...

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वह उड़ता परिंदा, वह लड़ता परिंदा

शाम की बात है,
जब प्रेक्टिस करने ग्राउंड पर गया था...
प्रैक्टिस खत्म होने वाली थी...
(उड़ते हुए परिंदे पर नजर ठहर गई,
माफ करना... उस तेज हवा के विपरीत लड़ते हुए परिंदे पर ठहर गई...
देखो कितने ताज्जुब की बात है कि हमने उस परिंदे को पहले सिर्फ उड़ता हुआ कहा था, लेकिन वह हवा से लड़ता हुआ परिंदा था...
उस परिंदे को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता...
कि मैं क्या कह रहा हूं और आप क्या सुन रहे हैं...)
वह परिंदा बार-बार हवा से लड़ने के लिए अपने परो को बार-बार तेज फड़फड़ाता...
लेकिन हवा उसे बार-बार अपने साथ बहाने की कोशिश करती...
लेकिन उस परिंदे की हिम्मत देखो...
वह परिंदा पर फड़फडाए जा रहा है...
(देखो.... हवा अपना काम कर रही है... और वह परिंदा अपना काम कर रहा है)
यह हवा... माफ करना....
यह बहती हुई तेज हवा...
उस सामान्य से परिंदे के परो को असामान्य बनाने में लगी है...
(सोचता हूं... जो परिंदा इतनी विपरीत परिस्थिति/असामान्य स्थिति में होने पर भी हवा को चीरता हुआ आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है...
उसकी सामान्य स्थिति में चलने की गति क्या होगी?)
तभी अचानक... हवा अपना आक्रोश कम करते हुवे... जो हवा की आंखें उस परिंदे को घूरे जा रही थी... उस परिंदे की हिम्मत को देखकर झुक गई...
(हवा चलने की गति कम हो गई)
वह परिंदा अवसर देखते ही... उस धीमी गति से बह रही हवा को तेज गति से चीरता हुआ मेरी आंखों से कहीं ओझल हो गया...
और छोड़ गया मेरे लिए...
और आपके लिए...
अपना एक छोटा सा इतिहास... जो उसने खुद लिखा था...
जो मैं आपको बयां कर रहा हूं...

यह छोटा सा दृश्य मुझे बहुत प्रभावित कर गया...
सोचा कि उक्त वर्णित दृश्य को आप भी सोच कर देखे...
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🙏बहुत शुक्रिया 🙏
© Satish Sonone