संस्कार की अंतिम यात्रा
अचानक तेज तेज से ढोल नगाड़ों की आवाज सुनाई देने लगी। ना जाने इतनी सुबह किसकी बारात निकल रही है? जाड़े में रजाई से निकलने का मन तो नहीं किया किंतु क्या करें, नगाडे के बीच में लोगों की आवाज मुझे उठने के लिए मजबूर कर रही थी। उठकर ज्यों ही झरोखे से झांका देखा कि लोग राम नाम सत्य है, राम नाम सत्य है कहते शवयात्रा के पीछे चल रहें थे। हर घर से एक दो लोग निकलकर उस यात्रा में शामिल होते जा रहे थे।
मैंने झरोखे से झांकती हुई पूछा- भाई यह किसकी शवयात्रा है? लोग बोलने का नाम नहीं ले रहे थे।तभी एक वृद्ध व्यक्ति बोला ही पड़ा।यह शवयात्रा समाज के संस्कार की है ।जो पश्चिम संस्कृति की महामारी से काफी समय से संक्रमित था।जिसे एक अच्छे डॉक्टर की सलाह आवश्यकता थी किन्तु वह गुलर के फूल हो गये ,मिलते ही कहां है ?
इस संक्रमित रोगी ने अपनी सारी पूंजी अपनी पीढ़ी पर खर्च कर दी ।धन के अभाव व पीढ़ी की उपेक्षा का शिकार सरकारी अस्पताल में कई दशकों से इलाज करवा रहा था। इलाज ऐसा ही हो रहा था कि एक दिन यह होना ही था।सन्त्वना का ग्लूकोज व भाषणों की एंटीबायोटिक दवाएं खिलाने के स्थान पर मात्र दिखाई जा रही थी।
संस्कार रूप इस बीमार ने उपेक्षा का शिकार होकर अंततः आज सुबह ही मृत्युशैया पर पड़ा मृत्यु की चाह कर ही रहा था कि उत्तराधिकारियों ने मृत्यु का इंतजार करना मुनासिब नहीं समझा और अति उत्साहित होकर मृत्यु के पूर्व ही...
मैंने झरोखे से झांकती हुई पूछा- भाई यह किसकी शवयात्रा है? लोग बोलने का नाम नहीं ले रहे थे।तभी एक वृद्ध व्यक्ति बोला ही पड़ा।यह शवयात्रा समाज के संस्कार की है ।जो पश्चिम संस्कृति की महामारी से काफी समय से संक्रमित था।जिसे एक अच्छे डॉक्टर की सलाह आवश्यकता थी किन्तु वह गुलर के फूल हो गये ,मिलते ही कहां है ?
इस संक्रमित रोगी ने अपनी सारी पूंजी अपनी पीढ़ी पर खर्च कर दी ।धन के अभाव व पीढ़ी की उपेक्षा का शिकार सरकारी अस्पताल में कई दशकों से इलाज करवा रहा था। इलाज ऐसा ही हो रहा था कि एक दिन यह होना ही था।सन्त्वना का ग्लूकोज व भाषणों की एंटीबायोटिक दवाएं खिलाने के स्थान पर मात्र दिखाई जा रही थी।
संस्कार रूप इस बीमार ने उपेक्षा का शिकार होकर अंततः आज सुबह ही मृत्युशैया पर पड़ा मृत्यु की चाह कर ही रहा था कि उत्तराधिकारियों ने मृत्यु का इंतजार करना मुनासिब नहीं समझा और अति उत्साहित होकर मृत्यु के पूर्व ही...