लिए लुकाछिपी करता हुआ नज़दीक जाकर देखा तो मेरी आंखें फटी की फटी रह गई अर्थात भौंचक्का होकर देखते रह गया क्योंकि वो ओर कोई नहीं पर ज्योति ही पक्के तौर पे थीं, यह जानें पर में तुरंत वहां से दूर चल आया, लेकिन हृदय में जो आघात लगा वो असहनीय-अकल्पनीय था, मेरी भावनाएं टूट टूटकर सहस्त्र पीड़ाएं में तब्दील हो गयीं थी, जैसे मेरा अंग-अंग निष्क्रिय हो गया हो या मेरे देह से कोई महत्व अंग विलग हो गया हो ऐसा गहरा भाव भीतर बेजान फड़फड़ाने लगा था, श्वासोच्छोवास में भारीपन था, आंखों में आंसू भर आए थें, होंठों में शुष्कता उभर आई, रक्त में शिथिलता आ गई, इन तमाम बातों से मेरी टोटल बोड़ी फिजिकल और मेंटली नेगेटिव एनर्जी इफेक्ट से डिस्ट्रोय होने का काउडाउन स्टार्ट कर चुकी थीं क्योंकि वो पीड़ा असहनीय थी, इसलिए मृत्यु को गले लगाने के लिए हरगिज़ तत्पर थीं, किंतु इतने दर्द के साथ गुस्सा भी आया तो मैंने उस निर्जन पुष्प को ' आई हेट यूं ज्योति ' कहकर लात मार मारकर कुचल डाला, लेकिन दुःख भी हुआ कि उस पुष्प का क्या दोष वो तो केवल प्रेम व्यक्त करने का मध्यस्थ जरिया था किंतु प्यार में बेवकूफ गधा तो में बन चुका था, कभी स्वार्थी और महत्वाकांक्षी लव की परिभाषा में समझ ही नहीं पाया, बस विश्वास की प्रायोरिटी को फस्ट रखकर अंधेरे कुंएं में खुद पड़ा था । न आने देखा, न पीछे देखा, देखा तो बस झूठे मक्कार प्यार की चालबाजी जो गिरगिट की भांती असलियत का आइना दिखाकर एक भोले-भाले बंदे को नाकाम या बर्बाद कर दिया, इससे बुरा जिंदगी में क्या हो सकता है, जरा सोच कर देखिए, लव फेलियर की फिलिंग्स आपको सायकोलॉजीकल अंदर-बाहर से तोड़ देती हैं फिर आप लव सक्सेस की रेस से आउट हो जातें है । इसलिए पुनः लव के लिए प्रयास करना अत्यंत कठिन हो जाता है क्योंकि पुराने बातें आपका पीछा नहीं छोड़ती, वो परछाई बनकर कब, कहा, कैसे प्रगट हो जाएं यह प्रश्न चिह्न बनकर निर्माण होती है ।

अब तो स्वयं से धृणा होने लगी थीं, छल-कपट, मोह-माया की इच्छाने मुझे ठग लिया था क्योंकि मेरी सारी अच्छाईयों का यही फल या परिणाम मिला ऐसा सवाल खुद से पूछ पूछकर थक गया था किन्तु जवाब कौन देता भीतर सर्वत्र सन्नाटा फैला हुआ था, अन्यथा बाहर किसको पूछता सिवाय अनजान भीड़-भाड़ से जो अपने नीजी कार्य में भाग-दौड़ कर रहीं थी । अब जैसे तैसे खुद को संभालते हुए होस्टेल की ओर जाने लगा । लेकिन कदम भी लड़खड़ाने लगे थें, मन भी असंख्य सवालों से घिरा पड़ा था, तन भी व्यथित होकर श्मशानघाट पर पड़ा था । फिर भी हिम्मत जुटा कर होस्टेल तक पहुंच गया । लेकिन अबतक मेरे साथी दोस्त आएं नहीं थें, शायद कल आने वाले थे इस बात से थोड़ा अपसेट था क्योंकि वो होते तो हंसी-मजाक से कुछ वक़्त गुज़र जाता लेकिन ज्योति की स्मृतियों ने मुझे तहस-नहस कर दिया था, अब न चाहते हुए भी उसके ख्यालों ने मुझे पर आधिपत्य जमा दिया था, निर्दीयी अकेलापन और खालीपन का अंधेरा मुझे भीतर से नोंच-नोंचकर खा रहा था, हाड़-मांस से बना ये ढांचा कुम्हला कर सिकुड़ ने लगा था । भावनाओं के सैलाब में दर्द-ए-पिन्हां का तीव्र ज्वार उमड़ आया था, मन के किनारों पर आक्रोश का जल बेकाबू होकर कहर ढा रहा था । दर्द-ए-नदी पोर-पोर में पीर-पीर बनकर अंग-अंग को डंसती रहीं, न दवा,न दुवा, न जंतर-मंतर-टोटका काम आने वाला था । करता तो मैं क्या करता इक सामान्य इंसान जो ठहरा , कब-तक भावनाओं को काबू में रख पाता, मैं कोई पहुंचा हुआ संत बाबा या तपस्वी योगी थोड़ी न था जो इच्छाओं पर तुरंत नियंत्रण कर लेता..! किन्तु आखिर इंसान इंसान होता है वो चाहकर भी कुछ परिस्थितियों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता और वास्तविक स्थिति को बदल नहीं सकता इसलिए जीवन में कुछ बातें को स्वीकारना अनिवार्य होता है पर हां..वो उस परिस्थिति में प्रत्यक्ष या परोक्ष साक्षी ज़रूर बन सकता है । इन तमाम घटनाक्रम ने मुझे झकझोर के रख दिया था और सोचने के लिए विवश कर दिया था ।

वैसे मन बहुत चंचल चीज हैं उसने मेरे विचारों के साथ खेलना शुरू कर दिया था । कभी सोचता कि मुनि बुद्ध का भिक्षु बनकर ज्योति के चरणों में गिड़गिड़ाकर प्यार की भिक्षा मांग लूं.. लेकिन मेरी खुद्दारी ऐसा करने के लिए मना कर रही थीं, किन्तु संवेदनशील दयालु स्वभाव तैयार था।

क्रमशः...

© -© Shekhar Kharadi